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जब पति-पत्नी में तलाक के लिए आपसी सहमति न बने तब एक पक्ष तलाक के लिए अर्ज़ी डालता है तो उसे एकतरफा तलाक कहते हैं और ये हैं उसके नियम...
जब पति-पत्नी में तलाक के लिए आपसी सहमति न बने तब एक पक्ष तलाक के लिए अर्ज़ी डालता है तो उसे एकतरफा तलाक कहते हैं और ये हैं उसके नियम…
एक समय था जब हमारे समाज में तलाक शब्द का कोई अस्तित्व नहीं था। विवाह विच्छेद जैसी कोई अवधारणा थी ही नहीं। शादी को जन्म जन्मांतरों का पवित्र बंधन मानकर विवाहित जोड़े मन से या बेमन से साथ रहते और जीते चले आ रहे थे।
“जोड़ियाँ ऊपर से तय होकर आती हैं नीचे तो केवल उन्हें मिलाया जाता है।“ आज भी यह सोच हमारे मन-मस्तिष्क पर हावी है। इसी कारण भारत में अधिकतर विवाह बेमेल या बेमन के ही होते हैं। माता-पिता को लगता है कि उनका जीवन अनुभव ही उनके बच्चों के लिए जीवनसाथी ढूँढने के लिए उपयुक्त है।
बाल विवाह, बेमेल विवाह, बेमन के विवाह और ऐसे अन्य कारण रहे हैं जहाँ दंपति केवल समाज के भय या माता-पिता की खुशी के लिए ज़बरदस्ती विवाह बंधन में बंधे और उसे निभाते चले गए। पर उस विवाह में न तो प्रेम रहा, न खुशी और न ही मानसिक संतुष्टि।
महिलाओं में शिक्षा का अभाव और स्वावलंबन की कमी के चलते विवाह में असंतुष्टि या हिंसा झेलने के बाद भी महिलाएँ केवल इसीलिए उस बंधन में बंधी रहती थीं क्योंकि उनके पास पति और ससुराल के अलावा कोई ठिकाना नहीं होता था और न ही आगे के जीवन के लिए कोई राह।
बदलते परिवेश में जहाँ पुरुष और महिलाएँ दोनों ही आत्मनिर्भरता और स्वावलंबन में एक दूसरे की बराबरी पर हैं वहाँ जीवन में किसी भी प्रकार की असंतुष्टि झेलने का कोई कारण ही नहीं बचता। हालांकि पहले कानून में सहमति से विवाह-विच्छेद का कोई प्रावधान नहीं था। पहले तलाक के लिए व्यभिचार (adultery), क्रूरता (cruelty), धर्म परिवर्तन, परित्याग (desertion), पागलपन, कुष्ठ रोग (leprosy), सात वर्ष या अधिक से गुमशुदगी, सन्यास, छूत की बीमारी या यौन रोग ही कारण हो सकते थे।
पर अब हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा बी (Hindu Marriage Act, sec 13 B) व विशेष विवाह अधिनियम की धारा 28 (special marriage act, sec 28) के अनुसार पति-पत्नी आपसी सहमति से तलाक की लिए अर्ज़ी डाल सकते हैं। अगर दोनों में से कोई एक पक्ष अदालत की कार्यवाही में जानबूझकर देरी करता है या व्यवधान डालता है तो दूसरे पक्ष की अर्ज़ी पर न्यायालय एकतरफा तलाक के नियम लागू कर सकता है।
जब पति-पत्नी वैवाहिक रिश्ते से असंतुष्ट हों पर उनमें तलाक के लिए आपसी सहमति न बने तब दोनों में से एक पक्ष तलाक के लिए अर्ज़ी डालता है तो उसे एकतरफा तलाक कहते हैं।
एक तरफ़ा तलाक के लिए हिन्दू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 13 के अंतर्गत न्यायालय में याचिका दायर की जाती है। इस अधिनियम के आरंभ होने से पहले या बाद में हुए किसी भी विवाह के अंतर्गत तलाक के लिए याचिका दायर की जा सकती है।
एक तरफ़ा तलाक के लिए कुछ आधार निश्चित किए गए हैं। केवल इन्हीं आधारों के मद्देनज़र एक तरफ़ा तलाक लिया जा सकता है। यह आधार इस प्रकार हैं:
अगर विवाह के बाद पति या पत्नी ने अपने विवाह बंधन के बाहर अन्य किसी और व्यक्ति से शारीरिक संबंध बनाए या संभोग किया तो वह जारता या व्यभिचार (adultery) कहलाता है और एक तरफ़ा तलाक का प्रमुख आधार बन सकता है।
विवाह के बाद यदि पति या पत्नी में से कोई भी एक दूसरे पर क्रूरता का व्यवहार करता है तो उसे तलाक लेने का आधार प्राप्त होता है। यह क्रूरता केवल शारीरक हिंसा ही नहीं अपितु अनावश्यक या बिना किसी उचित कारण से लगातार शारीरक संबंध बनाने से मना करना भी क्रूरता की श्रेणी में आता है।
तलाक के लिए अर्ज़ी डालने से ठीक पहले यदि पति या पत्नी दो वर्ष तक एक दूसरे से दूर रहे हैं, या पति या पत्नी ने एक दूसरे का त्याग किया है, तो यह एकतरफा तलाक का आधार है।
यदि विवाह संबंध में बंधने के बाद पति या पत्नी में से कोई एक भी सांसरिक उत्तरदायित्वों से विमुख होकर सन्यास ले लेता है तो दूसरा पक्ष एक तरफ़ा तलाक ले सकता है।
यदि पति या पत्नी में से किसी एक को भी कोई ऐसा असाध्य रोग है जो संक्रामक है और छूने से फैलता है तो यह एक तरफ़ा तलाक का आधार है।
यदि पति या पत्नी में से कोई एक कुष्ठ रोग से पीड़ित है तो दूसरा पक्ष एक तरफ़ा तलाक के लिए अर्ज़ी दे सकता है।
यदि विवाह के बाद पति या पत्नी में से कोई एक अपना धर्म परिवर्तित कर लेता है और किसी अन्य धर्म को अपना लेता है या नास्तिक बन जाए तो यह भी एकतरफा तलाक का आधार है।
यदि विवाह के बाद पति या पत्नी में से कोई एक किसी ऐसे मानसिक रोग से ग्रस्त हो जिसका इलाज नहीं हो सकता या उस मानसिक रोग के चलते उसके साथ रहना असंभव हो तो दूसरा पक्ष एक तरफ़ा तलाक के लिए अर्ज़ी दे सकता है।
यदि विवाह के बाद पति या पत्नी में से कोई एक भी 7 वर्ष या उससे अधिक के लिए गुम हो जाए, अर्थात उसकी कोई ख़बर न मिले तो उसे मृत मानकर न्यायालय पीड़ित पक्ष को भी एकतरफा तलाक के नियम के आधार पर तलाक की मंजूरी दे सकता है।
यदि आप अपने वैवाहिक जीवन से असन्तुष्ट हैं तो उपरलिखित आधारों के अनुसार न्यायालय में एक तरफ़ा तलाक के लिए अर्ज़ी दे सकते हैं। अब महिला या पुरुष किसी को भी बेमन या बेमेल विवाह में अधूरा जीवन जीने की आवश्यकता नहीं रह गई है।
अब आपको न्यायपालिका एकतरफा तलाक के नियम के साथ आधे-अधूरे और असंतुष्टि से भरे वैवाहिक जीवन से बाहर निकलकर एक बेहतर जीवन और जीवनसाथी चुनने का अवसर देती है।
मूल चित्र: Andrey Popov from Getty Images Pro, Canva Pro
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