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भक्ति अपनी सास को कब दादी बनाने वाली हो? अब तो समय भी हो चला धीरे-धीरे और कितना समय लोगे तुम दोनों? इतनी देर करना ठीक नहीं...
भक्ति अपनी सास को कब दादी बनाने वाली हो? अब तो समय भी हो चला धीरे-धीरे और कितना समय लोगे तुम दोनों? इतनी देर करना ठीक नहीं…
“अरे! वाह समीरा जी बहू तो बड़ी चुनकर लाई हैं आप”, भक्ति का घुंघट उठाते हुए पड़ोस की महिला बोली।
“भक्ति है ही इतनी गुणी की हम उसे पसंद किए बिना रह ना पाए। जितनी खूबसूरत उतनी सुघड़ भी है हमारी भक्ति। अब तो बस मुझे बेटी मिल गई जिसकी इतने सालों से मुझे आशा थी। तुम लोग तो जानते हो विनोद और कमल ये दो लड़के ही भगवान ने झोली में दिए थे। बस बेटी का चाव मन में ही रह गया था। सो भगवान ने अब वो भी पूरा कर दिया मेरा।”
समीरा जी और उनके पति बृजेश एक उच्च वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके दो बेटे विनोद और कमल उनके घर की शान हैं। अभी कुछ दिनों पहले बड़े बेटे विनोद का ब्याह भक्ति से संपन्न हुआ है।
भक्ति बहुत ही पढ़ी-लिखी और संस्कारी लड़की है। उसमें वो बड़े घर की लड़कियों जैसा कोई भी रौब नहीं था। शायद इसलिए समीरा जी को भक्ति एक बार में ही पसंद आ गई।
इधर दूसरे दिन रसोई की रस्म निभा समीरा जी ने भक्ति को घर सौंप कर फ्री हो गईं। यद्यपि भक्ति अभी नहीं चाहती थी कि मां अपनी जिम्मेदारियों से मुक्त हों, पर समीरा जी तो बहू के ऊपर आंख बंद विश्वास करने को तैयार थीं।
“मां! आपको नहीं लगता अभी ये घर और इसकी जिम्मेदारियां आपकी हैं। इतनी जल्दी आपने ये जिम्मेदारी मुझे सौंप दी। मैं तो अभी घर-गृहस्थी में कच्ची हूं और कहीं कुछ गलती हो गई तो?”
“कोई गलती नहीं होगी और ना तू कच्ची है। तुझे मैं तेरे से ज्यादा जानती हूँ। अच्छा और ये किसने कहा कि मैंने जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लिया। घर संभालने को दिया है तुझे मैंने घर छोड़ा नहीं है। तेरे हर कदम पर मैं तेरा साथ निभाऊंगी। आखिर तेरी मां जो हूं ऐसे कैसे तुझे अकेला छोड़ दूंगी। अपनी बेटी माना है तो मां का सारा फ़र्ज़ भी निभाऊंगी।”
समीरा जी की बातों से आश्वस्त होकर भक्ति को साँस आई। भक्ति अब पूरी तरह से मन बना चुकी थी कि कुछ भी हो जाए मां का विश्वास नहीं तोड़ना है। आखिर ऐसी सास जैसी सास किस्मत वालों को मिलती है।
कुछ समय बीता और भक्ति ने अच्छे से पूरे घर को संभाल लिया। पापा जी की दवाई से लेकर मां की चाय और सभी के तौर-तरीकों का ध्यान रख लिया। समीरा जी अब तो और खुश थीं कि उन्होंने खरा सोना पसंद किया था।
खैर! घर में बहू के पहले जन्मदिन की तैयारियां जोरों शोरों पर थीं। समीरा जी अपनी बहू का पहला जन्मदिन बहुत ही यादगार मनाना चाहतीं थीं। पर कुछ समय से भक्ति की उदासी देखकर वो परेशान हो जातीं थीं।
हुआ ये था कि भक्ति ने प्रेगनेंसी के टेस्ट कराए थे जिसमें कुछ समस्याएं आईं थीं। इधर भक्ति इन बातों से डर चुकी थी कि अगर वो मां ना बन पाई तो कहीं सबका प्यार और विश्वास उससे कम ना हो जाए। यही बातें उसे अंदर तक खाए जा रहीं थीं। जो वो समीरा जी के साथ शेयर नहीं कर पा रही थी। खैर! समीरा जी भी एक मां हैं और वो भक्ति के मनोभावों को अच्छे से समझ रहीं थीं।
आज भक्ति का जन्मदिन था, तो सभी मोहल्ले की महिलाएं भी एकत्र थीं। भक्ति ने केक काटकर सबसे पहले मां-पिताजी का मुंह मीठा कराया और आशीर्वाद लिया। सभी मोहल्ले की महिलाएं अब भक्ति को घेर कर पूछने लगीं।
“…और बताओ भक्ति अपनी सास को कब दादी बनाने वाली हो। अब तो समय भी हो चला धीरे-धीरे और कितना समय लोगे तुम दोनों?”
भक्ति उन लोगों की बातों से विचलित हुए जा रही थी। तभी एक महिला बोली, “देखो भक्ति अगर इस सब चीजों में ज्यादा समय लगाया तो आगे चलकर बच्चे होने में भी दिक्कतें आएंगी। इसलिए ये गर्भनिरोधक चीजों का प्रयोग बंद कर दो।”
समीरा जी खड़ी सारी बातें सुन रहीं थीं और इधर भक्ति की आंखों से आंसू निकलने वाले थे। तभी समीरा जी बोल पड़ी, “अरे! क्या तुम लोग बच्चे की रट लगाए जा रही हो? अभी इन लोगों ने जीवन की शुरुआत की है और अभी से सब पीछे पड़ गए? और हां किसने कहा मुझे अभी दादी बनना है? अभी मेरी उम्र है क्या हुई दादी बनने की? भक्ति ने भी तो अभी घर संभालना शुरू किया है और अभी से बच्चे की भी तैयारियां शुरू कर दे?”
“पर समीरा जी जितना देर करेगी बहू उतनी परेशानियां भी तो खड़ी हो सकती हैं।”
“कोई बात नहीं अगर परेशानियां आती भी है तो उनका डटकर मुकाबला करेंगे।” भक्ति का हाथ थाम कर उसको आश्वस्त देते हुए समीरा जी बोलीं, “और अगर बच्चे ना भी हुए तो गोद ले लेंगे। लेकिन इन सब फालतू की बातों से अपनी बेटी जैसी बहू का दिल नहीं तोड़ेंगे।
एक बच्चे की मां ना बन पाने से क्या एक महिला अपूर्ण रह जाती है? मुझे तो ये बिल्कुल नहीं लगता और हां आप जैसे लोग पहले एक लड़की की शादी की बातें करते हैं। फिर बच्चे के लिए पीछे पड़ जाते हैं। पूरे समय एक तनाव सी स्थिति का सामना एक महिला को करना पड़ता है। तो कहने का मतलब ये है कि मेरी बेटी को पहले उसकी जिम्मेदारियों को थोड़ा-थोड़ा समझने दो। फिर सोचेंगे उसके परिवार बढ़ाने को लेकर। वो भी पूरे तनावमुक्त वातावरण में।”
समीरा जी की बातों को सुनकर भक्ति की जान में जान आई। आज उसका आधा तनाव तो यहीं से खत्म हो चुका था। और सही मायने में ससुराल में उसको अपनी दूसरी मां मिल चुकी थी। जिसका वो दिल से धन्यवाद कहते ना थक रही थी।
पाठकों! सही मायने में हम नवविवाहित जोड़ों को समय ही नहीं देते संभलने का। पहले शादी को लेकर जल्दबाजी और फिर बच्चों के लिए। कभी कभार इन सब से दांपत्य जीवन में कई परेशानियां भी शुरू हो जाती है। इसलिए बुद्धिमान वही है जो परिस्थितियों के हिसाब से आगे बढ़े। ना कि जल्दबाजी में कोई भी कदम बढ़ाए।
दोस्तों! कैसी लगी मेरी कहानी अपने विचार ज़रूर व्यक्त करें और साथ ही मुझे फाॅलो करना ना भूलें।
मूल चित्र : Still from Anti Dowry Film/Benshi films, YouTube
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