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घर का काम सिर्फ बड़ी बहू की ज़िम्मेदारी नहीं…

अपनी बेटी विनीता से उन्होंने कहा, "तुम जब चाहो तब मायके आ सकती हो, लेकिन मेहमान बनकर नहीं घर की सदस्य बनकर यहां रह सकती हो।"

अपनी बेटी विनीता से उन्होंने कहा, “तुम जब चाहो तब मायके आ सकती हो, लेकिन मेहमान बनकर नहीं घर की सदस्य बनकर यहां रह सकती हो।”

सरला जी अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों से निबट चुकी थीं। बड़ा बेटा कैलाश अपने परिवार के साथ उनके साथ ही रहता था और छोटा बेटा प्रकाश दूसरे शहर में अच्छी नौकरी कर रहा था। उनका अपना खुद का मकान था।

कैलाश की पत्नी रेखा भी सहनशील और संस्कारी बहू थी। उसकी शादी को 5 साल हो चुके थे फिर भी सास से बिना पूछे कोई काम नहीं करती थी। जैसा सरला जी बताती थी वैसा ही करती थी। उसी शहर में रहने वाली ननद विनीता भी जब तब मायके आती रहती थी, रेखा उसका भी स्वागत सत्कार दिल खोलकर करती थी। रेखा को यह सब बुरा नहीं लगता था, पर कभी-कभी उसके मन में आता था कि अगर मम्मी खुश होकर कह दें कि तुमने बहुत अच्छी तरह से सारे कार्य किए तो कितना अच्छा लगे। यह तो कभी होता ही नहीं था।

रेखा डाइनिंग टेबल पर बैठकर सब्जी काट रही थी तभी सरला जी ने खुशी के साथ उससे कहा, “रेखा आज शाम को बाजार चली जाना और जो लिस्ट मैं दे रही हूं वह सामान ले आना।”

रेखा बोली, “क्यों मम्मी? अभी तो कुछ खास सामान नहीं चाहिए क्योंकि कुछ दिन पहले ही पूरे महीने का राशन आया है।”

सरला जी बोली, “मैं रोज के खाने की बात नहीं कर रही, मैं तो अपने बेटे प्रकाश के लिए जो बनाना चाहती हूं उसके लिए सामान मंगवा रही हूं।”

रेखा ने पूछा, “क्या प्रकाश भैया आ रहे हैं?”

सरला जी बोलीं, “हां कल दोपहर तक प्रकाश अपने पूरे परिवार के साथ यहां होगा।”

रेखा खुश होते हुए बोली, “यह तो बहुत अच्छा है। त्योहार के समय पूरा परिवार एक साथ होगा।”

रेखा बाजार जा कर सारा सामान ले आई। प्रकाश के आने के बाद सरला जी, प्रकाश और उसकी पत्नी नीता के चारों तरफ घूम रहे थे। नीता सूट पहन कर आई थी जबकि रेखा मां जी की इच्छा अनुसार साड़ी ही पहनती थी।

सरला जी ने कुछ खाना तो खुद बनाया और कुछ व्यंजन रेखा से बनवाए। घर में भरवा करेले, दही बड़े, लौकी का हलवा, कोफ्ते ना जाने क्या-क्या बना था। रेखा को तो फुर्सत ही नहीं मिल रही थी। वह नीता को अपनी छोटी बहन मानती थी पर बार-बार सास का यह कहना  कि ‘नीता को अच्छा लगता है इसलिए बना लो’, रेखा को दुखी कर रहा था।

सरला जी ने कभी जानना नहीं चाहा था कि उसे क्या अच्छा लगता है, क्या बुरा लगता है। उसे लग रहा था वह तो नौकरानी की तरह से काम कर रही है। मांजी नीता से कोई काम नहीं करा रही थी यह कहकर कि वह तो चार दिन के लिए आई है। भाई के आने की खबर सुनकर विनीता भी पति और बच्चों के साथ आ गई। रेखा का काम और बढ़ गया क्योंकि देवरनी मेहमान थी और ननद से तो कोई काम कहा ही नहीं जा सकता था।

मन ही मन कुछ ठान कर रेखा ने पल्लू कमर में खोंसा और जितना काम हो सकता था करने लगी, बाकी छोड़ दिया। जैसे कुछ व्यंजन नहीं बनाए, बीच-बीच में चाय की फरमाइश आने पर चाय के साथ दालमोठ बिस्किट भेज दिए, पकोड़ों की मांग होने पर भी पकौड़े नहीं बनाए। नाश्ता खाना बनाने में इतनी देर की कि सब भूख से परेशान हो गए।

आखिरकार नीता किचन में आई और रेखा की मदद करने लगी। जब सब खाने बैठे तब सरला जी कहने लगीं, “देखो नीता ने कितनी अच्छी सब्जी बनाई है और सलाद कितनी अच्छी सजा कर लाई है।”

आज रेखा चिढ़ चुकी थी कि उसकी मेहनत की तो कभी प्रशंसा की ही नहीं गई इसलिए बोली, “मम्मी नीता ने एक दिन काम कर लिया तो क्या हुआ मुझे तो हमेशा ही करना होता है। मैं भी तो थोड़ा देवरानी का सुख ले लूं क्योंकि शादी के 5 साल बाद भी मुझे नई बहू की तरह से रहना पड़ता है।”

इसके साथ ही टेबल से प्लेटें उठाकर बाकी खाना समेटने और फ्रिज में रखने का काम नीता पर छोड़कर वह अपने बेटे को लेकर बेडरूम में चली गई। नीता ने जैसे-तैसे काम समेटा। अगले दिन भी रेखा ने इसी तरह से कुछ काम किए और कुछ नीता पर छोड़े। नीता को तो इतना काम करने की आदत ही नहीं थी इसलिए वह परेशान हो गई।

अब नीता मां जी के पास बैठकर खुशामद की बातें नहीं कर पा रही थी बल्कि अपने पति से पूछ रही थी कि वापस कब चलना है? घर के ढीले-ढाले कामों को देख कर सरला जी को भी एहसास हो रहा था कि जो बहू लगातार यहां रहकर उनकी सेवा करती है उसे महत्व न देकर वह मेहमान के समान आने वाली छोटी बहू को ही महत्व देती रहीं। उन्हें खुद पर शर्मिंदगी हुई।

उन्होंने रेखा और नीता को एक साथ बुलाया तथा कहा कि तुम दोनों को घर के सभी काम मिल-जुलकर करने हैं। रेखा हमेशा इसी घर में रहती है इसलिए केवल उसका फर्ज नहीं है कि पूरे घर की सेवा करें। कुछ दिन के लिए आने के कारण नीता मेहमान की तरह से नहीं रह सकती बल्कि उसे घर की बड़ी बहू तथा अपनी जेठानी का हाथ बताना ही होगा। अपनी बेटी विनीता से भी उन्होंने कहा कि तुम जब चाहो तब मायके आ सकती हो लेकिन मेहमान बनकर नहीं घर की सदस्य बनकर, घर का काम करते हुए यहां रह सकती हो।

रेखा आज खुश थी कि मांजी ने उसे बड़ी बहू का सम्मान दिया। कुछ घरों में यह देखा जाता है कि जो बहू ससुराल में हमेशा रहती है सारी जिम्मेदारी उसी की समझी जाती है। कुछ दिन के लिए आने वाली दूसरी बहू को मेहमान मानकर ज्यादा काम नहीं दिया जाता। इस कारण ससुराल में रहने वाली बहू मन ही मन आहत होती रहती है। सास को दोनों बहुओं को बराबर जिम्मेदारियां देनी चाहिए।

मूल चित्र : Still from Short Film Khwaishein, Six Sigma Films, YouTube 

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