कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं? जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!
हम में से कई लोग मानते हैं कि नारीवाद से जुड़े लोग यानि फेमिनिस्ट, दुनिया को नियंत्रित करना चाहते हैं और पुरुषों को नीचा दिखाना चाहते हैं।
जैसे कुछ लोग को पेड़ पौधों से ऐलर्जी होती है और उनके पास जाते ही उन्हें असहज और व्याकुल महसूस होने लगता है, वैसा ही व्यवहार कुछ लोगों का फ़ेमिनिज़म के प्रति भी है।
आज के समय में फ़ेमिनिज़म शब्द का इस्तेमाल हर जगह होते दिखता है। पर साथ ही हम यह भी देख सकते हैं कि इस शब्द के प्रति लोगों को व्यवहार कितना नकारात्मक है। पर क्यूँ?
इसके लिए पहले आइए जानते है की फ़ेमिनिज़म है क्या – ब्रीटानिका.कॉम के अनुसार, “फ़ेमिनिज़म का मतलब है जेंडर्स की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक समानता में विश्वास रखना।”
हालाँकि फ़ेमिनिज़म आज सिर्फ़ एक शब्द नहीं, बल्कि एक आंदोलन बन गया है। औरतें सामने आके अपने हक़, और समानता के लिए आवाज़ उठाती हैं, ख़ासकर एक ऐसे देश में जहां औरतें हमेशा से पितृसत्तात्मकता से पीड़ित रही हैं। दहेज, बेटी को पैदा होते ही मार देना, लड़कियों को स्कूल ना जाने देना, बाल विवाह, यह तो सिर्फ़ कुछ उदहारण हैं जो औरतों को झेलने होते हैं।
हम आज उस समय से बहुत आगे बढ़ चुके हैं जब महिलाओं को अपनी पसंद की पढ़ाई, नौकरी या स्वतंत्रता तक इज़ाज़त नहीं थी। पर इसका मतलब यह नहीं कि अब यह सब बंदिशें मौजूद ही नहीं हैं। आज भी औरतें लड़ ही रही हैं, समान वेतन, समान अधिकार और ख़ासकर औरतों की ओर बढ़ती हिंसा के खिलाफ।
क्या एक ऐसा समाज जहां हर एक इंसान को एक बराबर के अधिकार, स्वतंत्रता, अवसर मिले, क्या ऐसा कुशल समाज सोचने में अच्छा नहीं लगता है? जहां किसी भी प्रकार का भेद भाव ना हो? ना ही सिर्फ़ लिंग को लेके पर जाति, धर्म आदि को लेकर भी? फिर क्यूँ लोगों को फ़ेमिनिज़म शब्द से ही ऐलर्जी हो जाती है? इसको इतनी नकारात्मक दृष्टि से क्यूँ देखते हैं लोग?
• नारीवाद मज़बूत, शक्तिशाली औरतों से जोड़ा जाता है, और आज भी हमारा समाज कहीं ना कहीं शक्तिशाली औरतों को देखना नहीं चाहता
• कई लोगों को डर है कि नारीवाद का अर्थ होगा कि पुरुष अंततः शक्ति, प्रभाव, अधिकार और नियंत्रण और आर्थिक अवसरों से बाहर हो जाएंगे।
• बहुत से लोग मानते हैं कि नारीवाद से जुड़े लोग दुनिया को नियंत्रित करना चाहते हैं और पुरुषों को नीचा दिखाना चाहते हैं। फ़ेमिनिज़म को कई बार मीसैंडरी से भ्रमित किया जाता है जिसका अर्थ होता है पुरुषों से घृणा। पर फ़ेमिनिज़म का अर्थ यह नहीं है, यह पुरुषों के ख़िलाफ़ एक आंदोलन नहीं बल्कि औरतों के समर्थन के लिए है।
• कई लोगों को डर है कि नारीवाद समय-सम्मानित परंपराओं, धार्मिक विश्वासों और स्थापित लिंग भूमिकाओं को पलट देगा। कई का मनना है कि फ़ेमिनिज़म मतलब लड़कियाँ खाना नहीं बनाएगी, मर्दों को खाना बनाना होगा। पर यह धारणा ग़लत है। फ़ेमिनिज़म का उद्देश्य ही यह है कि कोई तय जेंडर रोल्स ना हो, हर औरत को, वह क्या करना चाहती है या नहीं, वह खाना बनाना चाहती है ये नहीं, वह समाज नहीं बताएगा, वह खुद यह निर्णय लेगी।
• कई लोगों को डर है कि नारीवाद के कारण अगर व्यापार, नौकरी और आर्थिक अवसरों में महिलाएं पुरुषों के साथ बराबरी पर हैं तो रिश्तों, विवाह, समाज, संस्कृति, शक्ति और अधिकार की गतिशीलता में नकारात्मक बदलाव आएगा।
पर यह सब धरणाए ग़लत हैं। नारीवाद नकारात्मक नहीं बल्कि सकारात्मक बदलाव लाएगा समाज में जहां हर इंसान एक बराबर होगा। इसके एक फ़ायदे स्वरूप औरतों की और हिंसा कम होगी और समाज में प्रचलित विषाक्त पुरुषत्व भी खतम होगा।
पर आज भी बहुत से लोग हैं जिन्हें लगता है कि आज के समय में प्रगतिशील समाज में फ़ेमिनिज़म ज़रूरी नहीं है। आइये देखते है कुछ तथ्य कि क्यूँ फ़ेमिनिज़म आज भी आवश्यक है।
• भारत में हर 50 सेकंड में एक बच्ची की मौत हो जाती है
• पूरे भारत में हर दिन 21 महिलाएं दहेज के कारण जान गंवाती हैं
• भारत में प्रतिदिन 87 बलात्कार के मामले दर्ज किए जाते हैं।
• एक साल में महिलाओं के खिलाफ अपराध के 4,05,861 मामले दर्ज किए गए।
• 15-18 वर्ष की 40% लड़कियां स्कूल नहीं जाती हैं
• भारत में एसिड हमलों की संख्या सबसे अधिक है, लेकिन इसमें सबसे कम संख्या में दोषी हैं – 5 प्रतिशत से कम
• भारत में 1.5 मिलियन कम उम्र की लड़कियों की शादी हर साल होती है
• 153 देशों के बीच, भारत 2020 में जेंडर गैप इंडेक्स में 112 पर पहुंच गया है।
• 600 से अधिक महिलाएं और 500 बच्चे हर दिन लापता हो जाते हैं
मानने को तो हमने प्रगति की है पर क्या यह काफ़ी है? यह समस्याएँ क्या कम हुई हैं? तो फिर नारीवाद क्यूँ खत्म हो?
आज भी औरतें रोज़ एक जंग लड़ रही है। और लोगों का फ़ेमिनिज़म का एक नकारात्मक रूप बना दर्शाना उनकी सहायता कम उनकी मुश्किलों को बढ़ाता और मेहनत को अमान्य कर उनकी आवाज़ को अनसुना कर देता है।
नारीवाद की अवधारणा एक ऐसे समाज का निर्माण करती है जहाँ आपका जेंडर जीवन में आपकी पसंद तय नहीं करेगा। उस अर्थ में हम सभी को नारीवादी होना चाहिए और जो लोग कहते हैं कि मैं नारीवादी नहीं हूँ, उन लोगों के लिए मेरे एक ही सवाल है- पर क्यों?
मूल चित्र: Still from Biba Ad Via Youtube
A student with a passion for languages and writing. read more...
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