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लखनऊ में अभी एक वृतांत हुआ जहां एक महिला ने एक गरीब कैब ड्राइवर को बिना उसकी गलती के उसके साथ हाथापाई की और...
लखनऊ में अभी एक वृतांत हुआ जहां एक महिला ने एक गरीब कैब ड्राइवर को बिना उसकी गलती के उसके साथ हाथापाई की और…
‘फेमिनिज्म हाय-हाय! फेमिनिज्म हाय-हाय!’ चारों तरफ यही शोर अब आपको सुनाई देगा…
लखनऊ में अभी एक वृतांत हुआ जहां पर एक महिला ने एक गरीब कैब ड्राइवर को बिना उसकी गलती के उसके साथ हाथापाई की, उसका मोबाइल तोड़ दिया और हर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लोग इसी बात पर आपको चर्चा करते हुए दिखाई देंगे। और कुछ लोग फेमिसिस्ट या फेमिनिज्म को कोसते हुए भी नजर आएंगे।
शुरुआत करते हैं फेमिनिज्म की परिभाषा से “the belief and aim that women should have the same rights and opportunities as men” ये एक विचारधारा है, मुहिम है कि समाज में महिलाओं को, पुरुष के बराबर अधिकार मिले और अवसर मिले।
नारीवाद में विश्वास रखने के लिए स्त्री होना जरूरी नहीं होता, समान अधिकार देने के लिए आवाज़ उठाने वाले पुरुष और स्त्री दोनों ही नारीवादी होते हैं।
अभी कोई ऐसा हादसा होता है जहां पर महिला द्वारा पुरुषों पर किसी तरीके का भी अत्याचार किया जाता है तो आप हमारी ओर देखने लगते हैं? क्या ये फेमिनिज्म या नारीवाद है?
जी नहीं! अत्याचार को नारीवाद का नाम देकर, उसे कलंकित ना करें।
आपने क्या किसी भी स्त्री को, ऐसे वृतांत का समर्थन करते हुए देखा है? मैंने तो हमेशा ऐसे किसी भी वृतांत का पुरजोर तरीके से खंडन ही किया है और ऐसा अक्सर देखा भी है कि कोई भी महिला ऐसे किसी भी हादसे का समर्थन करते हुए आपको कहीं भी दिखाई नहीं देगी।
Fake feminism, Pseudo feminism भी आपने सुना होगा। आप में से कुछ पुरुष ये मान कर बैठ गए हैं कि नारीवाद अर्थ पुरुष को नीचा दिखाना या पुरुष से अपने आप को बड़ा साबित करना ही नारीवाद का मुख्य आधार है।
नारीवाद लिंगभेद, रूढ़िबद्धता, वस्तुनिष्ठ, असमानता और पितृसत्तात्मकता सोच के खिलाफ लड़ना है।
सब से एक विनती है कि जिस प्रकार किसी भी पुरुष के साथ अत्याचार होता है, आप हम महिलाओं से साथ की उम्मीद करते हैं, तो जब भी समाज में किसी महिला के साथ गलत होता है तब हमारे साथ आवाज उठाएं और हमारा भी साथ दें।
अभी जब एक 17 साल की लड़की को मात्र जींस पहनने पर उसके खुद के परिवार ने लाठियों से मार-मार कर मौत के घाट उतार दिया तब खामोशी थी? क्यों?
कुछ लोग हमेशा की तरह प्रतिस्पर्धा में लग जाते हैं महिलाओं ने ऐसा किया, पुरुषों ने वैसा किया समाज में हो रहे अत्याचार को प्रतिस्पर्धा मत बनाएं।
पुरुष आयोग बनाने की भी आवाज आपको सुनाई देगी। बिल्कुल पुरुष के लिए भी कानून होना समाज में बहुत जरूरी है। तब आपको मालूम चलेगा कि कानून मदद करने के लिए बनाए जाते हैं लेकिन समाज की सड़ी गली मानसिकता को बदलने के लिए मुझे और आपको ही काम करना पड़ेगा।
आप में से किसी भी पुरुष ने भी पूछा कि कैब ड्राइवर की उम्र क्या थी? जाति क्या थी? कपड़े पहने थे? कोई सवाल नहीं उठाया और उसे केवल एक पुरुष या इंसान मानते हुए इंसाफ की गुहार की, जो बिल्कुल सही है।
महिला के खिलाफ कोई अत्याचार होता है, तो बिना उसकी जाति धर्म या उसने क्या पहना हुआ था? हम भी ये सोच नही रखते और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाते हैं। हम भी केवल महिला को इंसान समझ कर, इंसाफ की गुहार लगाते हैं, तब हमें समाज में राजनीति, धर्म, भाषा, जाति के आधार पर बाटें नहीं।
याद रखिए समाज में पुरुष और महिला की इज्जत और जान की कीमत बराबर होनी चाहिए।
अत्याचार केवल अत्याचार है, गैर कानूनी-गैर कानूनी है। इस बात को अच्छे से समझे और समाज में हो रहे किसी भी प्रकार के अत्याचार को बिना किसी लिंगभेद के साथ में आवाज उठाएं।
महिलाएं और पुरुष समाज का अभिन्न अंग है हमें यहां मिलजुल कर साथ में रहते हुए एक दूसरे के लिए ऐसे समाज की स्थापना करनी है जहां सबको समान रूप से जीने का, रहने का, खाने-पीने का, पढ़ने का कामकाज के अवसरों का, वित्तीय हो या विवाह, यानी जिंदगी के हर एक पहलू के आनंद उठाने का समान रूप से अवसर मिले और अधिकार हो।
मूल चित्र: Still from Facebook – More Together – Pooja Didi via YouTube ((for representational purpose only)
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