कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
स्वाति के पतिदेव रवि भी अपने मामा, मामी, मौसा, मौसी की ही बातें करते, पर भूल कर भी कोई ससुरजी के भाई बहनों की बातें न करता।
स्वाति ने जब शादी के बाद ससुराल में पहला क़दम रखा तब उसे उसकी सास ने यही समझाया गया कि अब यही उसका घर है और यहाँ के लोग रिश्तेदार ही अब उसका परिवार हैं। खैर ये बात तो स्वाति को समझ में आ गई, पर वो ये न समझ सकी कि इस परिवार में कौन कौन लोग आते हैं।
पर कुछ ही दिनों में उसे ये समझ आ गया कि रिश्तेदार का मतलब सासु माँ के मायके वाले लोग हैं। स्वाति के पतिदेव रवि भी अपने मामा, मामी, मौसा, मौसी की ही बातें करते पर भूल कर भी कोई ससुरजी के भाई बहनों की बातें न करता। स्वाति को ये बात बहुत अजीब लगती।
ससुरजी से उनके भाई बहनों की बातें छेड़ती तो वो भी कुछ न बताते, पर उनकी आँखें काफ़ी कुछ कह जाती। स्वाति अब बहुत कुछ समझ चुकी थी पर चाह कर भी कुछ न कर पाती।
एक दिन उसने रवि से इस बारे में बात करने की सोची, “सुनिए जी! कभी चाचा चाची जी को भी घर बुला लीजिए। पिताजी भी खुश हो जाएँगे, काफ़ी अरसे से शायद वो मिले नहीं है उनसे।”
“क्या! तुम्हारा दिमाग़ तो ठीक है? तुमने देखा है चाचा चाची को?”
“नहीं…पर…”
“पर…वर…कुछ नहीं। अरे तुम्हें कुछ नहीं पता, गाँव में रहते हैं, तो रहन सहन भी देहाती ही है। बड़े भैया की शादी में आये तो ऐसे कपड़े पहने हुए थे कि पूछो मत। हमने तो बड़ी मुश्किल से अपनी इज़्ज़त बचायी। सारे मेहमानों को यही बता दिया कि दूर के रिश्तेदार हैं। वैसे एक बात बताऊँ? मेरे माँ के सारे रिश्तेदार मेरे पापा के भाई बहनों से तो बेहतर ही हैं।”
“पर रवि ! रिश्तेदारी में अमीरी ग़रीबी कैसी?”
“स्वाति! तुम इस मामले में कुछ न ही बोलो तो अच्छा होगा”, रवि झल्लाते हुए बोला।
बेचारी स्वाति चुप हो गई पर ये बात उसे काफ़ी बुरी लगी। वैसे तो वो भी काफ़ी रईस घराने से थीं पर उसके मायके में तो यूँ कोई रिश्तेदारों में भेदभाव नहीं करता था। भला अमीरी ग़रीबी भी क्या दोस्ती या रिश्तेदारी का पैमाना होती है?
समय बीतता गया और स्वाति एक प्यारे से बेटे की माँ बन गई। जब बेटा का पहला बर्थडे मनाने की बात हुई तो स्वाति ने रवि से अपने मायके वालों को भी बर्थडे पार्टी में बुलाने की इच्छा जताई। पति देव ने भी हामी भर दी।
बर्थडे में रवि के कुछ दोस्त, स्वाति के मायके वाले और सासुमाँ के लोग रिश्तेदार भी आये। स्वाति के मायके वाले तो काफ़ी रईस थे, महँगे महँगे ज़ेवर और उम्दा साड़ियां पहने उसकी भाभियाँ किसी अप्सरा से कम नहीं लग रही थीं, वहीं सासु माँ के मायके वाले औसत दर्जे की ही कपड़े पहने हुए थे क्यूंकि वो स्वाति के मायके वालों जितने अमीर न थे।
रवि के कुछ दोस्तों ने रवि से यूँ ही मज़ाक़ में कह दिया, “यार तेरे मामा मामी ने कितनी ऑउटडेटेड कपड़े पहन रखें हैं और सोच भी कितनी मिडिल क्लास है, तू उन्हें पार्टी में नहीं भी बुलाता तो कोई फर्क़ नहीं पड़ता। इस फंक्शन में असली जान तो तेरे ससुराल वालों ने डाली है। कितनी हाई क्लास सोच है उनकी और पहनावा।..वाह भाई! वाह!”
रवि अपने दोस्तों की बात सुन भड़क उठा, “तमीज से बात करो…वो लोग रिश्तेदार हैं मेरे…माना कि मेरे ससुराल वाले बहुत अमीर हैं पर इसका यह मतलब नहीं कि मैं अपने मामा मामी को भूल जाऊँ। वैसे रिश्तेदारी में भी अमीरी ग़रीबी होती है क्या?” कह रवि अपने दोस्तों पर बरस उठा।
स्वाति दूर खड़ी उन सबकी बातें सुन रही थीं। रवि को उत्तेजित होते देख वो उसके पास पहुँच गई।
“क्या हुआ रवि? इतना गुस्सा क्यों हो?”
“वो मेरे दोस्त।..मेरे मामा मामी का मज़ाक़ बना रहे थे…अब तुम्हीं बताओ रिश्तेदारी में भी अमीरी ग़रीबी होती है क्या?” ये कहते कहते अचानक से रवि रुक गया। स्वाति के प्रश्न भरे नज़रें रवि से काफ़ी कुछ पूछ रही थीं और कह भी रही थीं।
रवि को अपनी ग़लती का अहसास हो चला था। सच स्वाति ठीक ही तो कहती थी कि रिश्तेदारी में अमीरी ग़रीबी नहीं होती। भाई बहन या कोई भी सगे सम्बन्धी अगर ग़रीब या हमारे आर्थिक स्थिति के समकक्ष न हो तो इसका मतलब ये नहीं है कि हम उनसे रिश्ता तोड़ दे।
खैर रवि ने अपनी माँ को भी ये बात समझायी और फिर वो दिन भी आ गया जब रवि के पिताजी बरसों बाद अपने भाई बहनों संग हंसी ठिठोली कर रहे थे।
मूल चित्र: Shaadi.com via Youtube
read more...
Please enter your email address