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अगर मेरा देवर हमारे घर रह सकता है तो मेरी बहन क्यों नहीं?

सब अच्छे से चल रहा था। मीतू और सुदीप को ज्योति के वहां होने से कोई परेशानि नहीं थी ‌बल्कि वह दोनों ‌उसके वहाँ होने ‌से‌ बहुत ‌खुश थे।

सब अच्छे से चल रहा था। मीतू और सुदीप को ज्योति के वहां होने से कोई परेशानि नहीं थी ‌बल्कि वह दोनों ‌उसके वहाँ होने ‌से‌ बहुत ‌खुश थे।

मीतू मध्यप्रदेश के एक छोटे से शहर में अपने परिवार के साथ रहती थी। उसकी मां घरेलू औरत, पिताजी एक स्कूल के प्रिंसिपल, और उसकी छोटी बहन ज्योति अपनी कालेज की पढ़ाई कर रही थी। खुद मीतू एक स्कूल में इंग्लिश की टीचर थी।

मीतू के माता पिता कुछ वक्त से उसके लिए लड़का देख रहे थे। आखिर वह अब २७ वर्ष की हो गई थी। पढ़ा-लिखा परिवार और खुले विचारों के होने के कारण शादी के लिए ‌कभी भी जल्दबाजी नहीं करी थी।

फिर एक दिन उन लोगों ‌को एक अपने जैसा परिवार मिला जो पढ़े लिखे और खुले विचारों वाले थे। एक ही मीटिंग में मीतू को सुदीप भा गया और सुदीप को‌ मीतू। दोनों को लगा ‌की उन दोनों ‌के विचार बहुत मिलते हैं। परिणाम स्वरूप शादी के लिए ‌दोनो तरफ से हां हो गई।

सुदीप एक बहुत संस्कारी लड़का ‌था। उसके भी दो छोटे भाई (कमल और तरूण) थे‌  और वह सब भी उसी शहर में रहते थे जिस में मीतू रहती थी। सुदीप पिछले एक साल से  अपनी नौकरी की वजह से मुम्बई में रहता था।

मीतू मानसिक तौर पे बिल्कुल तैयार थी वह अपने पति के साथ कहीं भी चली जाएगी इस लिए मुम्बई जाने में उसे कोई कष्ट नहीं था। एक महीने में शादी हो गई और करीब १५ दिनों में वह दोनों मुम्बई ‌के लिए रवाना हो गए। दोनों साथ में बहुत खुश थे।‌

उनकी शादी को अभी लगभग एक साल ‌हुआ था जब मीतू को एक खबर मिली की उसकी छोटी बहन ज्योति को एक नौकरी मिल गई है और अपनी बहन के मुम्बई  में होने के कारण ज्योति ने और उनके माता-पिता ने उसे मुम्बई जाने की रजामंदी दे दी है। यह सुन कर दोनों मीतू और सुदीप बहुत खुश हुए। कुछ दिनों में ज्योति ने मुम्बई में वह नौकरी शुरू कर दी और अपनी दीदी जीजाजी के साथ रहने लगी।

ज्योति भी अपनी बहन की तरह बहुत समझदार थी। उसे यह अच्छे से पता था की उसे ऐसा कोई‌‌ काम नहीं करना है जिस से उसकी बहन और जीजा जी को कोई भी ‌तकलीफ मिले। वह उनके घर पे रह कर उनके हिसाब से चले, घर के कामों में मदद करे, घर के खर्चों में सहयोग दें और परिवार बन‌के‌ रहे, यह उसकी इच्छा थी।

सब अच्छे से चल रहा था। मीतू और सुदीप को ज्योति के वहां होने से कोई परेशानि नहीं थी ‌बल्कि वह दोनों ‌उसके उन दोनों के साथ होने ‌से‌ बहुत ‌खुश थे।

पांच महीनों ‌बाद सुदीप की मां कांता अपने बेटे बहू के घर रहने आई।‌ दो तीन महीने के बाद उनकी वापसी ‌थी। उन्हें अच्छा लगा कि ज्योति भी उनके साथ बड़े प्यार से रह रही थी।

लगभग एक महीने तक वह शांत रही पर फिर उनको ज्योति का वहां रहना खटकने लगा।‌ धीरे ‌धीरे उनका व्यवहार ज्योति की तरफ बदलने लगा। बहुत दिनों तक तो ज्योति कुछ महसूस नहीं कर पाई पर फिर उसे कुछ कुछ समझ आने लगा। कांता का व्यवहार धीरे धीरे बद‌ से बद्तर होने ‌लगा पर ज्योति यह समझ नहीं पाई की उसका कसूर क्या है।

एक दिन कांता के सबर का‌ बांध ‌टूट गया‌ और वह‌ मीतू से कहने ‌लगीं, “ज्योति का इस तरह अपनी‌ बहन‌ के घर पे रहना ठीक नहीं है।”

मीतू कुछ हैरान हुई फिर भी उसने पुछा, “क्यों मां? मेरी छोटी बहन‌ है। यहां ‌हमारे इलावा कोई है भी तो नहीं।‌ हम उसका ख्याल नहीं रखेंगे तो ‌कौन रखेगा?”

इस पर कांता बोलीं, “पर वह‌‌ एक लड़की है, एक जवान लड़की और वह भी कुंवारी।”

यह‌ सुन‌ के मीतू का पारा बढ़ गया।

“तो मां जी उस हिसाब से कल को कमल या‌ तरुण कभी किसी काम से मुम्बई आए तो वह‌ भी हमारे साथ नहीं रह सकते ‌कयोकि वह दोनों भी जवान लड़के हैं और वह भी कुंवारे।”

यह सुन के कांता गुस्से से भर गई और वहां से बड़बड़ाते हुए चली गईं।

ज्योति उस दिन आफिस से घर थोड़ा जल्दी आ गई ‌थी जिस की वजह से उसने मीतू और कांता के बीच की बहस सुनली और समझ गई ‌की‌ मीतू की सास का व्यवहार उसकी ‌तरफ क्यों बदल गया था। उसने किसी‌ को‌ कुछ बताए बिना यह तय कर लिया ‌की वह अब जल्दी से जल्दी ‌कहीं और रहेगी, अपने दीदी जीजाजी के घर के पास ही पर अपनी ‌दीदी के घर में किसी भी वजह से क्लेश का कारण नहीं बनेगी।

अपनी किसी सहकर्मी के साथ रहने का प्रबंध किया और‌ जल्दी से जल्दी वहां से चली गईं।

यह एक सच्ची कथा‌ है।

अब प्रश्न ये उठते‌ हैं कि क्या एक बार एक बेटी की शादी हो जाये तो उसकी अपने परिवार के प्रति सब जिम्मेदारी खत्म हो जाती है?

क्या अपने परिवार पे उसका कोई हक नहीं रहता? लड़के का परिवार ही अब उसका परिवार ‌हो‌ जाता है?

एक लड़की अपनी बहन के साथ नहीं रहनी चाहिए पर एक लड़के का भाई अपने भाई के साथ पूरे हक से यह सकता?

क्यों नहीं एक शादी की सारी जिम्मेदारी लड़की लड़के दोनों पे डाली जाती?

अगर लड़की को अपने ससुराल वालों की देखभाल करना सिखाया जाता है तो एक लड़के को भी अपने ससुराल वालों की देखभाल करना क्यों नहीं सिखाया जाता?

और, अगर एक लड़का अपनी जिम्मेदारी निभाने लगता है तो उसे जैसे तैसे रोका क्यों जाता है?
क्या यहां बदलाव की जरूरत नहीं ‌है?

मुझे इंतज़ार रहेगा आपकी प्रतिक्रिया का…

मूल चित्र : Still from Pinki ki Shaadi, YouTube

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Ruchi

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