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मेरे इस घर को खुशियों से भरे रखना…

मनमोहन जी और उनकी पत्नी घर और अंशु में बदलाव देखकर चौंक गए। अपनी बेटी का कान खींच कर प्यार से बोले, "इतना पैसा क्यों खर्च किया?"

मनमोहन जी और उनकी पत्नी घर और अंशु में बदलाव देखकर चौंक गए। अपनी बेटी का कान खींच कर प्यार से बोले, “इतना पैसा क्यों खर्च किया?”

आज मनमोहन जी अपनी पत्नी तथा स्वर्गवासी बेटे के परिवार के साथ अपने पुश्तैनी मकान में रहने लौट आए।

कई वर्षों से शहर में नौकरी करने के कारण वही सरकारी कॉलोनी में रह रहे थे। इस घर की देखभाल के लिए साल में दो तीन बार आते थे।

वैसे कोई चिंता की बात नहीं थी क्योंकि घर के आधे हिस्से में उनके भाई का परिवार रहता था। शहर में उनकी ऊंची नौकरी के कारण बहुत अच्छा और बड़ा सरकारी मकान मिला हुआ था।

घर में खूब चहल-पहल रहती थी क्योंकि बेटा-बहू और छोटा सा पोता रौनक बनाए रहते थे। बेटी का ससुराल भी उसी शहर में था इसलिए वह भी आती-जाती बनी रहती थी।

रिटायरमेंट का लगभग एक साल रह गया था कि तभी उनके परिवार पर जैसे बिजली गिरी। एक एक्सीडेंट ने उनसे उनका पुत्र छीन लिया। समझ में नहीं आ रहा था क्या करें, अपने दुख से दुखी हों या बहू और पोते को देखकर दुखी हों।

बहू की तो हंसी ही छिन गई। पोता बड़ों को रोता देखकर सहम गया। बेटी दामाद से जितना बन पड़ता था उतना सब को तसल्ली देने का प्रयास करते थे पर उनके लिए भी खुद को मजबूत बनाए रखना मुश्किल हो गया था। कितना भी बुरा समय हो, कट तो जाता ही है इसलिए उनकी नौकरी का साल पूरा हो गया और फिर वह अपने पुश्तैनी मकान में लौट आए।

उस शहर ने उनसे उनका बेटा छीन लिया था, इसलिए वहां वह रुकना नहीं चाहते थे। जब तक नौकरी थी तब तक तो रुकना मजबूरी थी।

घर आए तब देखा कि भाई ने पूरे घर की सफाई करा दी थी। घर में घुसते ही सबसे पहले उस साइकिल पर नजर गई जिसे उनका बेटा बचपन में चलाता था। आंखों में आंसू रोककर कमरे में गए। दो बड़े बड़े निवाड़ के पलंग पड़े हुए थे। लंबी डंडी वाला सीलिंग फैन धीरे-धीरे घूम रहा था और पुरानी ट्यूबलाइट जो अब धीमी रोशनी दे रही थी, जल रही थी।

ये देखते ही याद आ गया कि किस तरह से दोनों बच्चे जिद करके माता-पिता के साथ इन्हीं पलंगों पर सोते थे। बड़े से कमरे में चारों तरफ दौड़ते थे। खिड़की पर चढ़कर बाहर झांकते थे। आंसू सोखकर वह बाहर निकले। घर के जिस हिस्से में वह जाते थे वही बेटे की याद उन्हें घेर लेती थी।

उधर उनकी पत्नी भी रसोई में घुसते ही रो रही थी और याद कर रही थी कि किस तरह से बेटा वहीं खड़ा होकर उनसे तरह-तरह की फरमाइश करता था। दोनों पति-पत्नी हर जगह और हर सामान को देखकर वरुण को याद कर रहे थे और चुपचाप आंसू पीते जा रहे थे।

बहू और पोता पहले भी यहां आए थे और तब उनके साथ वरुण भी थे। उन्हें भी पिछली यादें घेर रही थीं। वह तो पहला दिन था पर उसके बाद इसी प्रकार से दिन बीतने लगे। अजीब सी, एक रस सी जिंदगी और घर में छाई मनहूसियत सभी को और ज्यादा दुखी कर रही थी।

जीवन में जैसे रस ही नहीं बचा था। बस जरूरी सामान बाजार से आ जाता था। पोते के लिए बिस्किट, खिलौने आदि आ जाते थे। बाकी सब को जैसे किसी वस्तु की आवश्यकता ही नहीं थी।

बहू का एडमिशन वही बी.एड में करा दिया गया था जिससे आगे चलकर नौकरी कर सके। उन्होंने तो बहू के माता-पिता से कहा था कि आप अपनी बेटी का दूसरा विवाह कर सकते हैं यदि वह अपने बेटे को रखना चाहेगी तो कोई बात नहीं, नहीं तो वह अपने पोते को पाल लेंगे। बहू को इस बात से एतराज था इसलिए उसने दूसरे विवाह के लिए मना कर दिया और सास-ससुर के साथ आ गई। इसी तरह से जिंदगी चल रही थी।

गर्मी की छुट्टियों में बेटी अपने परिवार के साथ मायके आई हुयी थी और मनमोहन जी के भाई और भाभी चार धाम यात्रा पर जा रहे थे। इन पति-पत्नी का भी बहुत मन था जाने का। पूरे एक महीने का समय चाहिए था। बेटी को आया देखकर उन्होंने भी उनके साथ जाने का कार्यक्रम बना लिया।

उनके जाते ही बेटी निकिता ने सबसे पहले घर में बदलाव लाने का निश्चय किया। दामाद ने भी उसका साथ दिया। सब कुछ बदला गया। पुराना फर्नीचर स्टोर में रखा गया, कमरों के पर्दे बदले गए, रंग रोगन हुआ फिर सबसे महत्वपूर्ण काम यह किया गया कि इलेक्ट्रिशियन को बुलाकर तेज रोशनी का प्रबंध किया गया। कुछ पुराने सजावट के सामान को साफ करके फिर से सजाया गया और कुछ नया खरीदा गया।

पहले तो बहू ने ज्यादा ध्यान नहीं दिया पर फिर वह भी उत्साह के साथ इस काम में लग गई। घर का कोई भी हिस्सा अनछुआ नहीं रहा। ड्राइंग रूम, बेडरूम, बरामदा, रसोई सब को सजाया व चमकाया गया। इसके साथ ही बरामदे में फूलों वाले पौधे खरीद कर रखे गए। लग रहा था कि अब घर में जीवन आ गया है।

इसके बाद निकिता ने अपनी भाभी पर ध्यान दिया। दोनों ब्यूटी पार्लर गए। वहाँ भाभी को संवारा, सलवार सूट खरीदे, चप्पले, बैग वगैरह खरीदे। दोनों पति-पत्नी ने उसका मनोबल बढ़ाया और समझाया कि दु:ख अपनी जगह है और ठीक से रहना अपनी जगह। दु:ख तो मन में रहेगा पर व्यक्तित्व तो बाहर दिखाई देता है इसलिए रहन-सहन में सुधार बहुत जरूरी है।

अंशु बहुत खुश मिजाज और सलीके से रहने वाली लड़की थी, बस पति के ना रहने पर अपनी तरफ से बहुत लापरवाह हो गई थी। निकिता का सहारा मिला और उसने खुद को संभाल लिया। बुआ के आ जाने से और उनके बच्चों के साथ रहकर टीटू भी बहुत खुश था।

मनमोहन जी और उनकी पत्नी जब लौट कर आए तब घर और अंशु में बदलाव देखकर चौंक गए। अपना पुराना सामान न पाकर पहले तो वे नाराज हुए पर फिर उन्हें लगा कि यह बदलाव उनके मन को भा रहा है।

पहले जहां हर समय, हर जगह उन्हें वरुण की याद आती थी अब दूसरी बातों पर भी ध्यान जा रहा है। घर में लगी नई लाइट अब उन्हें खुशी का पैगाम देती दिख रही थी। बहु अंशु में भी अब जिंदगी के चिन्ह दिखाई दे रहे थे। पोता भी बहुत खुश था।

उन्हें लगा निकिता ने बिल्कुल सही निर्णय लिया है। निकिता को अपने पास बुला कर उसका कान पकड़ लिया। वह यह सोच कर डर गई कि अब पापा डांटेंगे पर वह उसका कान खींच कर प्यार से बोले, “इतना पैसा क्यों खर्च किया?”

निकिता खुश होकर बोली, “आपसे ब्याज सहित वसूलने के लिए!” वह समझ गई कि मम्मी पापा को बदलाव अच्छा लग रहा है।

अब पूरे परिवार को वरुण के जाने का दु:ख तो था पर जिंदगी थमी नहीं थी। वरुण के बेटे को देखकर अब वे जिंदगी में आगे बढ़ रहे थे। अंशु को पति का प्यार और साथ तो नहीं मिल रहा था पर जिंदगी जीने को मिल रही थी।

निकिता जाते समय कहती गई, “अब हमेशा इस घर को पहले की तरह हंसी खुशी से भरे रहना है। यह बदलना बहुत जरूरी है सबके लिए और खासकर बच्चे के लिए। नहीं तो टीटू का व्यक्तित्व कुंठा ग्रस्त हो जाएगा। उसे भी दूसरे बच्चों की तरह खुशहाल परिवार चाहिए। जो नहीं है वह तो हम उसे नहीं दे सकते पर जो हैं उसे तो सजा-संभाल सकते ही हैं।”

भाभी और माँ ने उसे गले लगा लिया और दोनों कहने लगे, “हां यह बदलाव बहुत ज़रूरी है।”

ऑथर का नोट : किसी प्रियजन के चले जाने से लगता है कि जिंदगी थम गई है। बार-बार उन्हें याद करते रहना एक प्रकार से आदत बन जाती है। जो चला गया वह तो नहीं आ सकता लेकिन जो रह गए हैं उन्हें तो जीवन की आवश्यकता है। अतः रहन-सहन और घर में बदलाव कर लिया जाए तो कुछ बुरा नहीं है। ऐसा नहीं है कि इस बदलाव से दुख समाप्त हो जाएगा, बस यह बदलाव मन को कुछ बदल देता है। जीना तो है ही तो फिर कुछ अच्छा बदलाव करके क्यों ना जिया जाए।

मूल चित्र : Single Parenting, My Choice: Bold is Beautiful/The Whispers/Myntra via YouTube 

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