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कंटेंट का कीड़ा चैनल की रक्षाबंधन से जुड़ी एक शॉर्ट फिल्म है सिब्लिंग्स, यह कहानी है एक बड़े भाई और उसकी छोटी बहन की! क्या आपने ये देखी?
*स्पोइलर अलर्ट *
रक्षाबंधन, रक्षा का बंधन – कहानियां तो बहुत हैं, पर वो सब एक ही दिशा में मुड़ती हैं, कि राखी की एक डोर भाई-बहन, बहन-बहन, भाई-भाई को कैसे बांध देती है(हिंदी शब्कोष में सिबलिंग के लिए कोई शब्द नहीं है) रक्षा जो भी करे, पर रिश्ता ज़रूर एक डोर में बंध जाता है।
ऐसी ही एक डोर की छोटी सी कहानी है, कंटेंट का कीड़ा (Content Ka Keeda) चैनल की रक्षाबंधन शार्ट फिल्म, सिब्लिंग्स (Siblings) यह कहानी है एक बड़े भाई और उसकी छोटी बहन की, जिसे बखूबी से निभाया है रोहित अग्रवाल और अरशीं नामदार ने।
शॉर्ट फिल्म सिब्लिंग्स की कहानी प्यारी है, मगर फिर भी कुछ बातें खटकती हैं, खासकर की आज के वक़्त में जब हम रूढ़िवादी मानसिकता से उबरने की कोशिश कर रहे हैं। कुछ इन्ही बातों को मैं इस लेख के माध्यम से दर्शाना चाहती हूँ।
एक बात जो मुझे इधर खटकी वो थी आरुषि के भाई की गर्लफ्रेंड, श्रुति। देखते-देखते कहीं तो मुझे ऐसा लगा कि मैं ‘प्यार का पंचनामा’ का ही एक सीन देख रही हूँ। वही गर्लफ्रेंड जिसको बॉयफ्रेंड का पूरा समय चाहिए, उसके पैसे भी चाहिए, और अपनी शर्त पे चाहिए। और हाँ, उसको उसकी बहन या परिवार से कोई मतलब नहीं।
ये गर्लफ्रेंड का चरित्र एक ऐसी सोच से आता है जिसको हमेशा लगता है लड़की कभी अपनी नहीं हो सकती, वो बाहर से आती है सिर्फ घर तोड़ने के लिए, चाहे गर्लफ्रेंड की तरह आये या बीवी की तरह।
हालाँकि आरुषि का अपने भाई के लिए सोचना और अंत में उसका ब्रेकअप हो जाना, एक बहुत ही प्यारी कहानी लगती है, पर कहीं ना कहीं यह बात खटकती भी है, वो भी आज के वक़्त में जब हर लड़की खुद कुछ करना चाहती है और किसी के पैसों पर जीना नहीं चाहती। वक़्त ज़रूर चाहती है, पर वो भी इस तरह नहीं की रक्षाबंधन पर बहन का हक़ मार ले उसके भाई से। बेशक ऐसी लड़कियां भी होती हैं, पर हम सालों से वही देखते आ रहे हैं। अब कहानी बदलने का वक़्त है, नहीं?
आपको चाहे ये बात छोटी लगे लेकिन ऐसी छोटी-छोटी बातें अब ध्यान खींचती हैं। ऐसी ही एक दूसरी बात थी कि इस पूरी शार्ट फिल्म में आरुषि और उसके भाई की माँ सिर्फ आरुषि को कॉल करती हैं और उनका झुकाव और सवाल उसके भाई की तरफ होता है। मानो, आरुषि छोटी नहीं बड़ी बहन हो। और चलिए अगर बड़ी बहन है भी, तो फ़िक्र एक बराबरी की होनी चाहिए।
लड़के हमेशा छोटे बच्चे नहीं रहते, वो भी बड़े होते हैं। फिर क्यों महिलाओं को लगता है कि उन्हें पूरी ज़िन्दगी अपने बेटों, भाइयों, और फिर पति का ख्याल रखना पड़ता है? आरुषि भी बड़े गर्व से कहती है, अपने बचपने में ही, “वो मेरा नहीं, मैं भाई का ख्याल रखती हू!”
ऐसा क्यों है कि हम अपने बेटों को बड़ा नहीं होने देना चाहते, चाहे मानसिक रूप से, क्योंकि हमें लगता है कि कोई दूसरी औरत उसकी ज़िन्दगी में आ जायगी? ये एक प्रकार की जलन है या फिर पितृसत्ता से भीगा हुआ हमारा मन? और अगर ऐसा नहीं होता तो भी घर के ‘राजा-बेटे’ अक्सर एक औरत(माँ) की ‘छत्रछाया’ से निकल कर दूसरी औरत(बीवी) की ‘छत्रछाया’ में ही जाते हैं? मतलब ध्यान इनका एक औरत ही रखेगी! और अगर ना रखे तो…
इस पूरी शॉर्ट फिल्म में हमको पता है कि आरुषि का भाई अपनी गर्लफ्रेंड श्रुति से परेशान है, पर कहीं भी हमको ये नहीं बताया गया है कि उस झगड़े की वजह क्या है। कई बार दो लोगों में झगड़े उनके आपसी मतभेद के कारण होते हैं, जिनमे वो एक दूसरे को ऐसी बातें कह जाते हैं जो उन्हें नहीं कहनी चाहिए होती हैं। पर फिर वो दो लोग उसे सुलझा लेते हैं, अगर वो सच में एक दूसरे से प्यार करते हैं।
इस शॉर्ट फिल्म में कहीं पर भी श्रुति का पक्ष रखा ही नहीं गया। बस उसका बदतमीज़ी से बात करना दिखाया गया और फिर आरुषि के भाई से तोहफा मांगना, वो भी उन पैसों से जो उसने आरुषि के रक्षाबंधन गिफ्ट के लिए बचा कर रखे थे।
झगड़े हमेशा ज़्यादा दिखाई देते हैं, प्यार काम। एक छोटी बच्ची को ऊँची आवाज़ें हमेशा ज़्यादा सुनाई देंगी, रिश्ते की डोर कम। आरुषि को अपने भाई के रिश्ते में सिर्फ खटास नज़र आयी, पर श्रुति का पक्ष जानने की उसने ना कोशिश करी ना ज़रूरत समझी, क्योंकि वो बच्ची है।
पर आप तो बड़े हैं! तो आपने क्या देखा इस शॉर्ट फिल्म सिब्लिंग्स में? अगर कुछ नहीं, तो भी ठीक है। भाई बहन की इस प्यारी फिल्म को ऐसे ही गले लगा लीजिये, पर सोचियेगा ज़रूर।
मूल चित्र : Still from Short Film Siblings/Content Ka Keeda, YouTube
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