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संचिता जब भी किसी बात के लिए पूछती, तो सास का जवाब यही होता कि मेरी बेटी की तो जिंदगी बर्बाद हो रही है और इसे अपनी ही पड़ी है।
संचिता दो दिन से देख रही थी कि दोनों मां-बेटी काफी परेशान थी। पर किससे, क्या बोले, इसलिए चुपचाप अपने कामों में लगी रहती। वैसे भी किसी को सुनने और बताने में कोई इंटरेस्ट तो था नहीं। आखिर बात छोटी ननद वाणी से संबंधित थी और जहां ननद की बात आती थी, घर में सबके कान खराब हो जाते थे। क्योंकि उनकी बेटी सर्वगुण संपन्न जो थी।
जब से वाणी अपने ससुराल से आई है तब से घर का माहौल बदल चुका है। संचिता जब भी किसी बात के लिए पूछती, तो सास का जवाब यही होता कि मेरी बेटी की तो जिंदगी बर्बाद हो रही है और इसे अपनी ही पड़ी है। कुछ कह नहीं पाती संचिता। आखिर बात क्या है कोई बताता भी नहीं। बस उसे ताने मारने में कोई कमी नहीं छोड़ते।
संचिता जब इस घर में शादी हो कर आई थी तब वाणी सिर्फ अट्ठारह साल की थी और अपनी पढ़ाई कर रही थी। लेकिन एक भारतीय ननद वाले सारे गुण थे उसमें। हर बात में अपनी भाभी को टोकना उसकी आदत थी। छोटी मोटी चीजों को तो खुद संचिता भी ध्यान नहीं देती, लेकिन जब शादी के बाद उसने नौकरी ज्वाइन की तो पहली सैलरी को लेकर जो हंगामा हुआ था उसे आज भी याद है। जिसमें सबसे बड़ा योगदान उसकी ननद वाणी का ही था।
उस पढ़ी-लिखी ननद के अनुसार उस सैलरी पर सिर्फ और सिर्फ ससुराल वालों का अधिकार था। और उसको कैसे मैनेज करना है वह संचिता डिसाइड नहीं कर सकती। जब संचिता ने उस सैलरी को देने से मना कर दिया तो वाणी ने खुद फोन करके उसके माता-पिता तक को बुला लिया था। और यहां तक कह दिया था कि ले जाइए आपकी बेटी को।
आखिरकार माता-पिता भी क्या कहते? निम्न मध्यम वर्ग के परिवार के लोगों की अपनी दस समस्याएं होती है। ऊपर से अगर यह सुनने को मिल जाए कि ले जाइए आपकी बेटी को, तो…तो उन्होंने भी संचिता को ही समझाया, “कोई इतनी बड़ी सैलरी तो है नहीं तुम्हारी। पाँच हजार रुपये ही तो है। दे दिया करो बेटा। थोड़ा एडजस्ट करो…”
आखिर अपने पापा को यूँ अपमानित और बेबस देखकर संचिता को अपनी सैलरी ससुराल वालों को ही देनी पड़ी। घर का सारा काम करके जाओ और जॉब करके आने के बाद वापस घर के काम में लगो। उसके बावजूद भी उन पैसों पर अपना अधिकार नहीं। ऊपर से कोई न कोई ताने सुनने को मिलते। आखिर कुछ महीने तो संचिता ने जॉब की, फिर थक हार कर जाॅब छोड़ दी।
आखिर क्या करना ऐसी जॉब का, जिसमें नौकरानी बनकर घर का काम भी करो और कमाकर इन लोगों को भी दो। हालांकि जाॅब छोड़ने पर भी काफी हंगामा हुआ था। आखिर अलग से जो पाँच हजार रुपए आ रहे थे, वह भी हाथ से चले गए। पर इस बार संचिता तैयार थी। सब अपना माथा पीट के रह गए, पर उसने एक भी जवाब नहीं दिया। आखिर अपने आप ही चुप हो गए।
पर अब क्या हुआ? ननद की शादी को तो अभी सिर्फ पांच महीने ही हुए हैं और वह यहां घर पर आकर बैठ गई। खैर, ज्यादा दिमाग लगाना संचिता ने भी ठीक नहीं समझा। बताना हो तो बताएं, नहीं तो वाह। हम तो अपनी लाइफ में खुश है। क्योंकि अब तो तानों का असर भी नहीं होता।
शाम की चाय के समय पूरा परिवार सासू मां के कमरे में था। संचिता चाय बना कर कमरे में लेकर गई तो कमरे में चल रही बातें उसे सुनाई दी, “ऐसा कैसे कर सकते हैं वो लोग? आखिर इसमें मेरी बेटी का फैसला चलना चाहिए। मेरी बेटी भी दिन भर मेहनत करती है और पूरी सैलरी अपने पास रखने की सोच रहे हैं वो लोग?”
“पर माँ, उन लोगों ने साफ कहा है कि अगर वाणी सैलरी उन्हें पूरी नहीं देगी तो वाणी अपने मायके में ही बैठी रहे…”
“ऐसे कैसे बैठी रहे? हमारी बच्ची की जिंदगी तमाशा है क्या? आखिर समझते क्या है वो लोग अपने आप को। हम लोग केस कर देंगे उनके ऊपर!”
“देखो मां, हमारी इतनी हैसियत नहीं है कि हम वाणी के लिए कोर्ट के चक्कर लगाए। आखिर सैलरी देने में हर्ज क्या है, कौन सी इतनी ज्यादा सैलरी है?”
“भाई ऐसे कैसे दे दूँ? हलवा है क्या, जो बाँट दूँ सबको। सुबह से शाम मेहनत करके कमाती हूं। सैलरी कम है, तो क्या हुआ? मेरी है। उस पर वो लोग अपना अधिकार कैसे जमा सकते हैं?”
इतने में संचिता चाय लेकर कमरे में आ गई। उसे देख कर सब चुप हो गए। पर संचिता के चेहरे पर एक बड़ी सी मुस्कान आ गई। जो सासू मां और वाणी के दिल पर सांप की तरह लोट गई। आखिर सासू मां से रहा नहीं गया तो उन्होंने बोल ही दिया, “यहां मेरी बेटी का घर बिगड़ रहा है और इसे देखो, कैसे मुस्कुरा रही है…”
“भाभी को क्या लेना देना मुझसे। कभी कोई बहू अपने ससुराल की हुई है क्या?”
संचिता ने कुछ नहीं कहा और चुपचाप कमरे के बाहर जाने लगी। दरवाजे पर पहुंचकर पलट कर वाणी से बोली, “जिनके घर शीशे के होते हैं, वो दूसरों के घर पर पत्थर नहीं फेंका करते। कुछ याद आया ननद रानी?”
इतना कहकर संचिता वहां से चली गई और वाणी चुपचाप नजरें झुका कर बैठ गई।
मूल चित्र : Still from Nand Episode 2/ARY Digital, YouTube
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