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इक रोज स्कूल की किताब में,पढ़ी इस रहस्य की गहराई।महसूस किया यौवन के नए नए रहस्य को।कई बार झेलना भी पड़ता था,कुछ कुछ समस्याओं को।
इक रोज स्कूल की किताब में,पढ़ी इस रहस्य की गहराई।महसूस किया यौवन केनए नए रहस्य को।कई बार झेलना भी पड़ता था,कुछ कुछ समस्याओं को।
बिटिया जरा जा कर दीपकसाँझ का जला दे,एक लोटा जल सवेरे तुलसी कोचढ़ा दे।
वो बरनी आम के अचार की रखी है,अचार निकालना पर संभाल कर।रहस्य लगते थे वो पांच दिन, माँ करातीमुझ से ज़ब ये काम बोल बोल कर।
फिर उम्र के उस पायदान पेमेरी देह भी आखिर पहुँच गई।माँ के संग संग मैं भी उस रहस्य कीराज़दार बन गई।
मैंने फिर महसूस किया यौवन केनए नए रहस्य को।कई बार झेलना भी पड़ता था,कुछ कुछ समस्याओं को।
इक रोज स्कूल की किताब में,पढ़ी इस रहस्य की गहराई।स्त्री रचती है जीवन कैसे,गौरव है ये बात समझ में आई।
मूल चित्र: Still from Short Film Motherhood
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