कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

मुझे दूसरे का घर ज़्यादा प्यारा लगने लगा था…

मीना भी शादीशुदा थी और जब देखो अपने पति के प्यार के तराने गाती रहती थी। छवि को अक्सर जलन भी होती थी पर मन मसोस कर रह जाती थी।

मीना भी शादीशुदा थी और जब देखो अपने पति के प्यार के तराने गाती रहती थी। छवि को अक्सर जलन भी होती थी पर मन मसोस कर रह जाती थी।

“मीना! कहां रह गई घर पर कितना काम है और इसकी कोई खोज खबर नहीं। क्या कहूं इसे बोला था आज मेहमान आने वाले हैं। फिर भी…”

“छवि दीदी! लो मैं आ गई”, चहकती हुई मीना बोली।

मीना को देखते ही ना जाने कितना भी गुस्सा होता था छवि का उसकी एक मुस्कान से कहां चला जाता था।

“तुझे तो डांटने का भी जी नहीं करता। कहां रह गई थी बोला था ना जल्दी आने को?”

“अरे! दीदी आप नाहक ही परेशान हो रहीं। अभी देखो फटाफट सारा काम समेटती हूं।”

सच मीना के रहने से छवि को किसी भी बात की परेशानी नहीं होती थी। उसे ऐसा लगता था जैसे इस खोखली हवेली में कोई तो है उसकी थाह लेने वाला। वरना तो अरविंद से शादी के बाद तो जैसे बस दिन काट रही।

छवि जबसे इस घर शादी करके आई है अरविंद के शांतचित्त स्वभाव को ही देखा है। ना किसी बात का टोकना और ना कोई जबरदस्ती की डिमांड। बस अपने सरकारी कागजों के बीच ना जाने क्या दिमाग खपाते हैं ये।

छवि एक खुशमिजाज और स्वच्छंद विचारों वाली लड़की थी। पर‌ शादी के बाद से अरविंद के शांत स्वभाव में उसका अल्हड़पन कहीं खो सा गया। शायद मीना में मिले इस अल्हड़पन को देख वो अपने को जीने लगी थी।

अरविंद से लाखों शिकायतें थीं पर उनके शांत स्वभाव के आगे वो बोल नहीं पाती थी। डर लगता था ना जाने किस बात का बुरा लगे। वैसे आज तक अरविंद ने कभी किसी बात पर अपनी नाराज़गी या शिकायत भी नहीं की। फिर भी छवि को एक डर सा लगता था।

एक बार गांव में बैठे सास-ससुर ने पूछा भी, “बहुरिया सब ठीक है? अरविंद तुम्हें घुमाता फिराता तो है?”

लगा उसे एक बार में सब बोल दे कि ये घूमाते तो हैं। पर पियाजी दो शब्द के प्यार के नहीं बोलते… लेकिन छवि चुप रही।

मीना भी शादीशुदा थी और जब देखो अपने पति के प्यार के तराने गाती रहती थी। छवि को अक्सर जलन भी होती थी पर मन मसोस कर रह जाती थी। मीना भी छेड़ते उससे साहब की बात पूछती तो छवि हंस कर टाल देती।

तीन दिन होने को आए थे मीना का कुछ अता-पता नहीं चल रहा था। छवि भी उसके बिना बेचैन हुई जा रही थी। ना जाने क्यूं नहीं आई ये, सब कुशल तो होगा ना। ये सोच कर छवि चल दी मीना के घर।

छोटी गलियों और सकरी पगडंडियों से होते हुए वो मीना के घर पहुंची। सामने का हाल बयां करना मुश्किल था। पूरे शरीर में घावों के निशान थे।

“किसने ये हाल किया मीना तेरा और तूने बताया क्यूं नहीं? हे भगवान ये क्या हाल बना रखा और तेरा इतना चाहने वाला पति कहां है?” एक सांस में छवि पूछती जा रही थी।

मीना सिर झुकाए बोली, “माफ़ करना दीदी, उसी के दिए हुए तो जख्म हैं ये। आपसे भी क्या बोलती मैं… हमेशा झूठ ही तो बोला है। ये तो हर रोज की कहानी है दीदी, बस दो दिन पहले कुछ ज्यादा हो गया। वो मैंने उसे शराब के पैसे देने से मना कर दिया था ना…”

छवि बिना देर किए उसे अस्पताल लेकर गई और मरहम-पट्टी कराया। इधर उसे एहसास होने लगा था कि वो अरविंद को लेकर अपनी सोच पर कितनी गलत थी। घर पहुंच दौड़ते हुए अरविंद को गले लगा लिया।

“अरे! इतना प्यार करोगी धर्मपत्नी जी तो काम नहीं कर पाऊंगा। तुम रो क्यूं रही हो छवि? क्या मैंने कुछ ग़लत बोल दिया?”

“नहीं अरविंद ग़लत आप नहीं मैं थी, जिसे दूसरे का घरौंदा ज्यादा प्यारा लगने लगा था। आज सच्चाई सामने आई तो पता चला सच क्या है। शायद ये देखकर समझ आया आज की आपका और मेरा प्यार शब्दों का मोहताज नहीं।” ये कहकर छवि अरविंद के गले लग गई।

दोस्तों! कैसी लगी मेरी कहानी अपने विचार ज़रूर व्यक्त करें और साथ ही मुझे फाॅलो करना ना भूलें।

मूल चित्र : Still from Short Film Gibo, YouTube

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

80 Posts | 402,255 Views
All Categories