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भारतीय सेना व सशस्त्र बलों में महिलाओं का योगदान एक लंबे अरसे से है और वे अपनी क्षमता को सिद्ध कर चुकी हैं। आइये जानें और...
भारतीय सेना व सशस्त्र बलों में महिलाओं का योगदान एक लंबे अरसे से है और वे अपनी क्षमता को सिद्ध कर चुकी हैं। आइये जानें और…
“कदम-कदम बढ़ाए जा
खुशी के गीत गाए जा…”
सच कहिएगा, बंशीधर शुक्ल की ये कविता हम जब भी सुनते हैं तो आँखें बंद करके हम क्या कल्पना करते हैं? यही न कि वर्दी पहने और कंधे पर बंदूक लादे फ़ौजियों की एक बड़ी टुकड़ी परेड करती हुई चली जा रही है। पर ये सभी सिपाही पुरुष हैं इनमें कोई महिला नहीं है।
कमाल है न कि कल्पना में भी हमें फ़ौजियों/सिपाहियों के रूप में सिर्फ़ पुरुष ही दिखाई देते हैं। इसका कारण है हमारी मानसिकता जो कहती है कि देश की सुरक्षा में लगने वाला श्रम और बल केवल पुरुषों के ही पास है।
इसी मानसिकता के चलते आज भी सशस्त्र बलों में महिलाओं का योगदान की बात करें तो पहले उन्हें कई पदों पर शामिल होने की अनुमति नहीं है। जबकि एक लंबे अरसे से महिलाएँ भारतीय सेना व सशस्त्र बलों में अपना भरपूर योगदान देती आ रही हैं और अपनी क्षमता को सिद्ध कर चुकी हैं।
सन 1888 में भारतीय सेना में महिलाओं की भूमिका तब शुरू हुई जब ब्रिटिश शासन के दौरान सैन्य नर्सिंग सेवा का गठन किया गया। 1914-45 के दौरान ब्रिटिश भारतीय सेना की नर्सों ने प्रथम व द्वितीय विश्व युद्ध में भाग लिया। जहाँ ब्रिटिश भारतीय सेना की 350 नर्सें मृत, लापता या युद्ध बंदी घोषित किया गया।
मई 1942 में महिला सहायक कोर-भारत (women auxiliary corps-India) का गठन किया गया। भारतीय मूल की नूर इनायत खान और अमरीकी मूल की जॉर्ज क्रॉस द्वितीय विश्व युद्ध की ब्रिटिश नायिकाओं के रूप में उभर कर आईं। वे दोनों ही स्पेशल ऑपरेशन्स एक्ज़ीक्यूटिव में अपनी सेवाओं के लिए मशहूर थीं।
कल्याणी सेन एक सेकेंड ऑफ़िसर और भारतीय सेवा में पहली महिला थीं जिन्होंने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान यूनाइटिड किंगडम (United Kingdom) जाकर रॉयल इंडियन नेवी के अंतर्गत महिला रॉयल इंडियन नेवल सर्विस में सेवा की।
आर्मी एक्ट 1950 के तहत, जो कोर, विभाग या शाखाएँ केंद्र सरकार के अधिनियमों से निर्दिष्ट होती हैं उन्हें छोड़कर महिलाएँ नियमित रूप से कमीशन किए जाने के लिए अपात्र थीं। 1 नवमबर 1945 में आर्मी मेडिकल कोर को महिलाओं को नियमित कमीशन किए जाने वाली पहली इकाई बनाया गया।
1992 से पहली बार महिलाओं को भारतीय सेना की विभिन्न शाखाओं पर केवल शॉर्ट सर्विस कमीशन के द्वारा शामिल किया जाना आरंभ हुआ। 2008 से महिलाओं को कानूनी और शिक्षा कोर में स्थायी अधिकारी के रूप में शामिल किया जाना शुरू किया गया। 2020 तक उन्हें 8 और कोर में स्थायी कमीशन अधिकारी के रूप में शामिल किया जा शुरू किया गया।
2020 तक भी महिलों को भारतीय सेना व अन्य विशेष बलों की पैराशूट रेजीमेंट में लड़ाकू पदों पर शामिल होने की अनुमति नहीं है। पर पैरा ईएमई, पैरा सिग्नल, पैरा एएससी आदि के पैराट्रूप्स विंग में शामिल हो सकती हैं।
भारतीय वायु सेना महिलाओं को लड़ाकू भूमिकाओं में शामिल करने लगी है। जिसके चलते वायु सेना में महिला अधिकारियों की संख्या लगभग 13.09% है जो कि अन्य सभी शाखाओं के मुक़ाबले काफ़ी अधिक है।
2015 में भारतीय वायु सेना ने महिलाओं को लड़ाकू पदों पर शामिल किया जाना शुरू किया और वर्ष 2016 में तीन महिलाओं को फाइटर पायलट के रूप में नियुक्त किया।
डॉ सीमा राव को भारत की वंडर वुमन के नाम से भी जाना जाता है। एक ओर जहाँ भारतीय सेना अब भी महिलाओं को लड़ाकू भूमिकाओं में शामिल करने से कतराती है वहीं डॉ. सीमा राव भारत की पहली महिला कमांडो ट्रेनर हैं। जो अब तक भारत के 15000 से भी अधिक विशेष बलों के कर्मियों को प्रशिक्षित कर चुकी हैं।
भारत की पैरामिलिट्री फ़ोर्स के अंतर्गत भारतीय कोस्ट गार्ड्, असम राइफ़ल्स और स्पेशल फ़्रंटियर फ़ोर्स में महिलाओं का योगदान:
भारतीय कोस्ट गार्ड में महिलाएँ जनरल ड्यूटी, पायलट या कानूनी अधिकारी की रैंक पर शामिल हो सकती हैं। सन 2017 में भारतीय कोस्ट गार्ड 4 महिलाओं को अधिकारियों और सहायक कमांडेंट के रूप में शामिल करने वाला पहला सुरक्षा बल बना। अनुराधा शुक्ल, स्नेहा कठायत, शिरीन चंद्रन और वसुंधरा चोकसी ये वो 4 महिलाएँ हैं जिन्हें केवी कुबेर होवरक्राफ़्ट जहाज़ पर युद्धक भूमिकाओं में तैनात किया गया।
सन 2016 में असम राइफ़ल्स ने पहली बार 100 महिला सैनिकों को शामिल किया। अगस्त 2020 में आर्मी सर्विस कोर की कैप्टन गुरसिमरत कौर के नेतृत्व में पहली बार असम राइफ़ल्स की 30 राइफ़ल-महिलाओं को एलओसी (LOC) पर तैनात किया गया था।
1962 में भारत और चीन के युद्ध की एक और परिस्थिति के दौरान सबसे कुलीन और विशेष बल के रूप में स्पेशल फ़्रंटियर फ़ोर्स का निर्माण किया गया था। इस बल का विशेष कार्य था युद्ध की स्थिति में चीनी लाइनों के पीछे गुप्त संचालन के लिए रॉ (RAW) के एक गुप्त सशक्त्र बल के रूप में कार्य करना।
सन 2011-12 में पहली बार राष्ट्रिय सुरक्षा गार्ड (एनएसजी) (ब्लैक कैट कमांडो) के रूप में महिला कमांडो को शामिल किया गया। महिला एनएसजी ब्लैक कैट कमांडो अपने समकक्ष पुरुष कमांडो प्रशिक्षण से ही गुज़रती हैं। सन 2015 में सरकार ने घोषणा की, कि चूंकि महिला कमांडो वीआईपी सुरक्षा कर्तव्यों का भी पालन करती हैं उन्हें आतंकवाद विरोधी अभियानों में भी तैनात किया जाएगा।
सन 2013 में स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप (एसपीजी) में पहली बार महिला कमांडो को शामिल किया गया।
रेलवे सुरक्षा बल का शक्ति दस्ता, महिला इकाई है। सन 2015 में शक्ति दस्ते का कार्यभार संभालते हुए देबश्मिता चट्टोपाध्याय आरपीएफ में पहली महिला सुरक्षा आयुक्त बनीं।
2015 में राष्ट्रिय आपदा प्रतिक्रिया बल में वरिष्ठ कमांडेंट रेखा नांबियर तमिलनाडू के अरक्कोनम में स्थित 4वीं बटालियन में शामिल होने वाली पहली महिला कमांडर बनीं। उन्होंने 1000 पुरुष कर्मियों की बटालियन का नेत्रत्व किया।
जून 2021 में भारत चीन सीमा सड़कों के सीमा सड़क संगठन (border roads organization) के अंतर्गत रोड कंस्ट्रकशन कंपनी के हिस्से की कमान संभालने वाली पहली महिला कमांडिंग ऑफ़िसर वैशाली एस हिवासे बनीं।
डॉ पुनिता अरोड़ा, पद्मा बंदोपाध्याय, माधुरी कनिटकर, गुंजन सक्सेना, प्रिया झिंगन, ये वो महिलाएँ हैं जिन्होंने भारतीय सेनाओं में केवल अपना ही नहीं बल्कि अपने परिवार और राष्ट्र का नाम भी ऊँचा किया है। हालाँकि सेना में नाम कमाने वाली महिलाओं के नामों लिस्ट बहुत लंबी है।
अब कोई क्षेत्र ऐसा नहीं रह गया जहाँ महिलाएँ अपनी योग्यता सिद्ध न कर चुकी हों। समय के परिवर्तन के साथ और जेंडर समानता के दौर में महिलाएँ सेना और सशस्त्र बलों में भी अपना क्षमता का डंका बजा रही हैं।
वो दिन दूर नहीं जब महिलाओं को भारत की सभी सेनाओं में महत्वपूर्ण और युद्धक भूमिकाओं में भी शामिल किया जाने लगेगा जिनमें अभी उन्हें भाग लेने की अनुमति नहीं है।
मूल चित्र: via Twitter
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