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क्यों जींस पहनने के कारण अपनी ही बेटी की जान ली परिवारवालों ने?

उत्तर प्रदेश की नेहा ने परिवार की तानाशाही मानने से इंकार कर जीन्स पहन कर बाहर जाना चाहा तो परिवारवालों ने उसकी हत्या कर दी।

उत्तर प्रदेश की नेहा ने परिवार की तानाशाही मानने से इंकार कर जीन्स पहन कर बाहर जाना चाहा तो परिवारवालों ने उसकी हत्या कर दी।

ट्रिगर वार्निंग : इस लेख में हिंसा/हत्या का विवरण है जो आपको परेशान कर सकता है

बीबीसी की इस खबर के मुताबिक, उत्तर प्रदेश के देवरिया में १७ साल की नेहा पासवान को उसके दादा और चाचाओं ने मिल कर मार दिया। दुःख की बात है कि इंसानियत को शर्मसार करता ये घिनौना अपराध नेहा के परिवार के लोगों ने मिल कर किया था, जिसमें उसकी दादी और चाचियाँ भी शामिल थी। ऐसा नेहा की माँ का कहना है। उन्होंने ने बताया की घर के बाकी सदस्यों को नेहा का जीन्स पहनना पसंद नहीं था। इसीलिए उन्होंने नेहा को पीट-पीट कर मार डाला।

मैं स्तब्ध हूँ… 

हाँ, आपने बिलकुल सही पढ़ा है। नेहा की हत्या जीन्स पहनने की वजह से की गयी है। यह सुन कर क्या आप सभी भी बुरी तरह स्तब्ध हो गए हैं? मैं स्तब्ध हूँ। एक बच्ची की जान की क़ीमत हमारे देश में उसके पहने कपड़ों से तय की जाती है? कहाँ है वो समाज जो कहता है की हमारे देश की लड़कियां स्वतंत्र हो कर अपना निर्णय स्वंय लेती हैं? जिनके पास अपनी पसंद के कपड़े पहनने तक का हक़ न हो वो कौन से निर्णय लेने को स्वतंत्र होंगी ये हम सभी समझ सकते हैं। 

लड़कियों का सवाल करना आज भी प्रतिषिद्ध है

नेहा की माँ ने पुलिस को बताया कि नेहा के दादा और चाचाओं ने उसे जीन्स पहनने से माना कर रखा था। पर, उसने परिवार की तानाशाही मानने से इंकार कर जीन्स पहन कर बाहर जाना चाहा। सवाल किया कि वो ऐसा क्यों नहीं कर सकती है? उसे नहीं पता था कि लड़कियों का सवाल करना आज भी प्रतिषिद्ध है हमारे समाज में। जिसकी क़ीमत उस मासूम सी बच्ची को अपनी जान गँवा कर देनी पड़ी। 

यह “ज़िम्मेदार वर्ग” अपने घिनौने अपराध को समाज कल्याण का नाम देता है

इसी महीने मध्य प्रदेश के धार और अलीराजपुर में महिलाओं को उनके परिवारवालों ने बेरहमी से पीटा। यहाँ भी अत्याचार का कारण वही था। परिवार की लड़कियों की सोच का परिवार के बाकी सदस्यों की सोच से भिन्न होना।

सरेआम महिलाओं को प्रताड़ित कर समाज का यह “ज़िम्मेदार वर्ग” अपने घिनौने अपराध को समाज कल्याण का नाम देता है। दोबारा कोई स्त्री मर्दों की बनायी लक्ष्मण रेखा को पार करने का साहस न करे, इसलिए वो अपने अपराधों को उदहारण की तरह सबके सामने अंजाम देते हैं।

ऐसे अपराधों की कई वीडिओज़ सामने आती हैं, जिन्हें देख कर ऐसा लगता है मानो वो सब अपने जघन्य अपराध को उत्सव का रूप देते हों। विडम्बना है कि रूढ़िवादी सोच रखने वाली महिलाएं भी उनका ऐसे अपराधों में साथ देती दिखाइए देतीं हैं। 

पर, क्या यही है हमारा प्रगतिशील भारत?         

दुनिया में भारत की पहचान एक शक्तिशाली और उन्नतिशील देश के रूप में हो रही है, जिसपर हम सभी को गर्व है। पर, क्या यही है हमारा प्रगतिशील भारत? आए-दिन एक के बाद एक ऐसी मन को आहत करने वाली घटनाएं घटती जा रहीं हैं पर हमारा समाज झूठ का बिगुल बजाते हुए सब घटनाओं को नज़रअंदाज़ कर आगे बढ़ता जा रहा है। अख़बार, टेलीविज़न और सोशल मीडिया पर महिलाओं के साथ हो रहे अपराधों की खबरें रोज़ आया करती हैं। यहाँ ग़ौर करने वाली बात यह है कि आंकड़े इन खबरों से कहीं अधिक हैं क्योंकि हर अपराध को अख़बार या सोशल मीडिया पर जगह नहीं मिलती है। 

क्या परिवार की इज़्ज़त लड़कियों के कपड़ों से तय होती है?

कब तक हम महिलाओं को अपने जीवन से जुड़े अदने से निर्णयों के लिए भी परिवार के सदस्यों का मुँह ताकना होगा? समानता तो दूर की बात है हमारे देश के कई हिस्सों में महिलाओं को बुनियादी मानवाधिकार से भी वंचित रखा जाता है। क्यों स्त्रीओं को परिवार की इज़्ज़त का बोझ उठाना पड़ता है? और क्या परिवार की इज़्ज़त लड़कियों के कपड़ों से तय होती है? ऐसे कई सवाल पीछे छोड़ नेहा इस दुनिया को अलविदा कह चली गयी।

मूल चित्र: Abhishek Vyas from Getty Images via Canva Pro(for representational purpose only)

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Ashlesha Thakur

Ashlesha Thakur started her foray into the world of media at the age of 7 as a child artist on All India Radio. After finishing her education she joined a Television News channel as a read more...

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