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इतिहास के पृष्ठों में नीरजा भनोट का नाम सदा के लिए अमर हो गया है। जब भी वीरता की बात चलेगी नीरजा का नाम उसमें अवश्य रहेगा।
विश्व की प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक भारतीय संस्कृति जिसमें नारी को विशेष स्थान दिया गया है। हमारे ग्रंथ ,वेद, पुराण, दर्शनशास्त्र, उपनिषद और महाकाव्य आदि सब नारी की अपार महिमा के गुणगान से भरे पड़े हैं। नारी की समग्र परिभाषा और उसकी अनंत महिमा को आज तक कोई शब्दों में नहीं पिरो पाया है। हमारे देश भारत में ‘नारी को केवल सुंदरता की मूर्ति ना मानकर ‘शक्ति’ का रूप माना गया है।
वेदों में नारी को ‘अंबा’, ‘अम्बिका’, ‘दुर्गा’, ‘देवी’, ‘सरस्वती’, ‘शक्ति’, ‘ज्योति’ आदि नामों से संबोधित किया गया है। भारतीय नारी केवल घर की सुख-शांति और समृद्धि में ही योगदान नहीं देती बल्कि समय आने पर वह शत्रु के लिए माँ चंडी और काली का रूप भी धर सकती है। और भारतीय-चिन्तन-परम्परा में यह तथ्य प्रारंभ से ही स्वीकार किया जाता रहा है इसलिए भारतीय-संस्कृति में नारी सर्वत्र शक्ति-स्वरुपा है, देवी रुप में प्रतिष्ठित है।
एक ऐसी ही भारतीय नारी नीरजा भनोट जो अपनी छोटी सी जिंदगी के माध्यम से विश्व को ऐसी मिसाल दे गई जो बड़े-बड़े नायक अपनी सौ वर्ष की आयु में भी नहीं दे पाते। बड़े कार्यों को करने के लिए बड़ी आयु की आवश्यकता नहीं होती बल्कि आवश्यकता होती है सच्चे इरादों और हिम्मत की। नीरजा सही मायनों में जिंदगी की एक ऐसी ही नायिका हैं जिनकी बेमिसाल हिम्मत के सामने पूरी दुनिया नतमस्तक है किसी ने सच ही कहा है कि जिंदगी सौ साल जीने से बड़ी नहीं होती बल्कि इंसान का काम उसे बड़ा बनाता है।
नीरजा भनोट सिर्फ तेईस साल जी सकीं लेकिन अपनी इस छोटी सी जिंदगी में ही उन्होंने खुद को इतिहास में अमर कर लिया और भारत देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘अशोक चक्र’ पाने वाली पहली महिला की सूची में भी अपना नाम दर्ज करवाया। अशोक चक्र पदक सम्मान सेना के जवान तथा आम नागरिकों उनके अदम्य साहस और वीरता ले लिए जीवित या मरणोपरांत दिया जाता है। नीरजा ने खूंखार आतंकवादियों से डटकर मुकाबला किया और अपनी जान न्योछावर करके भी सैकड़ों निर्दोष यात्रियों के प्राणों की रक्षा भी की।
5 सितंबर 1986 को पैन एएम विमान 73 में यात्रियों की सहायता एवं सुरक्षा करते हुए वे स्वयं आतंकवादियों की गोलियों का शिकार हो गई थीं।
नीरजा भनोट का जन्म 7 सितंबर 1963 को चंडीगढ़ के एक पंजाबी परिवार में हुआ था। उनकी माँ का नाम रमा भनोट और पिता का नाम हरीश भनोट था। उनके दो भाई अखिल और अनीष भनोट हैं। वह अपने माता-पिता की लाड़ली संतान थी। पिता प्यार से उन्हें लाडो बुलाते थे और उनकी छोटी-छोटी इच्छाओं का मान करते थे। उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा चंड़ीगढ़ के सैक्रेड हार्ट सीनियर सेकंडरी विद्यालय से प्राप्त की।
नीरजा बचपन से ही बहुत नटखट और जिंदादिल स्वभाव की थीं। जब वे सब भाई-बहन गर्मियों की छुट्टियों में अपने दादा-दादी के पास शिमला जाते तो वहाँ जाकर सब बच्चे घर की बालकनी में नाटक का मंचन करते थे। उस नाटक में दादा-दादी को न्यायाधीश बना दिया जाता।
कुछ देर नाटक करने के बाद नीरजा अचानक विरोध करने लगती और सभी भाई-बहन आपस में लड़ पड़ते थे। उस लड़ाई को शांत कराने के लिए दादा-दादी उन्हें घर के नीचे बने बाजार में ले जाकर सॉफ्टी खिलाते थे। ऐसे ही छोटे-छोटे मनोरंजक किस्सों से नीरजा का बाल्यकाल भरा हुआ है।
उनका व्यक्तित्व बचपन से ही बहुत जिज्ञासु और उत्साही था। पिता के मुंबई तबादले के बाद उनका परिवार मुंबई आ गया। नीरजा के जीवन से जुड़ा एक और किस्सा बड़ा प्रसिद्ध है कि एक बार वह दोनों भाइयों के साथ स्कूटर पर सवार होकर कहीं जा रही थी तो सड़क किनारे एक दंपति के झगड़े को देख कर बीच-बचाव करने चली गई थीं। अपने भाइयों द्वारा इसके लिए टोके जाने पर 17 वर्षीय नीरजा ने कहा था कि जिंदगी चाहे एक दिन की हो या दस साल की या पचास साल की, उनको दबाव वाली जिंदगी स्वीकार नहीं।
बाल्यकाल से ही वह बहुत प्रतिभाशाली थीं। वह जितनी खूबसूरत थीं उतनी ही विलक्षण प्रतिभा की धनी थीं। मधुरभाषी होने के साथ-साथ पिता के पत्रकारिता के गुण भी उनमें आए थे।
नीरजा भनोट अपने वैवाहिक जीवन में अधिक सुखी न रह सकीं उनका विवाह वर्ष 1985 में संपन्न हुआ और वह अपने पति के साथ कुछ समय के लिए खाड़ी देश भी गईं। लेकिन कुछ दिनों बाद ही दहेज़ के दबाव को लेकर उनके रिश्ते में खटास आने लगी। नीरजा ने सामंजस्य बैठाने की बहुत कोशिश भी की परंतु वह कामयाब ना हो सकीं और विवाह के दो महीने बाद ही वह वापस मुंबई आ गयी।
मुंबई वापस आने के बाद भी उनके ससुराल वाले दहेज़ का कुछ दबाब डालते रहे इस कारण उनकी शादी ज्यादा दिनों तक नहीं चल सकी और उनका तलाक हो गया।
अपने वैवाहिक जीवन की असफलता से नीरजा बुरी तरह टूट गई थीं पर पिता के साथ और प्रोत्साहन से नीरजा धीरे-धीरे अपनी सामान्य जिंदगी में लौटने लगीं। उन्होंने अपने-आप को शीघ्र ही संभाल लिया और अन्य गतिविधियों में स्वयं को व्यस्त करने का प्रयास करने लगीं।
उनके आकर्षक व्यक्तित्व और सुंदर शारीरिक संरचना से नीरजा को मॉडलिंग के प्रस्ताव भी मिलने लगे। उन्होंने वीको, बिनाका टूथपेस्ट, गोदरेज डिटर्जेंट और वैपरेक्स जैसे कई उत्पादन के विज्ञापन भी करने आरम्भ कर दिए।
लेकिन कहते हैं ना वो इस धरती पर किसी और ही काम के लिए आईं थी। उन्होंने अपने लिए विमान परिचारिका की नौकरी की तलाश आरंभ कर दी थी। परंतु उनकी माँ रमा नहीं चाहती थी कि नीरजा विमान कंपनी में काम करें और उन्होंने इसके लिए नीरजा को बहुत समझाया। लेकिन नीरजा विज्ञापन की दुनिया से अलग किसी दूसरे ही क्षेत्र में जाने को उत्सुक थीं।
कुछ समय बाद उन्होंने अमेरिकी विमान कंपनी पैन ऍम में ‘विमान परिचारिका’ की नौकरी के लिए आवेदन कर दिया और शीघ्र ही वह उस पद के लिए चुन ली गईं। उनके आवेदन को चुने जाने के बाद उन्हें कुछ समय के लिए मयामी भेजा गया।
जब नीरजा विमान परिचारिका का प्रशिक्षण ले रहीं थीं तब उन्हें अपहरण रोधी प्रशिक्षण में भी दाखिला लेना पड़ा जिसके लिए उनकी माताजी तैयार नहीं थीं। उन्होंने नीरजा पर अपनी विमान परिचारिका की नौकरी छोड़ने के लिए दबाव भी बनाया परंतु उन्होंने देश सेवा का वास्ता देकर अपनी माताजी को किसी प्रकार मना लिया और विमान परिचारिका की नौकरी को जारी रखा।
5 सितंबर, 1986 को अमेरिकी विमान पैन एम फ्लाइट 73 मुंबई से न्यूयॉर्क जा रही थी। विमान में 361 यात्री और 19 चालक दल के सदस्य थे। इस विमान को पाकिस्तान के कराची होते हुए फ्रैंकफर्ट, जर्मनी और फिर न्यूयॉर्क जाना था।
जब विमान कराची हवाईअड्डे पर था तो आतंकी सुरक्षाकर्मियों की वेशभूषा में विमान में दाखिल होने में सफल हो गए थे। अपहरणकर्ताओं ने सीढियों पर ही हमला बोल दिया तथा स्वचालित हथियारों से गोलीबारी करते हुए विमान में घुस कर नियंत्रण छीन लिया।
फिलिस्तीन के आतंकी संगठन अबू निदाल समूह के चार आतंकवादियों ने विमान में सवार सभी यात्रियों को बंधक बना लिया। इसी विमान में नीरजा वरिष्ठ विमान परिचारिका के रूप में नियुक्त थीं।
नीरजा ने स्थिति की गंभीरता को भाँपकर बड़ी होशियारी से विमान के अपहृत होने की बात चालक दल को इंटरकॉम पर सूचित कर दी जिसके फलस्वरूप विमान चालक, सह विमान चालक और विमान अभियंता आपातकालीन द्वार से सफलतापूर्वक सुरक्षित निकलने में कामयाब हो गए लेकिन सबसे वरिष्ठ विमानकर्मी के रूप में यात्रियों की जिम्मेदारी नीरजा के ऊपर आ गई थी।
नीरजा चाहती तो उनके लिए बहुत आसान होता विमान से बच निकलना पर वह किसी और ही मिट्टी की बनी थीं। उन्हें अपने जीवन से अधिक अपना कर्तव्य प्रिय था। मासूम और निर्दोष यात्रियों को बचाना ही उन्हें अपना धर्म लगा।
आतंकवादियों को जब चालकदल के भागने की बात पता चली तो वे गुस्से में पागल होने लगे और अधिकारियों से बातचीत करते हुए उसने कहा कि यदि चालक दल को १५ मिनट में विमान में नहीं भेजा गया तो वे यात्रियों को गोली से उड़ाने लगेंगे। थोड़ी ही देर बाद जब उनकी माँगें नहीं मानी गईं तो उन्होंने सबसे पहले एक यात्री राजेश को सिर में गोली मार दी और उसे दरवाज़े के बाहर ज़मीन पर फेंक दिया।
आतंकियों ने नीरजा भनोट को आदेश दिया कि वह सारे यात्रियों के पासपोर्ट को एकत्रित करें जिससे अपहर्ता विमान में सवार अमेरिकी नागरिकों का पता लग सकें। नीरजा ने उनके आदेशानुसार सभी के पासपोर्ट जमा करने आरंभ कर दिए। नीरजा ने पासपोर्ट तो एकत्र किए परंतु बहुत होशियारी से उन्होंने अमेरिकी नागरिकों के पासपोर्ट छिपा दिए ताकि वह उनकी जान बचा सके।
जब १७ घंटों के बाद आतंकवादियों ने यात्रियों की हत्या शुरू कर दी और विमान में विस्फोटक लगाने शुरू किये तो नीरजा ने हिम्मत दिखाई और विमान का आपातकालीन दरवाज़ा खोल दिया। उन्होंने किसी प्रकार यात्रियों की मदद की जिससे वे सब सुरक्षित बाहर निकल सकें।
इसी प्रयास में तीन बच्चों को निकालने के दौरान जब एक आतंकवादी ने बच्चों पर गोली चलानी चाही नीरजा सीधे उस आतंकी से जाकर भिड़ गई। उस आतंकवादी ने नीरजा पर गोलियों की बौछार कर दी और उन्हें बहुत अधिक रक्तस्राव होने लगा। अस्पताल पहुँचते-पहुँचते नीरजा की मृत्यु हो गई।
नीरजा के इस वीरतापूर्ण आत्मोत्सर्ग ने उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर हीरोइन ऑफ हाईजैक के रूप में प्रसिद्धि दिलाई। यदि नीरजा चाहती तो सब से आगे निकल कर अपनी जान बचा सकती थी लेकिन उन्होंने अपने कर्तव्य के आगे अपने प्राणों की परवाह नहीं की और मरते-मरते 376 लोगों की जान बचाई।
इस घटना के दौरान २० यात्री मारे गए जिनमें १२ भारतीय थे तथा बाकी अमेरिका, पाकिस्तान व मेक्सिको से थे। सभी अपहरणकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया और मृत्युदंड दिया गया। किन्तु बाद में उनकी सज़ा को उम्रकैद में बदल दिया गया।
भारत सरकार ने नीरजा भनोट को मृत्युपरांत सर्वोच्च वीरता पुरस्कार “अशोक चक्र” से सम्मानित किया। वे यह पदक प्राप्त करने वाली देश की पहली महिला और सबसे कम आयु की नागरिक भी बन गईं। नीरजा को अपनी बहादुरी के लिए ‘ हीरोइन ऑफ हाईजैक ’ का ख़िताब भी दिया गया था।
पाकिस्तान की सरकार ने भी नीरजा को ‘तमगा-ए-इंसानियत’ सम्मान प्रदान किया जो मानवता की असाधारण सेवा के लिए दिया जाता है। अमेरिकी सरकार के कोलंबिया के अटॉर्नी कार्यालय की ओर से नीरजा को 2005 में ‘जस्टिस फॉर क्राइम अवॉर्ड ’ से सम्मानित किया।
इसके अलावा अमेरिकी सरकार द्वारा विशेष बहादुरी पुरस्कार और फ्लाइट सेफ्टी फाउंडेशन की ओर से हीरोइज्म सम्मान भी दिया गया। 2004 में भारत सरकार ने उनके सम्मान में एक डाक टिकट भी जारी किया था।
उनकी याद में मुंबई के घाटकोपर इलाके में एक चौराहे का नाम नीरजा रखा गया है और इसका उद्घाटन हिंदी फ़िल्मों के ख्यातिप्राप्त अभिनेता श्री अमिताभ बच्चनजी ने किया था।
इसके अलावा उनकी स्मृति में एक संस्था ‘नीरजा भनोट पैन ऍम न्यास’ की स्थापना भी हुई है, जो उनकी वीरता को स्मरण करते हुए महिलाओं को अदम्य साहस और वीरता हेतु पुरस्कृत करती है। उनके परिजनों द्वारा स्थापित यह संस्था प्रतिवर्ष दो पुरस्कार प्रदान करती है, जिनमें से एक विमान कर्मचारियों को वैश्विक स्तर पर प्रदान किया जाता है और दूसरा भारत में महिलाओं को विभिन्न प्रकार के अन्याय और अत्याचार के खिलाफ़ आवाज़ उठाने और संघर्ष के लिए दिया जाता है।
प्रत्येक पुरस्कार की धनराशि 1,50,000 रुपये है और इसके साथ पुरस्कृत महिला को एक ट्रॉफी और स्मृतिपत्र दिया जाता है। महिला अत्याचार के खिलाफ़ आवाज़ उठाने के लिये राजस्थान की दलित महिला भंवरीबाई को भी यह पुरस्कार दिया गया था।
नीरजा के इस साहसिक कार्य और बलिदान को याद रखने के लिये साल 2016 में उनकी बहादुरी पर एक फिल्म ‘नीरजा’ भी बनी है ; जिसमें उनकी भूमिका को प्रसिद्ध अभिनेत्री सोनम कपूर ने अदा किया था। नीरजा भनोट के ऊपर कुछ पुस्तकें भी लिखी गई हैं जिनके नाम ‘द नीरजा आइ नो’ और ‘नीरजा भनोट-द स्माइल ऑफ़ करेज’ हैं।
नीरजा के भाई अनीश भनोट ने ‘ नीरजा भनोट –द स्माइल ऑफ़ करेज ’ नाम से एक किताब लिखी जो बहुत पसंद की गई। अनीश ने इस किताब में नीरजा के बचपन, उनकी शरारतें, स्कूल से जुड़ी बातें, चंडीगढ़ से बाहर घूमने जाने से जुड़ी अनेक कहानियाँ लिखी हैं। इसके अलावा उनकी शादी के बाद की स्थिति, ससुराल वालों की तरफ से यातना और दहेज उत्पीड़न को भी इस पुस्तक में उजागर किया है।
नीरजा उस पितृसत्तात्मक समाज के मुख पर एक जवाब भी है जो सदैव स्त्री की शारीरिक क्षमता को लेकर स्त्री की क्षमता को सीमित करता रहा है। स्त्री को अबला और नाजुक समझने वालों को नीरजा ने अपनी बहादुरी से गलत साबित ही नहीं किया बल्कि वह हर महिला के लिए एक ऐसी मिसाल कायम कर गई हैं जो सदियों तक प्रत्येक महिला को प्रोत्साहित करती रहेगी।
चट्टान से भी फौलादी हिम्मत वाली और गजब की सूझ –बूझ की धनी नीरजा जाते – जाते विश्व को यह संदेश देकर गईं कि इच्छा शक्ति के बल पर कोई भी कार्य असंभव नहीं है और इसी इच्छा शक्ति से नीरजा ने खूंखार आतंकवादियों पर न सिर्फ़ विजय पाई बल्कि उनके नापाक इरादों को नेस्तनाबूत भी किया।
अपने जन्मदिन से केवल दो दिन पूर्व वह इस दुनिया को छोड़कर चली गई परंतु इतिहास के पृष्ठों में उनका नाम सदा के लिए अमर हो गया है।जब भी वीरता की बात चलेगी नीरजा का नाम उसमें अवश्य रहेगा। आधुनिक मानवीय सभ्यता में कुछ नवीनतम आविष्कार हुए हैं, जिसकी वजह से महिलाओं की दशकों पुरानी समस्याओं का समाधान सरलतापूर्वक संभव हो सका है।हम सब की ओर से भी देश की ऐसी बहादुर बेटी और वास्तविक जीवन की सच्ची नायिका को सत–सत नमन है।
“नीरजा तुम हर नारी में बसी शक्ति और साहस का भंडार हो।
दिखा दिया तुमने सबको तुम ही दुर्गा और काली का अवतार हो।
अपराध जब बढ़ते आकर तुम करती नराधमियों का सर्वनाश हो।
चट्टान से बुलंद हौसलों और हिमालय सी ताकत का प्रमाण हो।”
मूल चित्र: Via Twitter
I am Shalini Verma ,first of all My identity is that I am a strong woman ,by profession I am a teacher and by hobbies I am a fashion designer,blogger ,poetess and Writer . मैं सोचती बहुत हूँ , विचारों का एक बवंडर सा मेरे दिमाग में हर समय चलता है और जैसे बादल पूरे भर जाते हैं तो फिर बरस जाते हैं मेरे साथ भी बिलकुल वैसा ही होता है ।अपने विचारों को ,उस अंतर्द्वंद्व को अपनी लेखनी से काग़ज़ पर उकेरने लगती हूँ । समाज के हर दबे तबके के बारे में लिखना चाहती हूँ ,फिर वह चाहे सदियों से दबे कुचले कोई भी वर्ग हों मेरी लेखनी के माध्यम से विचारधारा में परिवर्तन लाना चाहती हूँ l दिखाई देते या अनदेखे भेदभाव हों ,महिलाओं के साथ होते अन्याय न कहीं मेरे मन में एक क्षुब्ध भाव भर देते हैं | read more...
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