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पड़ोस की महिलाओं ने बबीता जी को तंज कसने शुरू कर दिए, “अगर बहू को कुछ सिखाया होता तो फटाफट कुछ बन जाता और ढील दो उसे।”
“बानी! बेटा कल पूजा है घर में तुमने अपने आफिस से छुट्टी तो ली है ना।”
“हाँ माँ जी! मैंने आज आफिस में बोल दिया था और मेरे कुछ सहयोगी और मित्र भी कल आएंगे। किसी भी प्रकार की सहायता की जरूरत हो तो आप उनसे बेझिझक बोलना।”
“बेटा! सहायता कैसी वो सब तो हमारे मेहमान होंगे। वैसे भी मैं हूँ ना सब संभाल लूंगी। बस तुम लोग समय से तैयार होकर मेहमानों पर ध्यान देना।”
कल बबिता जी के घर सत्यनारायण की पूजा है। अपने बेटे और बहू के लिए उन्होंने ये पूजा घर पर रखवाई है। उनकी बहू बानी स्वभाव से बहुत मृदुल और संस्कारी है। बबिता जी पर तो जान छिड़कती है वो।
बानी और प्रकाश एक ही आफिस में काम करते थे। संयोगवश एक-दूजे की पसंद बने और घर वालों की सहमति से विवाह भी हो गया। बानी जहां बाहर के कामों में ज्यादा दक्ष थी। वहीं वो रसोई के कामों में बिल्कुल कच्ची थी।
पर बबिता जी ने उसकी इस कमी को नजरंदाज कर उसे हर कदम पर सहायता करी। शायद खुशहाल परिवार की यही कुंजी भी होती है अगर एक-दूजे की कमियों को गिनाने की जगह उसे सुधारें। तो परिवार अंतर कलह से बच जाता है।
रात को पूरी तैयारी कर बबिता जी एक बार बानी से बात कर कल के लिए आश्वस्त हो लीं।
दूसरे दिन सुबह दरवाजे पर आम के पत्तों का तोरण सज गया। गेंदे के फूलों की लतर पूरे घर को खूबसूरत बना रही थी। वहीं धूप की भीनी-भीनी खुशबू पूरा वातावरण भक्तिमय कर चुकी थी।
“वाह! माँ इतनी अच्छी खुशबू हलवे की आ रही है। आज तो भगवान साक्षात भोग लगाकर जाएंगे।” बानी की बातें सुनकर बबिता जी हंस दीं।
तभी प्रकाश आकर बानी को छेड़ते हुए बोला, “माँ कुछ इसको भी बनाना सिखा दो। वरना कभी आप जाओगी बाहर तो ये तो मुझे भूखे भजन कराएगी।”
तभी बबिता जी प्रकाश को डपटते बोलीं, “ऐ! मेरी बहू को मेरे रहते एक शब्द ना बोलना। चल जा बाहर का सब देख मेहमानों के आने का समय हो गया।”
इधर एक-एक कर मेहमानों के आने का क्रम शुरू हो गया। साथ ही शुरू हुआ आना पड़ोस की उन महिलाओं का जो बबिता जी की बहू को नापसंद करती थीं। आते ही उन लोगों अपने कटाक्ष वाले प्रश्नों की लड़ी लगा दी।
“अरे! बानी तुम पूजा पाठ में कैसे तुम्हारे आफिस वालों ने छुट्टी दे दी? वैसे भी इस पूजा में तुम क्या कर पाओगी। तुमको तो घर के कामों की आदत कहां। तुम्हारी सास जो है हर काम के लिए घर पर।” बानी उन लोगों की बातों को नजरंदाज कर वहां से चली गई।
कुछ समय बाद उन लोगों ने बबिता जी को घेर लिया, “बबिता जी बहू ने कुछ काम किया भी की नहीं। वैसे इस बात पर आप बहुत अनलकी हो। अब मिसेज वाडिया को देखें मजाल है उनकी बहू बस बैठी रहे। वैसे भाग्य का खेल है ये हर किसी को एक समान चीजें नहीं मिलती। आपके भाग्य में तो जीवनपर्यंत खाना बनाना लिखा है।”
इधर उन लोगों की फिजूल की बातें अनसुनी कर बबिता जी ने वहां से हटने में भलाई समझी। इधर पूजा की विधि शुरु हुई पर ये क्या बिल्ली ने भोजन अशुद्ध कर दिया।
बबिता जी बोलीं, “हाय राम बिल्ली ने पूरा भोजन खराब कर दिया। अब तो समय भी नहीं क्या खिलाएंगे मेहमानों को।” सोचकर ये सब बबिता जी के हाथ-पांव फूलने लगे।
पड़ोस की उन महिलाओं ने तंज कसने शुरू कर दिए, “अगर बहू को कुछ सिखाया होता तो फटाफट कुछ बन जाता और ढील दो उसे।”
बानी ये सब बातें सुन रही थी और सबसे पहले उसने बबिता जी को शांत किया। बानी ने अपने सहयोगियों और दोस्तों से सहायता के लिए बोला तो सब खुशी-खुशी सहयोग देने को राज़ी हो गए। कुछ समय की मेहनत के बाद भोजन तैयार था।
तभी पूजा के बाद पड़ोस की महिलाएं तंज कसते हुए बोलीं, “अच्छा! बबिता जी चलते हैं हम लोग वैसे भी अब कहां कुछ खाने को मिलेगा और आप क्या अकेले सब करेंगी। यही सब बहू को सिखाया होता तो समय पर हो जाता।”
बबिता जी जो इतनी देर से चुप बैठी थीं अब बोल पड़ी, “आप सबको कहीं जाने की जरूरत नहीं है। सभी के लिए भोजन तैयार है और वो भी समय से। हाँ मैं मानती हूं कि मेरी बहू को भोजन बनाना नहीं आता। पर परस्थितियों से निपटना आसानी से आता है।”
“आज उसी की सहायता और हिम्मत का परिणाम है कि भोजन सही समय से तैयार हो गया। इसके लिए मैं उसके दोस्तों और सहयोगियों को दिल से धन्यवाद देती हूँ। वो उन लोगों में से नहीं थे जो सिर्फ नकारात्मक बातें करें। बल्कि उन्होंने ऐसे समय वक्त ना जाया करते हुए अपना बहुमूल्य सहयोग दिया।”
“हाँ! मुझे अपनी बहू पर फक्र है और कौन क्या कहता है मुझे इसकी ज़रा भी परवाह नहीं।” ये कहते हुए बबिता जी ने बानी को गले से लगा लिया। आज बानी की वजह से सभी काम सकुशल संपन्न हुआ था।
दूसरों के घरों को तोड़ने वाले बहुत से लोग होते हैं। पर बुद्धिमान वही होता है जो अनर्गल बातों को ध्यान में ना लाकर अपने दिमाग का सही प्रयोग कर रिश्तों को बचाए रखता है।
मूल चित्र: Still from Show Siya ke Ram, YouTube
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