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डा. शर्वरी इनामदार को देख कर लगता है कि आज महिलाओं को साड़ी के साथ अपनी सहजता का प्रमाण देना पड़ रहा है, पता नहीं क्यों?
भारत के इतिहास में वीरांगना महिलाओं की कहानी देश के हर हिस्से से सुनने में आती रही है। दक्षिण भारत हो या पूर्वी भारत, उत्तरी भारत हो या पश्चिमी भारत हर क्षेत्र में वीरांगना महिलाओं के बारे में बेमिसाल कहानियां इतिहास के पन्नों में दर्ज हैं।
इन तमाम वीर महिलाओं की बहादुरी और पराक्रम साबित करने में उनके साथ हमेशा रही नौ गज की साड़ी। शायद इसलिए साड़ी को दुनिया भर में शौर्य, शक्ति और समानता के प्रतीक का वस्त्र भी माना जाता है।
पुरुषों की पारंपरिक परिधान धोती और महिलाओं की साड़ी मिलते-जुलते से रहे हैं। साड़ी और धोती के नीचे का पूरा पहनावा एक-दूसरे से मिलता जुलता है। साड़ी में बस उसके साथ पल्लू जुड़ जाता है जो ऊपर के शरीर को ढकने के काम आता है।
लड़ाई का मैदान हो या नृत्य की कोई भी पारंपरिक शैली साड़ी हमेशा से ही भारतीय संस्कृति के पहचान को अद्वित्य बनाती आई है। अखंड वस्त्र के नाम से भारतीय शास्त्रों में वर्णित साड़ी, जिसका मतलब बिना जोड़ का कपड़ा होता है और जो अकेले ही पूरे शरीर को ढक लेता हो।
पुरुष तो अब ज़्यादा धोती में देखते नहीं हैं, लेकिन कई महिलाएं आज भी अपनी पूरी ज़िन्दगी साड़ी में ही निकाल लेती हैं, कुछ भी कर लेती हैं इस एक साड़ी में।
साड़ी में अपनी ज़िन्दगी जीने के बाद भी आज कई महिलाओं को साड़ी के साथ अपनी सहजता का प्रमाण देना पड़ रहा है, पता नहीं क्यों?
कभी एशना कुट्टी को साड़ी में हूला-हूप और स्नीकर्स में ससुराल गेंदा फूल पर थिरकना पड़ता है, तो कभी डा. शर्वरी को साड़ी पहनकर जिम में पुश-अप और वर्क आउट करना पड़ता है। लेकिन इसमें मैसेज क्या है? दूसरों को क्या सन्देश देना चाहती हैं ये?
हाल ही वायरल हुआ एक विडीओ, जिसमें डा. शर्वरी इनामदार साड़ी पहनकर जिम में पुश-अप और वर्क आउट कर रही हैं।
वह बताती हैं, “प्यूबर्टी के दौरान, गर्भावस्था के दौरान, स्तनपान के दौरान, मेनपॉज़ के दौरान महिलाओं के स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं में हड्डी का कमजोर होना प्रमुख है। अधिकांश महिलाएं साड़ी पहनती हैं, इसलिए वह साड़ी पहनकर जिम जाने में असहज महसूस करती हैं। साड़ी पहनकर जिम करना सबके लिए संभव नहीं है, यह बात सही है। पर केवल साड़ी के कारण महिलाएं जिम नहीं कर सकती हैं या एक्सरसाइज नहीं कर सकती हैं, ये सच नहीं।”
डा.शर्वरी ने इस मिथ को तोड़ने के लिए अपना वीडियो बनाया। उनके अनुसार, आप चाहे कुछ भी पहनें, अपनी फिटनेस को आगे रखें। अपने पहनावे के कारण खुद पर ध्यान देना बंद न करें।
डा. शर्वरी इनामदार डाइयटीशीयन है, पॉवर लिफ्टिंग में नाम कमा चुकी है और दो व्यस्क बच्चों की माँ भी हैं। वह महिलाओं को अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक रहने के लिए प्रेरित करने का काम कर रही हैं। वह घरों में काम करने वाली महिलाओं से वह अपील करती हैं कि वो अपने फिटनेस पर ध्यान दें।
डा.शार्वरी यह काम तीन-चार साल से कर रही है और उनके पास कई महिलाओं का संदेश आता है कि उन्होंने साड़ी पहनकर जिम करना शुरू कर दिया है और उनको इसमें कोई शर्म नहीं आती है।
असल में मूल समस्या कभी महिलाओं के लिए साड़ी रही ही नहीं होगी। समस्या यह है कि पितृसत्ता के वज़ह से महिलाएँ अपने दु:ख को दु:ख समझती ही नहीं हैं, वह इससे बिल्कुल ही सहज़ हो चुकी है।
बच्चे पैदा करने के बाद, घरों का इतना सारा काम निपटाने के बाद आधुनिक समय में दफ्तर और घर में सामजस्य बैठाकर काम करने के बाद, उनके अंदर भी ऊर्जा की कमी हो रही है। वह इस बात को समझती हैं, परंतु इस कमी को दूर करने के लिए उनको अतिरिक्त संसाधनों पर निभर होने की आवश्यकता है। जिम पर खर्चा करना या इसके बारे में सोचना उनको इतने व्यस्त दिन के बाद फिजूल लगता है।
इसकी वज़ह यह है कि बतौर परिवार के सदस्य के रूप में उन्होंने स्वयं को प्राथमिकता में रखा ही नहीं, या ये कहें उन्हें रखने ही नहीं दिया जाता। हमारे समाज ने औरत के लिए प्राथमिकता पहले पति, परिवार और बच्चे ही बनाये हैं।
इससे कहीं अधिक गंभीर समस्या यह है कि यह मानसिकता एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक बड़ी सहजता से स्थानांतरित हो रही है, किसी को कोई दिक्कत नहीं महसूस हो रही है।
इससे तो यही लगता है कि देश की आधी आबादी जब तक अपने सुख के बारे में परवाह करना नहीं शुरू करेगी, तब तक कोई बड़ा बदलाव आने ही वाला नहीं है।
हर एक निश्चित समय के बाद कभी किसी एशना कुट्टी को तो कभी किसी डा. शर्वरी को महिलाओं को उनके जीवन की खुशी के तलाश के लिए प्रेरित करते रहना होगा। उनकी अपनी खुशी की पहचान और फिर उसकी तालाश में किया गया संघर्ष ही उनको हर तरह के पितृसत्ता से मुक्त कर सकेगा।
मूल चित्र: From Dr.Sharvari’s YouTube channel
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