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इसी तरह चाचा के द्वारा कई बार कहने के बाद एक दिन माँ ने कहा, "पढ़ी है तो क्या हुआ? कोई गलत काम थोड़ी ना करी है।"
इसी तरह चाचा के द्वारा कई बार कहने के बाद एक दिन माँ ने कहा, “पढ़ी है तो क्या हुआ? कोई गलत काम थोड़ी ना करी है।”
मैं संयुक्त परिवार में रहती थी। मेरे पापा छः भाई, एक बहन है। सबसे बड़े मेरे पापा हैं दादा-दादी सहित बड़े से परिवार का हिस्सा थे हम लोग। तीसरे पुस्त में सबसे बड़ी थी मैं। पढ़ाई-लिखाई को परिवार में ज्यादा अहमियत नहीं थी।
मेरे तीन चाचा तो दसवीं तक भी ना कर पाए थे। और मेरी बुआ जो मुझसे मात्र डेढ़ साल बड़ी थी, वह भी नहीं के बराबर पढ़ती थी। बड़ा किसान और इज्जतदार परिवार गांव में कहलाता था हमारा परिवार।
स्कूल भी गांव से काफी दूर था लड़कियां प्रायः स्कूल नहीं जाती थीं, पर मेरी मां मुझे स्कूल भेजती थी। गांव से काफी दूर था सरकारी विद्यालय, और पैदल जाना होता था। साथ ही गाँव-घर का माहौल पढ़ने वाला ना हो तो कहां बच्चे जाना चाहेंगे स्कूल? पर मेरी मां मुझे भेज ही देती थी स्कूल।
घर से और आसपास से कोई स्कूल नहीं जाता था, तो मन तो मेरा भी नहीं करता था, पर जाना ही होता था स्कूल। अवधारणा यह थी कि लड़कियां इतना दूर अकेले कैसे जाएगी? और पढ़ कर क्या करेगी? पर मेरी मां मुझे पढ़ाना चाहती थी।
घर के सारे काम करते हुए, किसान के घर में कामों की कमी तो होती नहीं और समय पर मुझे किताबें-कॉपियां भी ना मिल पाती थी। वह तो नाना जी से कभी कभी मदद मिल जाती थी किताब कॉपी के लिए। पर मम्मी बस मुझे पढ़ाना चाहती थी, चाहे कोई भी परिस्थिति आ जाए।
साल दर साल पढ़ते-पढ़ते मैं तेरह साल की उम्र में ही मैट्रिक प्रथम श्रेणी से पास कर गई। वहीं उसी साल मात्र साढ़े चौदह साल की उम्र में मेरी बुआ की शादी हो गई। वह भी उस समय नाम मात्र की नवमी में पढ़ भी रही थी। कभी-कभी मेरे साथ स्कूल जाती थी बुआ, पर उसकी शादी हो गई। और मैं मैट्रिक पास कर ज्यादा खुश ना थी। क्योंकि, कोई मेरी तारीफ या मेरे पढ़ाई का महत्व थोड़ी देता था।
चाचा सब का तो कहना था अब इसकी भी शादी करा देते हैं। पर माँ का कहना था शादी अठरह साल के बाद। धीरे-धीरे समय बीत गया, मैं कुछ बोलती या कोई बात हो जाती तो चाचा कहते, “हां तुम तो अब मैट्रिक पास कर गई ना?”
मैं तो रोने लगती। पढ़ाई में कोई ज्यादा मजा भी ना आया, और इस पढ़ाई के कारण ताने भी सुनने पड़ते। मैं उदास रहने लगी। एक दिन मम्मी ने कहा, “तुम जवाब क्यों नहीं दी कि पढ़ी हूं तो क्या हुआ?”
मैंने कुछ नहीं कहा। इसी तरह चाचा के द्वारा कई बार कहने के बाद एक दिन माँ ने कहा, “आप इसे यह बात दोबारा नहीं कह सकते। पढ़ी है तो क्या हुआ? कोई गलत काम थोड़ी ना करी है।”
सभी मम्मी की बातें सुनकर स्तब्ध रह गए। उस दिन के बाद चाचा ने यह कहना बंद कर दिया कि तुम पढ़ी हो। मम्मी ने मुझे घर पर ही आसपास के बच्चों के लिए ट्यूशन शुरू करवा दिया और आगे की पढ़ाई के लिए पापा से कह कॉलेज में प्राइवेट एडमिशन भी करवा दिया।
इससे फिर चाचा कहने लगे, “इतना पढ़ाना क्या जरूरी है? लड़का भी तो काफी पढ़ा लिखा करना पड़ेगा।”
मेरी मां ने फिर जवाब दिया, “जरूरी क्या है? लड़का इससे ज्यादा पढ़ा लिखा ही हो? जो भी होगा कर देंगे, इसका पढ़ना जरूरी है।”
चाचा कुछ कटीली मुस्कान के साथ फिर चुप। तो कई तानें, कई मुश्किल परिस्थितियों से गुजरते हुए, परिवार के कई बातों को इग्नोर करते हुए, मां ने मुझे पढ़ाया।
आज मम्मी के अथक प्रयास से मेरी खुद की पहचान है। मैं सरकारी शिक्षिका हूं। और घर के साथ-साथ समाज में भी मां के कारण प्रेरणा हूं।
अब विद्यालय भी नजदीक है लड़कियां भी पढ़ती है, सभी मुझसा बनना चाहती है। चाचा ने भी अपनी सभी बेटियों को पढ़ाया। और मैं अपनी मां के कारण ही आज समाज और परिवार की पहचान बन पाई हूं।
मम्मी एक बात यह भी कहती थी, “व्यवस्था में तो हर कोई पढ़ लेगा अभाव में तुम कुछ करो तब तो तारीफ है।”
आज समाज की सभी लड़कियां पढ़ रही हैं, पर मेरे समाज में जब पढ़ाई के लिए ताने दिए जा रहे थे, तब मां ने मुझे पढ़ाया, और मुझे काबिल बनाया।
मूल चित्र : Still from Short Film Ms.Nirmala, YouTube
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