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फिल्म शेरशाह : डिंपल चीमा और इन 4 बहादुर महिला का जीवन किसी जंग से कम नहीं

फिल्म शेरशाह शहीद कप्तान विक्रम बत्रा और उनकी साथी डिंपल चीमा की कहानी भी है जिन्होंने फिर कभी शादी न करने का निर्णय लिया। 

फिल्म शेरशाह शहीद कप्तान विक्रम बत्रा और उनकी साथी डिंपल चीमा की कहानी भी है जिन्होंने फिर कभी शादी न करने का निर्णय लिया। 

आज से तक़रीबन 22 साल पहले, 8 मई 1999 को भारत-पाकिस्तान के बीच जंग छिड़ी थी क्योंकि पाकिस्तान ने कश्मीर के रास्ते भारत में घुसपैठ करने की कोशिश की थी। ये युद्ध दुनिया के सबसे ऊंचे इलाकों में लड़ी गई जंग में से एक था। भारत ने पाकिस्तान को हरा तो दिया लेकिन जंग में सिर्फ़ हारने वाला नहीं हारता, जीतने वाला भी बहुत कुछ हार कर जीतता है।

इस युद्ध में भारत ने अपने 527 सैनिकों को खो दिया जिनमें से एक थे शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा। उनके कहानी पर फिल्म शेरशाह बनाई गई है जो 12 अगस्त, 2021 को अमेज़ॉन प्राइम पर रिलीज़ हो रही है।

फिल्म शेरशाह उनके प्यार, परिवार, कारगिल युद्ध में शाहिद कैप्टन विकरम बत्रा के योगदान और डिंपल चीमा के इंतेज़ार और संघर्ष की कहानी दर्शाएगी। फिल्म शेरशाह में अभिनेता सिद्धार्थ मल्होत्रा और कियारा आडवाणी शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा और डिंपल चीमा का किरदार निभाते हुए दिखेंगे।

शहीद कैप्टन विक्रम बत्रा और डिंपल चीमा की कहानी है फिल्म शेरशाह

कैप्टन बत्रा कारगिल युद्ध से लौटकर शादी करने वाले थे और उनकी जीवन संगिनी डिंपल चीमा से उनकी मुलाकात चंडीगढ़ यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान हुई थी।

फिल्म शेरशाह में जैसे दिखाते हैं, जंग पर जाने से पहले दोनों गुरुद्वारे में मिले थे। जैसे ही ग्रंथ साहिब की फेरी पूरी हुई, कैप्टन विक्रम ने डिंपल का दुपट्टा पकड़कर उन्हें बधाई दी कि अब वो मिसेज़ बत्रा हो गई हैं।

डिंपल के एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि विक्रम ने अपने अंगूठे के खून से उनकी मांग कर दी थी और कहा था कि वो कारगिल से लौटने के बाद उनसे शादी कर लेंगे। कैप्टन तो कभी वापस नहीं लौटे लेकिन डिंपल ने उन्हीं की यादों को अपना जीवन बना लिया।

डिंपल ने हमेशा उन्हें सपोर्ट किया और देश को सबसे पहला रखा। 5 साल का यह मज़बूत रिश्ता शादी का सफ़र तय नहीं कर सका। विक्रम बत्रा के शहीद होने की ख़बर आई तो डिंपल की ज़िंदगी थम सी गई थी। उनके दिए कार्ड, तोहफ़े आज भी डिंपल की अलमारी में सजे हुए हैं।

विक्रम बत्रा के अंतिम संस्कार पर वो अपने माता-पिता के साथ आई और बिना कुछ कहे बस रोती रहीं। उन्होंने कभी शादी ना करने का फ़ैसला लिया। उनके माता-पिता और विक्रम बत्रा के घरवालों ने डिंपल को बहुत समझाने की कोशिश की लेकिन डिंपल का फ़ैसला अटल था। वो रोईं लेकिन टूटी नहीं।

डिंपल चीमा का जज़्बा किसी सैनिक की तरह ही है जो भले ही युद्धस्थल पर ना सही लेकिन हर दिन ज़िंदगी से बहादुरी से जंग लड़ रही हैं। उन जैसी ना जाने कितनी साहसी औरतें अपने पति, भाई और बेटे को देश के लिए कुर्बान कर चुकी हैं। उनका बलिदान सबसे बड़ा है।

जीवनसाथी का चले जाना जीवन का सबसे बड़ा दुख होता है ऐसे में परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है। सोचिए कि कैसा होता है जब आपका कोई अपना सरहद पर जा रहा है और आप ये नहीं जानते कि वो लौटेगा भी कि नहीं। सैनिक से शादी करने वाली महिला और सैनिक के बच्चों को हमेशा इस बात के लिए ख़ुद को तैयार रखना पड़ता है कि कुछ भी हो सकता है।

डिंपल चीमा की तरह की कई महिलाओं ने जंग में अपने जीवनसाथियों को खो दिया। कुछ ने उनके सपने को आगे बढ़ाते हुए देश सेवा का प्रण लिया तो कुछ ने अपनी परस्थितियों के अनुसार फ़ैसले लिए।

निकिता कौल

मेजर विभूति शंकर डोंडियाल और निकिता की शादी की पहली सालगिरह में बस 2 महीने रह गए थे। ख़बर आई कि 2019 में पुलवामा के आतंकी हमले में मेजर शहीद हो गए। अगले कुछ महीने निकिता के लिए बहुत भारी बीते लेकिन उन्होंने जैसे-तैसे ख़ुद को संभाला और ये फैसला किया कि पति की तरह वो भी सेना में भर्ती होकर देश में अपना जीवन लगा देंगी।

आज 2 साल बाद निकिता कौल सेना में लेफ्टिनेंट की पोस्ट पर हैं। आर्मी में शामिल होने के बाद उन्होंने कहा था “मैं भी वही सफ़र तय कर रही हूं जो उन्होंने किया था, मैं आख़िरी सांस तक आपसे प्यार करूंगी।”

सुष्मिता पांडे

साल 2010 में उनकी शादी मेजर नीरज से हुई थी लेकिन ये सफ़र सिर्फ 2016 तक ही था। तब सुष्मिता की गोद में 4 साल का रुद्रांश था जब एक रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान मेजर नीरज शहीद हो गए।

पति की शहादत से अचानक सब बिखर गया था लेकिन सुष्मिता ने कुछ कर दिखाने का ठान लिया था। बेटे और घर की ज़िम्मेदारी उठाने के साथ-साथ उन्होंने एसएसबी की परीक्षा की तैयारी शुरू कर दी और आख़िरकार लेफ्टिनेंट बनकर देश की सेवा में जुट गईं।

शालिनी सिंह

2001 में मेजर अविनाश सिंह भदौरिया की शहादत के बाद शालिनी का पूरा जीवन बदल गया। वो कहती है, “जब ख़बर आई तो मेरे लिए इस बात को स्वीकार करना इतना मुश्किल था कि जिस व्यक्ति पर मैं पूरी तरह निर्भर थी अब वो कभी वापस नहीं आएगा।”

सिर्फ 23 साल की उम्र में शालिनी ने अपना जीवनसाथी खो दिया। लेकिन कहते हैं कि मुश्किल वक्त में जो धैर्य से काम लेता है उसे सफल होने से कोई नहीं रोक सकता। शालिनी ने भी यही किया और 2002 में अपनी मेहनत और लगन से इंडियन आर्मी ऑफिसर बन गईं। अपने बच्चे के लिए उन्होंने 6 साल बाद सेना की नौकरी छोड़ दी और अब वो मोटिवेशनल स्पीकर और राजनीति में काम कर रही हैं।

शालिनी कुमरा

शालिनी और मेजर संतोष की शादी को सिर्फ 3 साल हुए थे। IED ब्लास्ट में मेजर संतोष कुमरा की शहादत के समय उनकी डेढ़ साल की बेटी थी। पति के मृत शरीर को देखने पर भी उन्होंने एक साल तक विश्वास नहीं किया कि वो मेजर ही हैं। इस सच को झेलने के लिए शालिनी तैयार नहीं थी इसलिए कई महीनों तक उनकी ज़िंदगी थम सी गई थी।

मेजर संतोष के दोस्त और साथियों ने परिवार का बहुत साथ दिया। शालिनी बताती हैं कि अभी तक भी रक्षाबंधन पर मेजर संतोष के साथी राखी बंधवाने आते हैं।

ऐसी अनगिनत कहानियां है जो आपकी आंखों में आंसू भी लाएंगी और हिम्मत भी देंगी। ‘सीमा झड़प में सैनिक शहीद’ होने की ख़बर के पीछे वो सभी युद्ध छिप जाते हैं जो इन महिलाओं को आजीवन लड़ने पड़ते हैं।

कोई सिंगल पेरेंट होने की ज़िम्मेदारी उठाती है, कोई दो परिवारों का बोझ उठाती हैं, कोई अपनी ज़िंदगी को संवारने की कोशिश करती है तो कोई समाज के बंधनों में उलझ जाती हैं। उनकी संवेदनाओं को सिर्फ और सिर्फ़ वहीं समझ सकती हैं। धन्य हैं वो महिलाओं जो तमाम मुश्किलों को पार करते हुए सच में शहीद का शौर्य बन जाती हैं।

मूल चित्र: Stills from Movie Shershaan/ Twitter 

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