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अपने ससुराल आये आज मुझे तीस साल हो गए हैं…

ज़रूरी नहीं है कि जिसने आप को जन्म दिया है वही आपका भाग्य विधाता हो। जहां आप भाग्य से गई हैं वह भी आपका विधाता बन सकता है। कुछ ऐसा मेरे साथ भी हुआ...

ज़रूरी नहीं है कि जिसने आप को जन्म दिया है वही आपका भाग्य विधाता हो। जहां आप भाग्य से गई हैं वह भी आपका विधाता बन सकता है। कुछ ऐसा मेरे साथ भी हुआ…

ये एक शोख चंचल लड़की की कहानी है, यानी कि मेरी कहानी, मतलब शकुन की कहानी है। जब मैं अट्ठारह साल की हुई तब मेरा ब्याह हो गया। अपने ससुराल आये आज मुझे तीस साल हो गए हैं।

मैंने एक पति के रूप में एक दोस्त पाया जिसने मुझे आगे बढ़ने की प्रेरणा दी। शादी के कुछ समय बाद मेरी पढ़ाई बंद हो गई और मैं चिंतित रहने लगी कि अब मेरे सपने कैसे पूरे होंगे? तब मेरे ससुर ने मुझे विदुषी गार्गी और शिवानी के संघर्षपूर्ण जीवन के बारे में बताया और मुझे मेरी पढ़ाई फिर से शुरू करने के लिए प्रेरित किया।

कई विश्वविद्यालयो मैं बात करने के बाद और काफी संघर्ष के बाद, मेरा दाखिला अवध विश्वविद्यालय के एम.ए. समाज शास्त्र विभाग में हो गया।

बात उस समय की है, जब मेरी परीक्षा करीब थी और उस समय मेरे बड़े ससुर जी की तबीयत बहुत खराब थी। उनकी देखभाल करना, मेरे दो छोटे बच्चो का लालन-पालन और घर का रख-रखाव करते करते, मुझे मेरी पढ़ाई करने का समय बिल्कुल नहीं मिल पाता था। तब मेरे ससुर, जो खुद डॉक्टर हैं, ने सोचा कि मुझे पढ़ना तो है लेकिन इस समय उनकी देख-रेख भी ज़्यादा करनी है। तो वह जब हॉस्पिटल से लौट कर आते थे, मुझे एक टीचर के यहां लेकर चले जाते थे। दो घंटे के लिए मैं वहीं पर अपनी पढ़ाई करती थी फिर घर आकर मैं अपने दायित्व की पूर्ति करने में जुट जाती थी।

मेरे ससुर जी एक समाज सुधारक जैसे व्यक्ति हैं, जो महिलाओं को पढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं और अपनी तरफ से जितना भरसक प्रयास करने की कोशिश करते हैं। महिलाओं के अधिकारों के लिए पूरी तरीके से लड़ते हैं क्योंकि उनका मानना है कि जब लड़की पड़ेगी तभी तो आगे बढ़ेगी।

उन्होंने मेरे ही लिए नहीं मेरे सास के लिए भी अपने परिवार और समाज से लड़ाई की, उस समय जब महिलाओं को पढ़ाया भी नहीं जाता था। वह घर में रह कर घर और परिवार संभालती थी। उस समय मेरे ससुर जी को लगा कि एक महिला पढ़ेगी तो घर और समाज दोनों आगे बढ़ेगा लेकिन यह डगर इतनी आसान न थी। उनको घर में काफी लड़ाई लड़नी पड़ी कभी समाज कभी अपनों से, लेकिन दृढ़ शक्ति मजबूत हो तो आपके सपनों को पूरा होने के लिए कोई नहीं रोक सकता। ईश्वर भी आपकी मदद करता है।

उन्होंने अपनी पढ़ाई के साथ-साथ मेरे सास का भी दाखिला बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान विभाग में करा दिया। दोनों ने साथ में पढ़ाई की और साथ में ही अपने परिवार को सक्षम बनाया।
इसलिए मैं कह सकती हूं कि जरूरी नहीं है कि जिसने आप को जन्म दिया है वही आपका भाग्य विधाता हो। जहां आप भाग्य से गई हैं वह भी आपका विधाता बन सकता है। वह आपको समाज में सर उठा के चलने लायक बना सकता है।

आज मैं और मेरी सास मेरे ससुर जी के वजह से ही शिक्षित महिलाएं हैं। जैसे लोग कहते हैं कि एक सफल पुरुष के पीछे एक महिला का हाथ होता है वैसे ही मैं कह सकती हूं कि आज दो सक्षम महिलाओं पीछे एक पुरुष का हाथ है।

मूल चित्र : Still from Short Film Beans Aloo, YouTube

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