कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

मुझे अब एक नयी शुरुआत करनी होगी…

इतने में अनुपमा कमरे से बाहर आयी और उन दोनों के गले से लिपटकर बहुत जोर से रोने लगी, मानो जैसे बहुत दिनों बाद मन में समाया गुबार निकला हो।

इतने में अनुपमा कमरे से बाहर आयी और उन दोनों के गले से लिपटकर बहुत जोर से रोने लगी, मानो जैसे बहुत दिनों बाद मन में समाया गुबार निकला हो।

अनुपमा भाग 2 में अब तक आपने पढ़ा :

सुनकर वत्‍सला हतप्रभ रह गई और सोचने लगी कि इतनी परेशानियों से जूझने के बाद भी वह नौकरी करने का दमखम रख रही है। मन ही मन सोचते हुए वह राजी से पूछ ही बैठी, “अनुपमा के पति तो फौज में कर्नल थे न? तो फिर उन्‍हें मासिक पेंशन तो मिलती ही होगी?”

राजी बोली, “मिलती तो है, पर सभी जगह पर भारतीय सरकार के अलग-अलग नियम और कानून जो निर्धारित हैं, उन नियमों के अनुसार उतने वर्षो की उनकी नौकरी की उम्र हुई नहीं थीं न।”

इतने में कंडेक्‍टर ने कहा, “आपका स्टैंड आ गया।” दोनों उतर गईं बस से।

अब आगे 

फिर दूसरे दिन राजी और वत्सला ऑफिस पहुंची। पता चलता है कि अनुपमा आज ऑफिस नहीं आई है। वह कारण जानने के लिए अनुपमा को फोन लगाती हैं, तो उसका भाई विजय उठाता है और बताता है, “कंवल की तबियत ठीक नहीं थी, तो दीदी का मन ऑफ़िस जाने का नहीं हो रहा था उस पर न जाने दीदी की सासु मॉं ने ऐसा क्‍या कह दिया कि दीदी जब से रोए जा रही हैं। बस इसीलिए वे आज ऑफिस नहीं गयी और यहां आ गई।”

इतना सुनते ही राजी और वत्‍सला शाम को ऑफ़िस के पश्‍चात अनुपमा से मिलने जाने का प्लान बनाने लगीं। वैसे वे बहुत करीबी दोस्त तो नहीं थे, पर इंसानियत के नाते कोई फर्ज बनता था कि नहीं?

इतनी सब परेशानियों को झेलने के पश्‍चात भी पता नहीं अनुपमा में कुछ तो ऐसी बात थी कि वो अपने अपनत्‍व की भावना से सबका दिल लुभा लेती, चाहे घर हो या बाहर। सिर्फ उसके सास-ससुर ही उसे उनके बेटे अशोक की मृत्‍यु के पश्‍चात सहायता करने के बजाए उसको परेशान करने में लगे रहते थे।

फिर शाम को राजी और वत्‍सला अनुपमा के मायके पहुँच गयीं। वहाँ उसकी मॉं बताती हैं, “जब से ससुराल से आई है अनुपमा, ऐसे ही गुमसुम सी बैठी है। कंवल की तबियत ठीक नहीं है, सो अलग। हम आखिर करें तो क्‍या, कुछ भी समझ में नहीं आ रहा। पता नहीं बिटिया ऐसा क्या कह दिया समधन जी ने? हो सकता है, आप लोगों को बता दे।”

इतने में अनुपमा अपने कमरे से बाहर आयी और उन दोनों के गले से लिपटकर बहुत जोर से रोने लगी, मानो जैसे बहुत दिनों बाद मन में समाया गुबार निकला हो।

पति के निधन के बाद ठीक से रो भी नहीं पाई थी वो। एक तो कंवल छोटा था और सास-ससुर ताने देते हुए अपने बेटे की मौत का दोषी अनुपमा को ही ठहराने लगे। उन्‍होंने ये तो सोचा ही नहीं कि दोनों के विवाह को ज्‍यादा दिन भी नहीं हुए थे और तो और अशोक ने अपने बच्‍चे का मुँह तक नहीं देखा था।

अचानक देश की बॉर्डर पर हमला हो जाने के कारण उनको देश सेवा की खातिर जाना पड़ा। पर हॉं वे जाते-जाते छोटे भाई राजीव को जरूर गले लगाते हुए बोले कि अपनी भाभी का हमेशा ख्याल रखना। आखिर वह फौजी था, तो उसकी हमेशा ही जान जोखिम में ही रहती और यह उसे अच्‍छी तरह से पता था कि उनके माता-पिता किस तरह से पुरानी कुरीतियों में जकड़े हुए हैं।

विवाह के बाद पहली संतान चाहे बेटा हो या बेटी, उसे देश की सेवा की खातिर फौज में ही भर्ती कराएंगे, ये सपना दोनों ने देखा था। फिर भी जिंदगी के हर पायदान पर खट्टी-मीठी परिस्थितियों का सामना डटकर करने वाली अनुपमा अबोल रहकर ही अपनी ससुराल में झूठे समाज और सास-ससुर की रूसवाईयों तले दबी जा रही थी।

एक विवाहोपरांत पति का सानिध्‍य पूर्ण रूप से न मिल पाना, पारिवारिक रिश्‍तों की गहराइयों को न जान पाना और अचानक ही पतिदेव का शहीद हो जाना, इन्‍हीं सब कठिनाईयों के बीच अनुपमा ने फूल जैसे पुत्र कंवल को जन्‍म दिया, तत्‍पश्‍चात मॉं, भाई और देवर राजीव का ही सहयोग रह गया था अब उसकी ज़िन्दगी में।

कंवल के जन्‍म लेने से ससुराल में धीरे-धीरे अनुपमा वर्तमान जिंदगी को स्‍वीकारते हुए ढलती जा रही थी और उसके पालन-पोषण के साथ ही नौकरी करने की ठानकर ही वह घर से बाहर निकली ताकि पतिदेव के साथ सोचे हुए सपने को साकार कर सके। वैसे भी घर में रहकर क्‍या करना था उसे? उसने सोचा चाहे एक नया अनुभव लेना पड़े पर जिंदगी में, उसे अब एक नई शुरूआत के लिए पहल तो करनी ही पड़ेगी न? और इस मुहीम में देवर राजीव का नितांत सहयोग था, कंवल की देखरेख, अनुपमा को मानसिक और आर्थिक सहयोग के साथ ऑफ़िस छोड़ना और लाना वही करता।

यह सब अनुपमा की मॉं और भाई विजय से सुनाने के बाद राजी और वत्‍सला के रोंगटे खड़े हो गए।वह साथ ही सोचने लगीं कि इतनी कठिनाईयों से गुजरने के बाद भी अनुपमा पूर्ण आत्‍मविश्‍वास और हौसले के साथ अपनी ज़िंदिगी को जी रही थी। उसकी मॉं और भाई भी उसकी हौसला अफजाई के लिए हरदम साथ थे। तभी उस दिन अनुपमा ऑफ़िस में किसी के भी बोलने की परवाह किए बिना ही अपने देवर के साथ घर को हो ली।

ऑथर नोट : कहानी में आगे क्या हुआ की उत्सुकता बनाए हुए यदि इच्छुक हों तो पढ़ते रहिए लगातार! जी हॉं साथियों, भाग-4 का इंतजार करिएगा, इंतजार में जो मजा है, वो किसी में नहीं।

कहानी के सब भाग पढ़ें यहां –

अनुपमा भाग 1

अनुपमा भाग 2

अनुपमा भाग 3

अनुपमा भाग  4

मूल चित्र: Still from Tum Hi Hamaare/KumKum Bhagya, YouTube(for representational purpose only)

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

59 Posts | 233,348 Views
All Categories