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अपने बच्चों के माता-पिता बनिये उनके मालिक नहीं…

बच्चे और माता-पिता का रिश्ता एक हंसता-खेलता प्यारा सा रिश्ता ही अच्छा लगता है न कि ऑफिस के एक एंप्लॉयी और बॉस का। 

बच्चे और माता-पिता का रिश्ता एक हंसता-खेलता प्यारा सा रिश्ता ही अच्छा लगता है न कि ऑफिस के एक एंप्लॉयी और बॉस का। 

बदलते हुए परिवेश के साथ माता पिता को अपने बच्चों के साथ रिश्ते में भी बदलाव लाने की जरूरत है, कहीं ऐसा ना हो कि आपका रिश्ता एक बॉस और एंप्लॉयी की तरह बनकर ही रह जाए।

माँ-बाप जिसे बच्चों का दूसरा भगवान कहा जाए तो उसे मैं कोई अतिशयोक्ति नहीं कहूँगी, क्योंकि माता पिता अपने बच्चों को वह हर सुख-सुविधा देते हैं जिनका आनंद स्वयं माता-पिता ने अपने जीवन में नहीं लिया हो इसलिए वह अपने बच्चों के लिए दिन रात मेहनत करते हैं।

पर क्या बच्चों के लिए यही काफी है? क्या बच्चों को केवल माता-पिता से सामान ही चाहिए होता है?

नहीं, आज के समय में सामान से बढ़कर भी बच्चों के लिए बहुत कुछ होता है जिसे माता-पिता आज भी नहीं समझ पाए हैं। वह अपने द्वारा दिए हुई सुख सुविधा की एवज में उनसे वह इच्छा रखते हैं कि वह उनके बताए हुए ही रास्ते पर चले, उन्हीं के बताए हुए करियर को चुने।

वैसे एक तरह से देखा जाए तो यह सोचना भी गलत नहीं है माता पिता का क्योंकि जब दिन रात माता पिता अपने बच्चे रूपी पेड़ को रोपने में इतनी मेहनत करते हैं तो उस पर उपजे फलों को खाना भी लाजमी है।

पर कभी-कभी उन पेड़ों पर उपजे हुए हर फल मीठे नहीं निकलते कभी- कभी वह खट्टे भी निकल आते हैं जिसे वह पसंद नहीं करते ऐसे में उस फल को तोड़ कर वह फेंक देते हैं या फिर उसे वहीं छोड़ देते हैं। ठीक उसी प्रकार आज माता-पिता और बच्चों का रिश्ता होता जा रहा है।

जरूरी नहीं कि माता-पिता के बताए हुए हर मार्ग बच्चों के लिए सही हो और उसे ही वह अपना करियर चुने क्योंकि माता पिता के द्वारा बताए हुए हर मार्ग बच्चों के अनुरूप नहीं होते। क्या पता बच्चा उस मार्ग पर चलने में खुद को असहज महसूस करें या फिर वह उस मार्ग पर चल ही न पाए? तो क्या फायदा उन रास्तों को चुनने का जिस रास्ते पर बच्चे चार कदम ही चल कर लड़खड़ा जाए?

पर आज भी बच्चों का खुद का रास्ता चुनना हर माता-पिता को गवारा नहीं होता और बच्चे की इस सोच को वह अपनी अवेलना समझते हैं और बच्चों को अपना विरोधी समझ उस पर जबरदस्ती अपनी इच्छाएं थोपते हैं। पर उस जबरदस्ती के कारण बच्चा अंदर ही अंदर घुटता रहता है और वह अपनी मन की बातों को किसी से बयां नहीं कर पाता और यहीं से माता-पिता और बच्चों के अटूट रिश्तों पर एक हुकूमत की चादर सी डल जाती है।

उस समय माता-पिता और बच्चों का रिश्ता केवल एक ऑफिस के बॉस और एंप्लॉय की तरह बन जाता है जिसमें मालिक अपने एंप्लॉयी को हुकूमत ही देता रहता है और ना चाहते हुए भी उस एंप्लॉयी को उनके हर हुकुम मानना पड़ता है।

यहीं से माता-पिता और बच्चों का रिश्ता ना जाने कब एक एंप्लॉयी और मालिक के रिश्ते में तब्दील हो जाता है यह पता भी नहीं चल पाता एक हंसता खेलता रिश्ता एक बेड़ियों में जकड़े हुए कैदी की तरह बन जाता है।

अर्थात मेरा बस इतना ही कहना है कि बदलते हुए समय के साथ हम अपनी परवरिश में भी बदलाव लाएं और अपने बच्चों को वही राह चुनने दें जिस पर वह खुशी के साथ और सहज महसूस करते हुए चल सकें क्यों कि बच्चे और माता-पिता का रिश्ता एक हंसता खेलता प्यारा सा रिश्ता ही अच्छा लगता है न की एक एंप्लॉयी और बॉस का।

मूल चित्र: Flipkart via Youtube 

 

 

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