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मैं हूँ एक परित्यागा! मैंने त्याग किया है अपने पुरुष का! पुरुष जो पुरुष होने से अधिक कुछ नहीं, कुछ हो भी नहीं सकता था...
मैं हूँ एक परित्यागा! मैंने त्याग किया है अपने पुरुष का! पुरुष जो पुरुष होने से अधिक कुछ नहीं, कुछ हो भी नहीं सकता था…
मैं हूँ एक परित्यागा! मैंने त्याग किया है अपने पुरुष का…
पुरुष जो पुरुष होने से अधिक कुछ नहीं कुछ हो भी नहीं सकता…
इसलिए प्रतिदिन धिक्कारी जाती हूँ इस समाज से और परिभाषित किया जाता है मुझे कि मैंने किया है घोर पाप…
भ्रष्ट किया है अपने जन्मदाताओं का परलोक क्यूंकि मैं जा रही हूँ समाज के नियमों के विरुद्ध…
वो नियम जो स्वीकार लेते हैं सहर्ष पुरुष द्वारा पत्नी पर लांछन, दोष, बहिष्कार और फिर त्याग…
इसके इतर, नहीं स्वीकार सकते किसी साधारणा का समान व्यवहार…
क्यूँ मात्र स्त्री ही परित्यक्ता होती है? क्यूँ वो पुरुष के बनाए नियमों में विलुप्त हो जाती है?
क्यूँ वो नहीं कर सकती जो पुरुष करता है निडरता से?
क्यूँ वो नहीं कर सकती ‘प्रश्न’ मानवता से? कि उसे भी है समान अधिकार अपने जीवन के निर्णयों का…
चाहे फिर स्वाभिमान की रक्षा के लिए ही सही करना पड़े त्याग अपने ‘पति’ का!
मूल चित्र: Still from Short Film The Wedding Saree, YouTube
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