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मैंने भी वही किया जो पापा करते हैं…

आज अपनी पत्नी की एक-एक चेतावनी उनके कानो में गूंज रही थी। लेन देन का गणित आज रमेश बाबू को बेहद भारी पड़ा था।

आज अपनी पत्नी की एक-एक चेतावनी उनके कानो में गूंज रही थी। लेन-देन का गणित आज रमेश बाबू को बेहद भारी पड़ा था।

कहते है महत्वकांक्षा इंसान को आगे ले जाती है, तो अति महत्वकांक्षा इंसान को गर्त में भी धकेल देती है। कुछ ऐसी ही कहानी है रमेश बाबू की।

रमेश एक सरकारी दफ़्तर में बड़ा बाबू थे। घर में पत्नी और एक किशोरवय बेटा सोनू था।

रमेश बाबू की नौकरी तो कलर्क की थी, लेकिन महत्वकांक्षाएँ  किसी बड़े अधिकारी से कम नहीं। वहीं पत्नी रीता एक सरल सामान्य गृहणी थी। मेहनत की कमाई ही बरकत करती है,  इस विचार को मानती थी। लेकिन इसके उलट रमेश बाबू ऊपर की आमदनी में विश्वास करते। दफ्तर में छोटा हो या बड़ा काम बिना रिश्वत लिये नहीं करते।

दफ़्तर में इस बात को ले कर सब उनका मज़ाक भी बनाते, लेकिन सब जान कर भी अनजान बने रमेश बाबू को तो बस ऊपरी कमाई से मतलब था। रमेश बाबू का घर देखने से कहीं से किसी कलर्क का घर नहीं लगता। सारी सुख सुविधा से युक्त था उनका घर। रीता को अपने पति की ये बात बिलकुल भी पसंद नहीं थी।

“सुनो जी, मेहनत की कमाई का एक रुपया भी बरकत लाता है और दूसरों की मेहनत की कमाई इस तरह रिश्वत के रूप में घर लाने से लक्ष्मी रूठ जाती हैं।”

“तुम चुप करो अपनी सूझ बुझ से कमाए पैसों को रिश्वत का पैसा बोलती हो। शर्म नहीं आती इतनी सुख सुविधा जुटा कर दे रहा हूँ और तुम मुझे ही बातें सुनाती हो?”

“देखना बहुत भारी पड़ेगा ये लेन देन का गणित तुम्हें!” और इस तरह रीता के समझाने पर बात बढ़ते-बढ़ते नोक-झोंक में बदल जाती। लेकिन रमेश बाबू ना अपनी गलती मानते ना अपनी आदत बदलते। थक कर रीता ने ही अब बोलना-टोकना छोड़ दिया।

घर के माहौल का सबसे ज्यादा असर बच्चों पर होता है, तो ऐसे में रमेश बाबू के रिश्वत लेने की आदत का असर सोनू पर भी होना ही था। अपने पिता को कम मेहनत में अधिक धन कमाता देख सोनू भी यही सोचने लगा कि जब थोड़े पैसे रिश्वत के रूप में खर्च करने से कोई भी काम आसानी से हो सकता है ,तो क्यों व्यर्थ मेहनत की जाए?

सोनू जो बचपन से पढ़ाई लिखाई मेहनत से करता था, अब मेहनत से जी चुराने लगा नतीजा सामने था। सोनू अर्धवार्षिक परीक्षा में फेल हो गया।

“सोनू इस बार तो तुम सारे विषय में फेल हो गए। मुझे विश्वास नहीं हो रहा जो बच्चा इतने अच्छे नंबर लाता था वो सारे विषय में फेल कैसे हो गया? कल तुम अपने मम्मी पापा को स्कूल ले कर आओ। मैं बात करना चाहती हूँ उनसे।”

सोनू की क्लास टीचर ने सोनू को अपने माता-पिता को बुला कर लाने को कहा।

“क्यों मम्मी-पापा को बुलाना मैम, कुछ ले दे कर बात खत्म कर दीजिए। आखिर पास फेल करना तो आपके हाथ ही में है। मुझे बस पास होने जितने नंबर दे दीजिए और बदले में जो आप बोलो वो मैं दूंगा।”

सोनू की बात सुन टीचर दंग रह गई और तुरंत जा कर प्रिंसिपल को सारी बात बता दिया।

अगले ही दिन रमेश बाबू और रीता प्रिंसिपल के ऑफिस में सर झुकाये अपने लाडले की करतूत सुन रहे थे। जब प्रिंसिपल सर ने सोनू को टीचर को रिश्वत देने की बात बताई, तो शर्म से रीता और रमेश बाबू पानी पानी हो गए।

“बता ऐसा क्यों कहाँ सोनू तुमने अपनी टीचर को? बता क्यों किया ऐसा?” आवेग में आ रीता ने सोनू को जोर की डांट लगाई। अपनी माँ की डांट सुन सोनू रोने लगा।

“पापा ही तो कहते है रिश्वत ले दे कर टेढ़े काम भी आसान हो जाते हैं, तो क्यों मेहनत करना? और माँ, पापा भी तो रिश्वत ले कितने लोगों का काम आसान कर देते हैं। बस यही सोच पढ़ने की मेहनत से बचने के लिए मैंने पढ़ाई नहीं की। और जब फेल हो गया तो सोचा मैम को रिश्वत देकर पास हो जाऊँ। इसलिए मैंने मैम को रिश्वत देने की कोशिश की।”

सोनू अपनी बात खत्म कर रोने लगा। कमरे में सभी बस चुप चाप एक दूसरे को देखे जा रहे थे। किसी की आवाज़ निकली ही नहीं। जहाँ प्रिंसिपल सर और मैम दोनों दंग हो रमेश बाबू को देख रहे थे, वहीं रमेश बाबू शर्मिंदा हो बस दोनों हाथ जोड़े खड़े रहे।

आज अपनी पत्नी की एक एक चेतावनी उनके कानो में गूंज रही थी। लेन देन का गणित आज रमेश बाबू को बेहद भारी पड़ा था। रिश्वत के इस दलदल में वो इतने गहरे डूब चुके थे, कि वो देख ही नहीं पाए कि कब उनका बेटा भी इस दलदल में उतर गया।

अपनी गलतियों पर ज़ार ज़ार पछताते रमेश बाबू ने उसी पल निर्णय ले लिया कि अब ना वो खुद और ना अपने बेटे को इस दलदल में डूबने देंगे।

मूल चित्र: Still from Maa(Song) Taare Zameen Par, YouTube

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