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चल भी अब कितना इंतज़ार करेंगे, कब तक शादी और परिवार में ही फंसे रहेंगे। चल ना सहेली, फिर से अपना बचपन जी लेंगे।
चल ना, फिर से वही फ्रॉक पहनकर घूम लेते हैं, चल ना, दो चोटी बनाकर उसमें सुंदर क्लिप लगाते हैं, चल ना, चौपाटी पर गोलगप्पे ठूंस लेते हैं। चल ना, उस बंटी की साइकिल फिस्स कर देते हैं, चल ना सहेली, फिर से वही बचपन जी लेते हैं।
तू सुबह साइकिल पर आएगी और मेरे घर की घंटी बजाएगी, मैं दौड़ती हुई बाहर आऊंगी और तू तेज़ी से साइकिल घुमाएगी। तीसरी कक्षा के बाद आधी छुट्टी में हम कैंटीन जाएंगे, पैटी, मुरमुरा, टॉफी और करंट वाला चूरन खाएंगे। चल ना सहेली फिर से इन पलों को छीन लेते हैं, फिर से चलते हैं कहीं घूमने और बचपन जी लेते हैं।
छुट्टी वाले दिन तू और मैं पार्क जाएंगे, सबके साथ खेलेंगे और फिसलन फट्टी वाला झूला खाएंगे। चोट लगेगी तो फूंक मारकर भगाएंगे, फिर से हंसते हुए हम झूले पर चढ़ जाएंगे। चल ना फिर से वही झूले झूल लेते हैं, चल ना सहेली, फिर से बचपन जी लेते हैं।
रात को बिजली जाएगी, तू मेरी मुंडेर पर आएगी, घर की दीवारों से टंगकर हम चुटकुले सुनाएंगे। चल भी अब कितना इंतज़ार करेंगे, कब तक शादी और परिवार में ही फंसे रहेंगे? चल ना फिर से हम दोनों छिपन-छिपाई खेलेंगे, चल ना सहेली, फिर से अपना बचपन जी लेंगे।
मूल चित्र: Instants From Getty Images Signature via Canva Pro
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