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उठो सखी बहुत हुआ। लोगों की ऐसी बातों से, ख़ुद को कभी न बोझिल करना।राह सही है डगर सही है,खुद ही अपना संबल बनाना।
उठो सखी बहुत हुआ, लोगों की ऐसी बातों से, ख़ुद को कभी न बोझिल करना, राह सही है डगर सही है, खुद ही अपना संबल बनाना।
उठो सखी बहुत हुआ अब बस, कितना सहना, क्या इसी दिन को सजाये थे, अनगिनत सपने?
कहाँ खो दिये, वो थे अपने पथराई सी आँखों को जो, चमक दिया करते थे! अनगिनत परेशानियों में भी। जो सबब बना करते थे, कहाँ छिप गए, वो थे अपने।
उठो सखी अब हार न मानो, अपनी हिम्मत को पहचानो। गिरकर उठकर थमकर चलकर, राह नयी अब हासिल कर लो।
माना मुश्किल राह बहुत है, माना आगे कठिन डगर है। बढ़ने की जो चाह अगर हो, जीवन में नामुमकिन ना कुछ।
उठो सखी ये नया सवेरा, राह तक रहा कबसे तेरा। पिछला सारा स्याह अँधेरा, जीवन का वो धुँधला पन्ना। छोड़ चलो, सब पीछे अपने, नए सफ़र को, नए डगर पर।
साथ किसी का अब ना तकना, दृढ़ निश्चय कर आगे बढ़ना। उठो सखी ये मौका सुनहरा। मुमकिन है कुछ लोग मिलेंगे, कड़वी तीखी बात कहेंगे। लोगों की ऐसी बातों से, ख़ुद को कभी न बोझिल करना।
राह सही है डगर सही है, खुद ही अपना संबल बनाना। उठो सखी अब नया सवेरा नयी उम्मीदें नया बसेरा।
मूल चित्र: Fat Camera from Getty Images Signature via Canva Pro
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