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बीना को बहुत बुरा लगा और वह सोचने लगी कि दोनों बच्चों की डिलीवरी के समय वह मायके में ही रही और मम्मी पापा ने सारा खर्चा उठाया तब...
बीना को बहुत बुरा लगा और वह सोचने लगी कि दोनों बच्चों की डिलीवरी के समय वह मायके में ही रही और मम्मी पापा ने सारा खर्चा उठाया तब…
फोन की घंटी ना जाने कब से बजे जा रही थी। काम खत्म करके जरा देर के लिए ही बीना लेटी थी इसलिए बड़बड़ाती हुई आई और फोन उठाया।
उधर से जो कहा गया उसे सुनते ही वह चक्कर खाकर पास में पड़े सोफे पर बैठ गई। समझ में नहीं आ रहा था कि उसने क्या सुना और क्या समझा। तब तक उसकी सास भी किसी काम से आईं और बीना को इस तरह से बैठे देख कर पूछने लगीं, “क्या हो गया?”
रोते-रोते किसी तरह से उसने बताया, “हॉस्पिटल से फोन है, उसके मम्मी-पापा का एक्सीडेंट हो गया।”
सासू मां ने जल्दी से अपने बेटे नितिन को फोन लगाया। उसके आते ही तीनों हॉस्पिटल के लिए निकल पड़े। हॉस्पिटल पहुंचकर मालूम हुआ कि मम्मी पापा दोनों ही एक्सीडेंट स्थल पर ही नहीं रहे थे।
बीना का छोटा भाई अजय कॉरिडोर में बैठा हुआ फूट फूट कर रो रहा था। बहन को देखते ही दौड़ कर उसके गले से लिपट गया। अपने 25 साल के मंदबुद्धि भाई को गले से लगाकर बीना भी बिलख कर रोने लगी।
इसके बाद तो सभी कुछ नितिन ने संभाला। बीना के माता पिता उसी शहर में छोटे बेटे अजय के साथ रहते थे। बड़ा भाई विजय अपनी पत्नी के साथ बेंगलुरु में रहता था। दोनों कहीं जॉब करते थे। विजय के आने के बाद अंतिम संस्कार हुआ और जल्दी ही अन्य संस्कार करके हवन कर दिया गया।
विजय और उसकी पत्नी दोनों को ही अपने काम पर जल्दी पहुंचना था। अजय मंदबुद्धि था और माता-पिता को एक साथ गुजरते देखकर सहम कर रह गया था। अब उसे अपनी बीना दीदी मां जैसी लग रही थी। अपनी भाभी से तो वैसे ही वह कुछ डरता था।
जब विजय ने उससे अपने साथ बेंगलुरु चलने के लिए कहा तब वह रो करके बीना से कहने लगा, “दीदी मैं आपके साथ ही रहना चाहता हूं।” भाई के प्यार में ससुराल में किसी से पूछे बिना बीना ने इस बात की सहमति दे दी। मकान का एक हिस्सा किराए पर चढ़ा कर विजय बेंगलुरु लौट गया।
बीना अपने भाई को ले तो आई पर उसने यह नहीं सोचा था कि परिवार में उसे शामिल करना एक कठिन कार्य है। कुछ दिन तो सब ने सहानुभूति के साथ व्यवहार किया उसके बाद सब उससे परेशान होने लगे।
दोनों बच्चों को अपने दोस्तों के सामने अजय मामा को देखकर शर्मिंदगी होती थी। नितिन के मन में भी यह रहता था कि बीना का ध्यान अपने भाई पर ही रहता है। सासू मां भी अपने हाव-भाव से जता देती थी कि उन्हें अजय का रहना अच्छा नहीं लग रहा है।
बीना अजय को अलग से खाना खिलाती थी क्योंकि वह जानती थी उसके साथ बैठकर खाने में सब को बुरा लगेगा। वह सफाई के साथ खाना नहीं खा पाता था, गिराता रहता था। सासू मां को लगता था कि बीना कितना समय नष्ट करती है अपने भाई की देखभाल में।
अजय को गार्डन में काम करना बहुत अच्छा लगता था। उसकी मेहनत से बगीचा फूलों से भर गया था। एक दिन अजय बगीचे में काम करते हुए मिट्टी की वजह से गंदा हो रहा था तभी पड़ोस में रहने वाली मिसेज शर्मा आई और कहने लगीं, “आपका का माली बहुत अच्छा काम करता है हमारे घर काम करने के लिए भी कह दीजिए।”
यह सुनकर सास के चेहरे पर आई व्यंग्य भरी मुस्कान बीना को खल गई। सास को भी बुरा लगा जब बीना ने बता दिया कि यह उसका भाई है। इससे उनके स्टैंडर्ड पर चोट जो पहुंची। ऐसी ही घटनाएं होती रहती थी जहां घरवालों को अजय की वजह से शर्मिंदगी होती थी।
अजय को रहते हुए तीन महीने हो चुके थे। अब सब उससे ऊब चुके थे। अजय का खर्चा अभी तक तो केवल खाना खाना ही था। जब तब उसे सुनने को मिल जाता था कि बहन के घर में भाई का सम्मान नहीं होता। उन लोगों को यह डर था कि कहीं हमेशा के लिए अजय वही ना रह जाए।
जब बीना ने देखा कि उसके घर पहनने के कपड़े घिस गए हैं तब वह नए कपड़े ले आई। नितिन ने उसे सुना दिया कि घर का खर्च बहुत बढ़ गया है। बीना को बहुत बुरा लगा और वह सोचने लगी कि दोनों बच्चों की डिलीवरी के समय वह मायके में ही रही और मम्मी पापा ने सारा खर्चा उठाया तब किसी को ऐसा नहीं लगा उनका खर्चा कितना बढ़ गया होगा। अजय के तीन महीने यहां रहते ही सब को बुरा लगने लगा।
तीन महीने और बीत गए अब तक तो सभी लोग अजय के रहने से परेशान हो चुके थे। बीना मन ही मन सोचती थी कि कहने को तो उसे घर की मालकिन और गृह लक्ष्मी कहा जाता है लेकिन उसके पास इतना अधिकार नहीं है कि अपने भाई की देखभाल कर सके और उस पर कुछ पैसा खर्च कर सके।
फिर राखी का त्योहार आया। बीना सुबह से किचन में लगी थी क्योंकि ननद नंदोई आने वाले थे और विजय भी अपनी पत्नी के साथ आने वाले थे। आज उसने अन्य पकवानों के साथ खीर भी बनाई थी। अजय ने जैसे ही खीर देखी, बहुत खुश हुआ और कहने लगा उसे बहुत भूख लग रही है।
बीना को पता था कि अजय को खीर और पूड़ी बहुत अच्छी लगती है। वह अजय के लिए खीर और पूड़ी लेकर आ गई और उसे खिलाने लगी। तब तक उसकी सास आ गई और कहने लगी, “भगवान को भोग लगाया था या नहीं?”
उनके लहजे से समझ में आ रहा था कि यह बात उन्हें अच्छी नहीं लगी। बीना ने बताया कि भगवान का भोग लग चुका है, तब वे कहने लगीं, “देखो अंशु और जमाई जी आ चुके हैं, तुमने अभी तक उन्हें पानी के लिए भी नहीं पूछा। अंशु और नितिन ने कुछ भी नहीं खाया है पहले उनके टीके की तैयारी करो।”
बीना ने मन ही मन सोचा अपने बच्चों की भूख की परवाह है पर मेरे भाई की नहीं? खैर…
सभी लोग आंगन में बने चौक के चारों तरफ पड़ी कुर्सियों पर बैठ गए। सबसे पहले बीना की बेटी ने अपने भाई के तिलक लगाकर राखी बांधी। इसके बाद अंशु ने नितिन को राखी बांधी। हंसी मजाक के साथ राखी बांधी जा रही थी और उपहार दिए जा रहे थे, मिठाई खाई जा रही थी। अब तक विजय भी अपनी पत्नी के साथ आ गए थे।
अजय के साथ तो चाहे जैसा व्यवहार कर लिया जाए पर विजय को सम्मान देना ही पड़ता था क्योंकि दोनों पति-पत्नी अच्छा कमा रहे थे। आज के समय में पैसे का ही सम्मान है। दोनों भाइयों को एक साथ बैठाकर बीना ने तिलक लगाकर राखी बांधी। विजय ने अपनी जेब से निकालकर नोटों की एक मोटी गड्डी बहन की तरफ बढ़ाई।
उसे लेकर दोबारा विजय की जेब में डालते हुए बीना कहने लगी, “भैया मुझे रुपए नहीं चाहिए, मैं जो चाहती हूं मुझे दे दीजिए।”
विजय ने कहा, “हां बताओ तुम्हें क्या चाहिए?”
भाई के गले से लग कर रोती हुई बीना बोली, “अजय को अपने साथ ले जाइए।”
विजय ने कहा, “ठीक है वह तो वैसे ही मेरी जिम्मेदारी है, मैं ले जाऊंगा। वह तुम्हारे पास रहना चाहता था इसलिए यहां छोड़ दिया था।”
बीना कहने लगी, “बस इतना ही चाहिए था। भैया इसे यहां रखने की मेरी हैसियत नहीं है।”
सबके सामने ऐसा अपमान देखकर नितिन नाराज होकर बोला, “यह क्या कह रही हो?”
बीना बोली, “मैं आपकी हैसियत की बात नहीं कर रही मैं अपनी हैसियत की बात कर रही हूं। मैं एक साधारण गृहिणी हूं जिसके कर्तव्य होते हैं लेकिन अधिकार नहीं होते। मायके वालों से खर्च कराना मुझे जैसी महिलाओं का हक होता है लेकिन मायके में कोई चाहे कितना भी मजबूर हो उस पर खर्च नहीं कर सकती। मुझे यह बात नहीं पता थी इसलिए अजय को यहां रख लिया था पर अब समझ में आ गया है कि मैं गलत थी।”
सबके सामने यह सुनकर नितिन और उसकी मां बहुत शर्मिंदा हुए। बच्चे भी सहमे से खड़े थे क्योंकि उन्होंने भी अजय मामा का कई बार अपमान किया था। इसके बाद अजय का माथा चूमती हुई बीना बोली, “मेरा राजा भैया अपने घर जाएगा ना?”
अजय मंदबुद्धि था पर दीदी को रोते देख कर समझ गया कि उसका जाना ही सही होगा। रोते-रोते बोला, “हां दीदी तुम चुप हो जाओ मैं चला जाऊंगा।”
विजय ने अपने दोनों भाई बहनों को गले से लगा लिया और कहने लगा, “पापा मम्मी नहीं हैं तो क्या मैं तो हूं। तुम दोनों को किसी बात की चिंता करने की जरूरत नहीं है।”
नोटों की गड्डी बीना की सास के हाथ में देते हुए विजय बोला, “आप रखिए यह तो नहीं ले रही है।” सास के चेहरे पर शर्मिंदगी थी क्योंकि उन्हें समझ आ गया था कि उन सबने अजय से दुर्व्यवहार करके बीना के मन को कितनी चोट पहुंचाई है। वह समझ गई कि विजय ने अजय पर खर्च करने के बदले में नोटों की गड्डी पकड़ाई है।
कुछ देर बाद विजय और उसकी पत्नी अजय को अपने साथ लेकर चले गए। बीना के चेहरे पर संतोष का भाव था लेकिन नितिन और उसकी मां बहुत लज्जित थे। सोच रहे थे कि उनमें इतना भी धैर्य नहीं था कि देख सकते अजय पहले ही मानसिक बीमार था ऊपर से माता पिता के जाने का दु:ख। ऐसे समय में दीदी उसे मां जैसी लग रही थी, उसके पास रहने से ही खुद को सुरक्षित समझ रहा था। दोनों भाई बहनों को ऐसे समय में भी उन्होंने कितना परेशान किया।
अपने इतने हृदय हीन व्यवहार के कारण वे लोग बीना से नज़रें नहीं मिला पा रहे थे…
मूल चित्र : Still from Short Film Sankari Bahu, YouTube
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