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बहुत दिन से लड़ रही थी अपनों से, अपने लिए…

कुछ लोग यह भी कहेंगे कि लड़ना चाहिए था, पर एक बात बताइए, बहुत दिन से लड़ ही तो रही थी अपनों से अपने लिए, पर जीत नहीं पा रही थी...

कुछ लोग यह भी कहेंगे कि लड़ना चाहिए था, पर एक बात बताइए, बहुत दिन से लड़ ही तो रही थी अपनों से अपने लिए, पर जीत नहीं पा रही थी…

आज मन बेहद उदास है। मेरा मन इतना खाली हो चुका है कि जरा सी आहट मेरे खाली मन से टकरा कर जोर जोर से गूंज रही है। मैं अपने ही ख्यालों के घोड़े दौड़ाए जा रही हूं।

शायद मैं समाज की स्थिति और खुद की मनोस्थिति में फंस चुकी हूँ। जो समाज के लिए गलत है, वह मुझे पता नहीं क्यों आज सही लग रहा है। ऐसा क्यों, उसके लिए आपको आज जो हुआ वह सब कुछ बताती हूं। फिर आप बताइएगा सही है या गलत।

मैं अनुसूया सिंह, मेरी उम्र चालीस वर्ष है और मेरी शादी को पंद्रह साल हो चुके हैं। मेरा ससुराल राजस्थान में है।

मेरे ससुराल के पास ही एक परिवार रहता है। जिसमे अनुपम जी, कामिनी जी, बड़ा बेटा परम, उसकी पत्नी शोभा और उसका बेटा तनिष्क और छोटा बेटा नरेश और एक छोटी बेटी प्रिया हैं। एक बेटी और है रानु, जिसकी शादी अट्ठारह साल की उम्र में शोभा की शादी के समय ही उसके चचेरे भाई से कर दी गई थी।

बहु-बेटी का कोई वजूद नहीं

जब मैं शादी होकर यहाँ आई तब यह चारों भाई बहन छोटे थे। प्रिया तो सिर्फ पांच साल की ही थी, इसलिए यह कह सकती हूँ कि मैं इन लोगों को बहुत अच्छे से जानती हूँ। प्रिया बहुत ही प्यारी बच्ची थी।

दोनों बेटियाँ कभी भी अपने माँ बाबा की लाडली नहीं रही। क्योंकि उनके अनुसार लड़कियां सिर्फ घर का काम करने और उसके बाद शादी करने के लिए ही होती हैं। इसलिए उनकी पढ़ाई पर भी ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया। तो अब आप सोच ही सकते हैं जब बेटियों की यह जगह है तो बहू की तो क्या होगी।

रानू की शादी के बाद कई बार प्रिया मेरे पास आ जाती थी और यही कहती कि, “मैं ऐसे शादी नहीं करूंगी, जैसे रानू दीदी की हुई है। मुझे तो लड़का पसंद होगा तो ही शादी करूंगी। मैं अपनी जिंदगी की बलि नहीं चढ़ाने दूंगी।”

और अब नरेश की शादी की बात चल रही है। जहां नरेश के लिए उन्हें मधु नाम की एक लड़की पसंद आई है लेकिन आटा साठा प्रथा के तहत वो लोग मधु की शादी नरेश से तभी करेंगे जब प्रिया की शादी उसके बड़े भाई पवन से की जाएगी।

आटा साठा एक ऐसी प्रथा है जिसमें

अरे, मैं तो आपको बताना भूल ही गई। आटा साठा एक ऐसी प्रथा है जिसमें इस घर की बेटी उस घर की बहू और उस घर की बेटी इस घर की बहू बने। सीधा सा उसूल है आपकी बेटी हमारी घर की बहू तभी बन सकती है जब हमारी बेटी आपके घर की बहू बने। यह राजस्थान के कई गांवों में प्रचलित है क्योंकि शादियों के लिए लड़कियां मिलना मुश्किल हो गई है। यहां तक कि शोभा और रानू की शादी भी इसी प्रथा की देन है।

अब आते हैं असल मुद्दे पर, मधु का बड़ा भाई पवन प्रिया से तकरीबन पंद्रह साल बड़ा है। पढ़ा लिखा भी ज्यादा नहीं है। इसलिए जीविकोपार्जन के लिए कोई ढंग का काम भी नहीं कर रहा। इसीलिए शायद इतने दिनों से उसकी शादी नहीं हुई। लेकिन उसके बावजूद भी कामिनी जी और अनुपम जी सिर्फ अपने बेटे की शादी के लिए प्रिया का रिश्ता वहाँ करने को तैयार हो गए।

जब उसने इंकार किया तो घर वालों ने

जाहिर सी बात है कि प्रिया की इसमें कोई रजामंदी नहीं होगी। जब उसने इंकार किया तो घर वालों ने उसे डांट डपट कर चुप करा दिया, क्योंकि घरवालों के अनुसार बेटियों को शादी ब्याह के मामले बोलने का अधिकार नहीं। जब भी वह इस मैटर पर बात करती तो हमेशा बात लड़ाई झगड़े तक बढ़ जाती है। एक बार तो अनुपम जी ने प्रिया पर हाथ तक उठा दिया था। यहां तक कि दोनों भाईयों ने भी कोई साथ नहीं दिया। और बहू को तो बोलने की वैसे भी इजाजत नहीं है।

आज घर में प्रिया की सगाई का प्रोग्राम था। रिश्तेदार सारे आ चुके थे। घर में काफी रौनक थी। अब इतने सालों से हमारे पड़ोसी है तो जाहिर सी बात है कि मैं भी उनके सहयोग के लिए वहां उनके घर पर मौजूद थी। थोड़ी देर बाद कामिनी जी के साथ मैं भी प्रिया के कमरे में गई तो देखा वह तो अभी तक तैयार ही नहीं है।

क्या इतने लोगों के बीच हमारी नाक कटाएगी?

उसे देख कर कामिनी जी का गुस्सा फूट पड़ा पर अपनी आवाज को दबाते हुए बोली, “अरी कुलक्षणी, क्या इतने लोगों के बीच हमारी नाक कटाएगी। जल्दी से तैयार हो जा।”

“मैं कई बार आपको मना कर चुकी हूँ कि मुझे यह शादी नहीं करनी। फिर क्यों जबरदस्ती आप मेरी जिंदगी बर्बाद करने में तुले हुए हो।”

“ज्यादा जबान मत चला। नरेश की शादी तभी होगी, जब तेरी शादी होगी, और मैं नहीं चाहती कि उसकी शादी में कोई रुकावट आए, इसलिए चुप कर। अगर किसी ने सुन लिया ना तो हंगामा हो जाएगा। चुपचाप तैयार हो जा। समझी।”

ऐसा कहकर कामिनी जी मुझे अपने साथ कमरे के बाहर ले आई और बाहर आकर उन्होंने अपनी बहू को सख्त हिदायत दी कि वह प्रिया को तैयार करके बाहर ले आए।

घर की इज्जत के लिए मैं अपनी बलि चढ़ा दूं?

बहु आनन-फानन में सारा काम छोड़कर प्रिया के पास गई और उससे कहा, “प्रिया जी जिद मत कीजिए। जल्दी से तैयार हो जाइए। लोग बैठे हैं, तमाशा हो जाएगा। घर की इज्जत की बात है।”

“तो फिर घर की इज्जत के लिए मैं अपनी बलि चढ़ा दूं? क्या यहां बैठे लोगों को दिख नहीं रहा कि मेरे साथ गलत हो रहा है। आ गए सब यहां तमाशा देखने। अब आए हैं तो तमाशा देख कर ही जाएंगे। मैं रानू दीदी नहीं हूँ।”

“आप छोड़िए इन बातों को और जल्दी से तैयार हो जाइए।”

खैर, प्रिया जैसे तैसे तैयार हुई। हम दरवाजे पर ही खड़े थे। प्रिया को तैयार होते देखकर आखिर कामिनी जी को तसल्ली हुई उसके बाद वह मेहमानों की आवभगत में लग गयी।

गलत तो मुझे भी लग रहा था पर क्या जवाब देती। जिनकी बेटी है वही नहीं समझ रहे हैं। यही सोचकर बुत बनी रह गई। जानती थी कि मैं गलत हूँ, पर मेरा भी तो ससुराल ही है। आखिर खुद के ससुराल के साथ पड़ोस का ससुराल भी तो मिलता है।

अब लोगों को क्या जवाब देंगे?

इतने में बाहर लड़के वाले भी आ गए और नाश्ते पानी के बाद सगाई का प्रोग्राम शुरू हुआ। कमरे में से प्रिया को लेने कामिनी जी ही गई। पर प्रिया तो अपने कमरे में ही नहीं थी। कामिनी जी ने बाहर आकर अपने पति और बेटों से कहा। पहले तो सब लोगों घर में ही प्रिया को ढूंढा, देखा तो घर के पीछे का दरवाजा खुला हुआ है। समझते देर न लगी कि प्रिया तो घर से भाग चुकी। अब लोगों को क्या जवाब देंगे।

जब काफी समय हो गया तो मजबूरन उन्हें बताना ही पड़ा कि प्रिया घर में नहीं है।

“क्या? लड़की भाग गई? हमें बेइज्जत करने के लिए बुलाया था क्या?”

“हमें नहीं पता था। हम तो प्रिया को कमरे में ही छोड़कर आए थे। अब पता नहीं कैसे वह पीछे वाले दरवाजे से निकल गई। हम तो अब समधी है, हम मिलकर इस समस्या का समाधान ढूंढ लेंगे। आप कृपया शांति बनाए रखें।”

“काहे के समधी? आपकी बेटी तो हमारी नाक कटा के चली गई। अब भूल जाइए कि हमारी बेटी आपके घर की बहू बनेगी।”

“देखिए ऐसा ना कीजिए। आप प्रिया के पीछे नरेश की सगाई क्यों तोड़ते हैं।”

“माफ करना, पर शर्त यही थी। जब आपकी बेटी हमारी घर की बहू बनेगी तो ही हमारी बेटी आपके घर की बहू बनेगी। अब कोई शादी-वादी नहीं होगी।”

अरे ऐसी लड़कियाँ कुलक्षणी होती हैं…

ऐसा कहकर लड़के वाले तो वहां से निकल गए। पीछे लोग बातें बनाते रहे, “कैसी बेटी है? अपने मां-बाप की इज्जत को मिट्टी में मिला कर भाग गई।”

“अरे ऐसी लड़कियाँ कुलक्षणी होती हैं, उन्हें कहाँ किसी की इज्जत से कोई लेना देना।”

“अरे, अब मेरे नरेश की शादी का क्या होगा? वह कुलक्षणी, कुलघातिनी अपने साथ-साथ अपने भाई की जिंदगी बर्बाद करके चली गई। पैदा होते ही मर जाती तो अच्छा था…” अब की बार कामिनी जी ने कहा।

“मर गई वो मेरे लिए। नहीं चाहिए ऐसी बेटी, जो अपने बाप के मुँह पर कालिख पोत कर चली गई।” अनुपम जी ने कहा।

मैं क्या बोलती? मैं उन लोगों को सांत्वना देकर सीधे अपने घर आ गई। लोगों ने प्रिया को कुलक्षणी, कुलघातिनी आदि खूब सारे नाम दिए। पता नहीं क्यों, मैं लोगों की तरह बात नहीं कर सकी।

मुझे कुछ भी गलत नहीं लगा

सच कहूँ तो मुझे कुछ भी गलत नहीं लगा। जब वह बच्ची बार-बार कह रही थी कि उसे यह रिश्ता मंजूर नहीं तब अपने बेटे की शादी के लिए उसकी बलि चढ़ाने के लिए माता-पिता तैयार हो गए। यह जानते हुए कि उसके लिए जो वर ढूंढा है, वह उसके लायक तक नहीं।

कुछ लोग यह भी कहेंगे कि लड़ना चाहिए था। पर एक बात बताइए, बहुत दिन से लड़ ही तो रही थी अपनों से अपने लिए। पर जीत नहीं पा रही थी। वह गलत कहाँ है?

वह भाग गई तो गलत। पर यदि वह आत्महत्या कर लेती तो वह बेचारी और माता-पिता अत्याचारी हो जाते हैं। हर स्थिति के लिए हमारे समाज में कुछ सोची समझी बातें बना रखी है।

और आखिर में, आटा साठा प्रथा के तहत लड़कियाँ ढूँढते हो, उससे बेहतर है कि अपने बेटों को इस लायक बनाओ कि लोग रिश्ता करने से न कतराये। बेटियों को आगे करके बेटों की शादी मत कीजिए।

मूल चित्र: Still from AT Azaad/Lagan Lagi Re, YouTube (for representational purpose only)

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