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अगर ओलंपिक में महिलाओं का इतिहास देखिए तो धीरे-धीरे हर खेल में महिलाओं की भागीदारी का रास्ता खोल दिया गया, उसके बाद आप जानते हैं...
अगर ओलंपिक में महिलाओं का इतिहास देखिए तो धीरे-धीरे हर खेल में महिलाओं की भागीदारी का रास्ता खोल दिया गया, उसके बाद आप जानते हैं…
टोक्यों में कोरोना महामारी के कारण एक साल के विलंब के बाद खेलों का महाकुंभ ओलंपिक 2021 चल रहा है। शायद ही कोई खिलाड़ी हो, जो यहां अपना जलवा बिखरने का सपना अपने दिल में नहीं रखता हो।
पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर महिलाएं ही नहीं टांन्सजेंडर खिलाड़ी भी अपने-अपने प्रतिभा का लोहा मनवाने के लिए दम-खम लगा रहे हैं।
आज शायद ही कोई खेल हो जिसमें महिलाओं की भागीदारी की कल्पना नहीं की जा सकती है?
लेकिन एक वक्त था जब ओलंपिक खेलों में महिलाओं की भागीदारी तो दूर, उनको देखने तक की इजाज़त नहीं थी।
पिसी डोरस नाम का पुरुष एथलीट जब ओलंपिक खेलों में भाग लेने उतरा, तो उसकी मां को उसके चैंपयिन बनने का पूरा भरोसा था। उसकी माँ पुरुष का वेश बदल उसका खेल देखने गयी। बेटे के जीत पर वह खूद पर काबू नहीं रख पाई और दौड़ कर बेटे के पास पहुंची, जिसके कारण उसका पुरुषों का बनाया हुआ वेश कायम नहीं रहा।
जब आयोजकों को पूरी बात पता चली। तब उस महिला को क्षमा याचना ही नहीं मिली बल्कि महिलाओं का खेल में भगीदारी का रास्ता भी खोल दिया गया।
ओलंपिक इतिहास के अनुसार बैले शोसे नाम की महिला को पहली महिला का सम्मान प्राप्त है, जिसने रथ-दौड़ में अपनी प्रतिभा का सिक्का जमाया। उस समय केवल दो ही खेलों में महिलाओं को शामिल होने का हक था। 1948 में पांच खेलों मे महिलाओं की भादीदारी को अनुमति मिली। आज हर खेलों में महिलाओं की भागीदारी है।
आज जो खेल ओलंपिक में खेले जाते हैं, उनके पितामाह बेरांन पियरे डी कुबर्तिन को माना जाता है। जो सभी खेलों में महिलाओं के भागीदारी के समर्थक नहीं थे। 1900 के पेरिस ओलंपिक खेल में टेनिस और गोल्फ में महिलाओं को सपर्धा में भाग लेने की अनुमति मिली। परंतु यह अनुमति केवल अमेरिका और इंग्लैड को ही थी क्योंकि कमेटी को लगता था कि अमेरिका और इंग्लैड की महिलाएं ही एथलीट हो सकती हैं, क्योंकि वह खेला करती हैं।
धीरे-धीरे महिलाओं ने हर खेल में अपना सिक्का जमाया और वह पुरुषों के बराबरी में न केवल उम्दा प्रदर्शन करती हैं, कई बार कीर्तिमान भी स्थापित करती हैं।
ब्रिटेन की चार्लोट कूपर ने एकल टेनिस स्पर्धा में स्वर्ण पदक हासिल कर पहली महिला चैंपियन बनी। उनके बाद सेंट लुई ने इसे दोहराया वह भी गोल्फ में। उसके बाद तीरंनदाजी में भी महिलाओं ने लोहा मनवाया। 1912 के ओलंपिक में महिलाओं की भागीदारी के विरोध में भी स्वर सुनाई दिए। आयोजकों ने इसपर ध्यान नहीं दिया। इस बार भी खेलों में महिलाओं के परिधान को लेकर हंगामा हो रहा है। आयोजक इन बातों पर अधिक ध्यान नहीं देते हैं।
धीरे-धीरे ओलंपिक के हर खेलों में महिलाओं की भागीदारी का रास्ता खोल दिया गया। उसके बाद एक से कई चमत्कारी प्रदर्शन महिलाओं के नाम ही दर्ज हैं। वह भी अलग-अलग खेलों में। आज तो कई ऐसे देश हैं जिनकी पदक तालिकाओं में महिला खिलड़ियों के नाम अधिक पदक देखने को मिलती है। महिलाएं न केवल बेहतर प्रदर्शन करके अपने देश का नाम ऊंचा कर रही हैं बल्कि अपने देश के भावी पीढ़ी के लिए एक नई उम्मीद की ज़मीन भी तैयार कर रही हैं।
भविष्य उनका है, वह बस अपनी कमर कस लें।
मूल चित्र : Charlotte Cooper- Wikipedia/ Meerabai Chanu & PV Sindhu
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