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अब तुम्हारा ख्याल रखने की बारी हमारी है…

"पापा, अभी तक मम्मी नहीं उठी, क्या आज भी तबियत ठीक नहीं?" सोहम ने पापा को रसोई में देख पूछा और बिना ज़वाब सुने माँ के पास चला गया। 

“पापा, अभी तक मम्मी नहीं उठी, क्या आज भी तबियत ठीक नहीं?” सोहम ने पापा को रसोई में देख पूछा और बिना ज़वाब सुने माँ के पास चला गया। 

आज सुबह से नीला के कमर में दर्द था और उम्र के उस दौर में होने वाले हार्मोनल परेशानी से जूझता नीला का शरीर उसे बिस्तर से उठने की इजाज़त नहीं दे रहा था, लेकिन उठना तो था ही सो उठी।

ये है नीला, अपने परिवार की धुरी। दो किशोरवय बेटों और पति के साथ सुखमय जीवन बिताती हंसमुख नीला। अपनी जिंदगी के बाईस साल अपने पति और बच्चों की देखभाल में लगाने वाली नीला अब थोड़ी थक सी गई थी। उम्र चालीस के पार क्या पहुंची नीला के शरीर को जैसे जंग सी लग गई थी। तभी तो दिन भर बच्चों और पति के पीछे भागने वाली नीला के पैर अब धीमे पड़ने लगे थे।

जिस नीला के चेहरे पे सदा बच्चों और पति राघव ने मधुर मुस्कान देखी थी वहाँ चिड़चिड़ापन दिखने लगा था। छोटी छोटी बातों पे रो देना, चिढ़ कर बच्चों पे चिल्ला उठना ये नीला का स्वाभाव बनता जा रहा था।

महीने के उन दिनों में भी कुछ ज्यादा ही परेशानी बढ़ जाती थी। राघव ने कई डॉक्टर को दिखाया।  डॉक्टर की दवाइयों से कुछ पल तो शारीरिक परेशानी से आराम मिलता लेकिन मानसिक समस्या का अंत नहीं होता। डॉक्टर कहते मीनोपॉज की अवस्था में ये आम बात है।

“क्या हुआ नीला आज उठना नहीं क्या?” राघव की आवाज़ पे नीला ने पलके खोलीं।

“उठती हूँ! ज़रा एक कप चाय बना के पिला दो आज दर्द और ब्लीडिंग ज्यादा है।”

“ठीक है, तुम आराम करो”,  इतना कह राघव रसोई की तरफ चल दिये।

“पापा, अभी तक मम्मी नहीं उठी, क्या आज भी तबियत ठीक नहीं?” बड़े बेटे सोहम ने पापा को रसोई में देख पूछा और बिना ज़वाब सुने माँ के पास चला गया।

“क्या हुआ मम्मा तबियत ठीक नहीं?”

“हां बेटा वो…”, थोड़ी शर्मा सी गई नीला। कैसे कहे जवान होते बेटे से? बेटी होती तो शायद माँ का दर्द समझ सकती थी।”

“आप बिलकुल चिंता मत करो मम्मा मैं और सनी ब्रेड दूध खा लेंगे और लंच कैंटीन में कर लेंगे।  आप आराम करना, आपके मीनोपॉज का समय है ना इसलिए ये सब  परेशानी हो रही है।”

आश्चर्य से नीला सोहम का मुँह देखने लगी, ये क्या बोल रहा है?

अपनी माँ को यूँ घूरता देख सोहम हँसने लगा, “माँ हमें स्कूल में सब पढ़ाया जाता है और ये तो नेचुरल प्रोसेस है जिससे हर महिला को गुजारना पड़ता है, और मैं ये भी जानता हूँ कि इस वक़्त आप कितनी इमोशनली वीक हो गई हैं। लेकिन मम्मा हम सब हैं ना! आप जल्दी इन सब से निकल जाओगी।”

अपनी बात ख़त्म कर मुस्कुराता सोहम कमरे से निकल गया और अपने बेटे की बात सुन गर्व से नीला भर उठी। आज वो दिन याद आ गया जब उसकी खुद की माँ इन्ही परेशानी से गुजर रही थी और उसके पिता और भाई इन परेशानी को समझने के बजाय माँ को ही हर वक़्त बीमार रहने पे ताने देते। समय पर ईलाज के अभाव में इन शारीरिक और मानसिक परेशानियों से जूझते हुई माँ  चली गई।

काश! जैसे आज सोहम ने उसकी मानसिक परेशानी को समझा वैसे ही उसके पिता और भाई भी उसकी माँ की परेशानी को समझा होता तो माँ आज सबके साथ होती। समय के साथ लड़कों की सोच में आये इस बदलाव को देख आज नीला बहुत ख़ुश थी।

बहुत जरुरी था घर के मर्दों की सोच में इस बदलाव का आना क्यूंकि शारीरिक समस्या का हल तो डॉक्टर दवाइयों से दूर कर देते हैं, लेकिन इस मीनोपॉज़ की अवस्था में महिलाओं को जो इमोशनल सपोर्ट की जरुरत होती है। वो सिर्फ घर वाले ही दे सकते हैं। अपने बेटे और पति का साथ पा जल्दी ही नीला अपनी इस मीनोपॉज़ की अवस्था से निकल वापस पहले वाली ख़ुश और हंसमुख नीला बन गई।

प्रिय पाठकगण,
कहानी का सार बस इतना है कि आपके घर में जो माहिलायें इस अवस्था से गुजरें उनका थोड़ा स्पेशल ध्यान रखें, उन्हें थोड़ा स्पेशल फील करवायेंये ऐसी अवस्था होती है जहाँ महिला हॉर्मोनल उतार चढ़ाव से गुजरती है, ऐसे में उनका ध्यान रखें आखिर उन्होंने भी  आपके लिये अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित किया है, आपकी हर तकलीफ में आपका ख्याल  उन्होंने रखा है। 

मूल चित्र :  Still from Short Film Pressure Cooker/hamaramovie, YouTube

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