कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
रमन ने लड़खड़ाती जुबान में डरते हुए कहा, “माँ, आप यहाँ? क्या हुआ? अंदर आइये ना, आप दरवाजे पर क्यों खड़ी हैं?”
सरला जी कमरे में बैठकर टीवी देख रही थी तभी उनको याद आया कि अब तक उनकी बहु के घर से त्यौहार का समान नहीं आया। उन्होंने अपनी बहू रश्मि को आवाज लगाते हुए कहा, “बहु यहाँ तो आना जरा।”
“जी माँजी आपने बुलाया कुछ काम था क्या?”
“अरे! बहु इस साल अभी तक तुम्हारे मायके से होली नहीं आयी । पिछली साल तो तुम वहाँ थी तो कोई बात नही लेकिन इस बार तो भेजनी चाहिए ना तुम्हारे मायके वालों को होली। आखिर ये उनका कर्तव्य बनता है।”
“मेरी सभी सहेलियों में सबके बहू के मायके से होली के उपहार आ गए है सिर्फ तुम्हारे ही मायके से अभी तक कुछ नहीं आया है सब ने अगर होली के दिन मुझ से पूछ लिया तो मैं क्या जवाब दूँगी?”
इतना सुनकर रश्मि ने अपने सास से कहा, “माँ जी लोग सब गीले शिकवे भूलकर एक दूसरे के साथ मिलकर त्यौहार मनाते है लेकिन हम लोगों ने हर त्यौहार को लेन-देन का त्यौहार बना के रख दिया है। कहाँ और किस ग्रन्थ पुराण में ये सब लिखा है कि बहु के घर से बिना होली आये होली नहीं मनाई जाएगी।”
सरला जी ने गुस्से में रश्मि से कहा, “हर बात में तुम ज्यादा लेक्चर मत दिया करो जितना बोला जाए उतना ही सुना करो और किया करो समझी? तुम्हारे माँ बाप ने तो पहले ही मेरा नाक कटवा कर रख दी है, शादी में कोई भी ढंग की चीज ना दे कर। तब तो मैंने कैसे कैसे बहाना बनाकर तुम्हारे मायके वालों की इज्ज़त ढकी थी, अब तुम क्या चाहती हो कि मैं हर बार समाज मे सबके सामने बहाना करती रहूं?”
रश्मि क्या कहती, उसको पहले से ही पता था कि सास को किसी बात से कोई फर्क नही पड़ने वाला, वो तो बस अपना हुकुम चलाना जानती है।
रश्मि सोचने लगी कि उसकी माँ ने तो पहले ही फोन करके बता दिया है कि बेटी इस बार हम लोग होली तुझे नहीं पहुंचा पाएंगे क्योंकि तुम्हारे पापा की तबियत ठीक नही है, और तुम्हारे भाई भाभी से कहकर कोई फायदा नही क्योंकि तुम तो जानती हो जिनको माँ बाप से नही मतलब, उनसे कोई उम्मीद रखना ही बेकार है।
दरअसल रश्मि के बड़े भाई भाभी उसकी शादी से पहले ही अलग हो गए थे, और घर से कोई मतलब नही रखते थे बचत के पैसों और जैसे तैसे जुगाड़ करके रश्मि के पापा ने उसकी शादी कर दी।
रश्मि शाम का खाना बना रही थी और मन ही मन सोच रही थी कि लोग कहते है समाज बदल गया है लेकिन आज भी ये त्यौहार और रीति रिवाज के नाम पर लड़की वालों से लेने के रस्मों में कोई बदलाव नही आया है आज भी लोग बहू को दहेज देने वाली मशीन क्यों समझ लेते हैं।
रात मे जब रश्मि अपने कमरे में गयी तो अपने पति रमन से बिना कुछ बोले चुपचाप बिस्तर पर करवट बदल कर सो गई। हमेशा बोलते रहने वाली रश्मि को आज यू चुपचाप देखकर रमन ने कहा, “क्या हो गया? इतना उदास क्यों हो?”
रश्मि ने सिर्फ दो टूक जवाब दिया, “कुछ नहीं, बस ऐसे ही मन नहीं है।”
तब रमन ने रश्मि के सिर पर प्यार से सहलाते हुए कहा, “रश्मि इतना तो हम एक दूसरे को जानते है कि कब कौन उदास है इसको हम दोनों ही अच्छे से महसूस कर सकते हैं, आखिर इसी को तो जीवनसाथी कहते हैं, प्लीज बताओ क्या बात है?”
इतना सुनते रश्मि की आंखों से आंसू झलक पड़े उसने रमन से दिन की सारी बातें बता दी।
तब रमन ने मुस्कुराते हुए कहा, “अच्छा तो ये समस्या है! देखो रश्मि, मम्मी की बातों को दिल से मत लगाया करो, परिवार में कुछ बातों को इग्नोर भी करना होता है तो बस ऐसी बातों को इग्नोर करके, तुम खुश रहा करो बस।”
तब रश्मि ने कहा, “कोई कैसे खुश रहेगा रमन, जब कोई किसी को दिन भर ताने मारते रहेगा तो, मैं इतनी महान नही, कि हर बार हर बात इग्नोर कर सकूं। मैं इंसान हुँ और मुझे बुरा लगता है।”
अगले दिन रात में रमन ने अपनी मां से कहा, “माँ ये लो बीस हजार रुपये, रश्मि के पापा ने मेरे एकाउंट में भेजे है फोन करके बोला आप को देने के लिए क्यूंकि वो इस बार घर पर नही आ पाएंगे। उनकी तबियत शायद ठीक नहीं। वो आपको फोन लगा रहे थे शायद लगा नहीं, इसलिए मुझे फोन करके बोल दिया।”
सरला जी ने कहा, “अच्छा कोई बात नहीं! नहीं आ पाएंगे तो पैसे डालकर तो बड़ा अच्छा काम किया उन्होंने, ये भी ठीक है कि अब अपनी पसंद का सामान ले लूंगी।”
रमन जैसी ही वहाँ से उठकर अपने कमरे में आया, पीछे से रश्मि भी कमरे में आ गई।
उसने कहा, “रमन! तुम्हें क्या जरूरत थी झूठ बोलने की?”
रमन ने कहा, “कैसा झूठ?”
रश्मि ने कहा, “अभी जो तो तुमने माँजी से बोला कि तुम्हारे एकाउंट में पापा ने पैसे भेजे है, आखिर कब तक इस झूठ को बोल पाओगे और क्या फायदा इसका और जब ये तुम्हारे झूठ का सच जिस दिन माँजी के सामने आएगा तब क्या होगा ये भी सोचा है तुमने?”
तब रमन ने रश्मि को अपनी बाहों में लेते हुए कहा, “देखो रश्मि जो तुम कह रही हो वो बिलकुल सही है लेकिन ना तो हमारा जीवन कोई फ़िल्म है जो अभी हम माँ को समझाएंगे और माँ को बात समझ आ जायेगी, और ना कोई कहानी जो अच्छी अच्छी बातें लिख देंगे या बोल देने से काम हो जाएगा। अभी तो मुझे यही ठीक लगा तो मैने ये कर दिया। बाद का बाद में देखा जाएगा।”
“और अगर मुझे तुम्हें और माँ को खुश रखने के लिए, इस घर की सुख शांति बनाए रखने के लिए अगर पूरी उम्र ये झूठ बोलना पड़े तो मैं बोलने के लिए तैयार हूँ।”
इतना कहते रमन की नजर दरवाजे की तरफ गयी तो देखा सामने सरला जी खड़ी है। उसने लड़खड़ाती जुबान में डरते हुए कहा, “माँ आप यहाँ? क्या हुआ? अंदर आइये ना आप, दरवाजे पर क्यों खड़ी हैं?”
कमरे में अंदर आते हुए सरला जी ने रश्मि को गले से लगाते हुए कहा, “बहु होली मुबारक हो, तुम सही कह रही हो आखिर कब तक ये झूठा दिखावा हम करते रहेंगे? त्यौहार पर नेग लेने देने की प्रथा को बंद करके हमे उसे प्यार और खुशियों के साथ मनाने की शुरूआत कही ना कही से तो करनी ही होगी ना, तो अब मैं खुद के घर से ही शुरुआत करूँगी, अब कोई ताने नहीं देगा तुमको नेग और उपहार को लेकर, ये मेरा वादा है तुमसे।”
“और तू इतना बड़ा हो गया कि माँ से झूठ बोलना सीख गया। और तो और साथ मे मेरी बहु को भी झूठ बोलना सीखा रहा है। वैसे मैं तो तुझे पूछने आयी थी कि ये तो 25 हजार हैं तूने अधिक पैसे क्यों दिए लेकिन यहाँ तो बात ही कुछ और थी। बेटा एक झूठ को छिपाने के लिए सौ झूठ बोलने होते हैं इस बात को हमेशा याद रखना। वैसे अब भी मैं तुझे ये पैसे वापिस तो नही दूँगी क्योंकि अब तेरी ये झुठ बोलने की सजा है इससे हम सास बहू शॉपिंग करेंगे। समझा?”
“अरे! माँ वो पांच हजार एक्स्ट्रा तो मेरे जेब खर्च के थे जो मैंने निकाले थे वो तो दे दो कम से कम आप मुझे, आप सास बहू के चक्कर मे मेरा तो नुकसान हो गया!” रमन के इतना कहते ही रश्मि और सरला जी हँसने लगी।
मूल चित्र: Still from Seedhi Baat/Life Tak, Youtube
read more...
Please enter your email address