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परछन होते ही सासू मां को कहते सुना, "हाय! मेरा बेटा कितना थक गया, जा अब तेरा कोई काम नहीं तू आराम कर ले, नई बहू इधर ही रहेगी।"
परछन होते ही सासू मां को कहते सुना, “हाय! मेरा बेटा कितना थक गया, जा अब तेरा कोई काम नहीं तू आराम कर ले, नई बहू इधर ही रहेगी।”
नई नवेली दुल्हन को देखने को भला किसका मन नहीं मचलता?
बात उन दिनों की है जब दुल्हन का मुंह तभी देखने को मिलता था जब परछन के बाद सास या दादी सास सबको बहू का पांच हाथ लंबा घूंघट उठाकर दिखाती थीं।
रश्मि मिश्रा परिवार की नई नवेली बहु बनकर आई। रात भर वह वैवाहिक रस्मों में जगी रही और सुबह होते ही विदाई हो गई और वह ससुराल आ पहुंची। सोना तो दूर पिछले चौबीस घंटे में उसने पलकें भी न झपकाई थीं। ससुराल आते ही कथा हुई और फिर परछन। परछन होते ही सासू मां को कहते सुना, “हाय! मेरा बेटा कितना थक गया, जा अब तेरा कोई काम नहीं तू आराम कर ले।”
रश्मि के अल्हड़ मन में सवाल उठा, “थक तो मैं भी गई हूं, रात भर तो मैं भी जगी थी!”
मां को याद कर उसकी आंखें छलक गईं लेकिन पांच हाथ लंबे घूंघट में उसके आसूं भला किसे दिखने वाले थे? अंदर ही उमड़े और सूख गए।
सास ने बड़ी ननद को आदेश दिया, “बहू को तैयार करा ले आओ मुंह दिखाई की रस्म करनी है।”
ननद रश्मि को और भारी साड़ी और गहनों से सजा लाई। जून के महीने की चुभती गर्मी, गांव में लाइट भी नहीं रश्मि का दम उस पांच हाथ लंबे घूंघट में घुटा जा रहा था पर रह-रह कर उसे मां की बात याद आती, “बेटा! ससुराल में बहुत जल्दी संयम न खोना।”
अब उसे समझ आ रहा था कि बेटी को विदा करते समय मां क्यों इतना करुण प्रलाप करती है।
बीच में रश्मि बैठी और उसको घेरकर गांव घर की मिलाकर आठ से दस औरतें और उनके छोटे बच्चे।
बच्चों की कोलाहल से रश्मि को उलझन हो रही थी और हद तो तब हुई जब पड़ोस की चाची ने अपने दो बच्चे रश्मि की गोद में बैठा दिए यह कहते हुए कि इससे रश्मि की भी गोद जल्दी भर जाएगी।
तेईस साल की अल्हड़ रश्मि चुपचाप सब झेल रही थी, तब तक बगल की काकी कभी हाथ लगाकर रश्मि का हार देखती तो कभी झुमको का वजन करती, “अरे!गहने तो बड़े हल्के दिए तुम्हारे पिता ने और ये क्या! कंगन तो दिया ही नहीं!”
सासू मां ने धीरे से रश्मि के कान में फुसफुसाया, “ये क्या बहू समधी जी ने जग हंसाई करा दी!”
अब रश्मि के सब्र का बांध टूट गया, उसने घूंघट उठाया और बोल पड़ी, “बस अब और नहीं! आप लोग को पता भी है इस शादी का खर्च और आप लोग की डिमांड पूरी करने के लिए मेरे पिताजी ने कितना संघर्ष किया? एडवांस लेने के कारण उनकी सैलरी नाम मात्र की आने लगी।
जबसे ये शादी तय हुई उन्होंने अपने लिए नए कपड़े तक नहीं बनवाए। शायद ही एक साल से हमारे घर में कोई महंगी सब्ज़ी आई हो। आप लोग को नाराज़ करके वो कहां जाते इसलिए उन्होंने आप लोग की सभी डिमांड पूरी की। मैं तो उनकी बेटी हूं, उनका खून इसलिए उन्होंने जो कटौती करनी थी मेरे गहनों में की।
सब की नजर मेरे गहनों पर है किसी ने ये नहीं सोचा कि मैं भी तो थक गई हूं, जरा आराम कर लेने देते मुझको भी। मुँह दिखाई तो कल भी ही सकती थी।”
रश्मि की बातें सुनकर औरतों की कानाफूसी बढ़ गई लेकिन रश्मि को अपनी बात कहके बड़ा ही आत्मिक संतोष प्राप्त हुआ।
दोस्तों, दहेज़ और इस तरह की मुंह दिखाई दोनों ही एक कुप्रथा है। इसे हम सबको “बस अब और नहीं!” कहने की जरूरत है।
मूल चित्र : Still from Short Film Mooh Dikhai/Bollywood Khulasa, YouTube
I am Maya Nitin Shukla. Mother of a son. Working as a teacher. "मैं इतनी साधारण हूं ,तभी तो असाधारण हूं" read more...
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