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"ये कैसे बोल रही हो अपने पापा से? डॉक्टर बन गयी हो तो इसका मतलब ये नहीं कि अपने पापा से कुछ भी बोल दोगी", दादी ने अवनि को गुस्से से बोला।
“ये कैसे बोल रही हो अपने पापा से? डॉक्टर बन गयी हो तो इसका मतलब ये नहीं कि अपने पापा से कुछ भी बोल दोगी”, दादी ने अवनि को गुस्से से बोला।
अवनि जैसे ही घर के पास पहुंची उसका मन खुश हो गया। घर के बाहर तक खाने की खुशबू फैली थी।
घर के अंदर पहुंच कर वह और हैरान रह गयी। पूरा घर सजा हुआ था और उसके पापा और दादी उसके इंतजार में खड़े थे।
“अरे आओ-आओ बेटा! आज तुमने हमारा सर फक्र से ऊँचा कर दिया, डॉक्टर बन के! क्या चाहिए तुम्हें खुल के बताओ।”
“पापा, माँ कहाँ है?”
“अरे होगी किचन में, जहा वो हमेशा रहना पसंद करती है। उसके अलावा करेगी क्या?” पापा ने वही राग अलापना शुरू कर दिया जो अवनि बचपन से देखती सुनती आ रही थी।
अवनि बचपन से ही माँ को हमेशा अपने काम में लगे देखा और पापा और दादी को माँ के काम में मीन मेख निकालते हुए।
अवनि होश सभालते हुए ही अपनी माँ को बोलने लगी, “माँ आप क्यों बर्दाश्त करती हैं इतना? पापा और दादी हमेशा आप पर चिल्लाते हैं बिना बात के और आप कुछ नहीं बोलती?”
माँ हमेशा हँस कर टाल देती और आज भी पापा ने वही किया। माँ को बिना बात के कुछ भी सुना देना।
अवनि किचन में गयी और माँ का हाथ पकड़ बाहर खींच लायी और बोली, “माँ आज आप पापा को बोल ही दीजिये कि किचन आपकी मनपसंद जगह नहीं है। आप पापा और दादी को खुश रखने के लिए पूरे दिन किचन में घुसी रहती हैं।”
“अवनि क्या लेके के बैठ गयी तुम? छोड़ो माँ को। बताओ तो तुम्हें क्या चाहिए अपने लिए?”
“पापा अगर आप मुझे कुछ देना चाहते हैं तो माँ को सम्मान दीजिये, जो मैंने बचपन से आपको कभी नहीं देते देखा।”
“ये कैसे बोल रही हो अपने पापा से? डॉक्टर बन गयी हो तो इसका मतलब ये नहीं कि अपने पापा से कुछ भी बोल दोगी।” दादी ने अवनि को गुस्से से बोला।
“नहीं दादी कुछ भी नहीं बोल रही हूँ। पापा ने मुझे कुछ मांगने के लिए बोला और मैंने अपनी माँ का सम्मान माँगा, क्यूंकि मैंने इनका सम्मान इस घर में होते हुए कभी नहीं देखा। दादी आप एक औरत होके भी माँ का दर्द कभी नहीं समझीं?”
“क्या कमी रखी है हमने तेरी माँ को इस घर में?” दादी ने अवनि को गुस्से में आँख तरेर कर पूछा।
“दादी एक औरत को रोटी, कपड़ा, मकान के साथ पति और घर वालों से सम्मान भी चाहिए होता है। इतनी छोटी सी बात आपको और पापा लो कभी भी समझ में नहीं आयी? और मैं होश सभालते ही समझ गयी थी ये बात कि मेरी माँ को क्या चाहिए। पर मैंने अपनी माँ की वजह से ही कुछ नहीं बोला आज तक, क्यूंकि माँ मुझे हर बार रोक देती थी। और सुन लीजिये आप दोनों, जिस घर में मेरी माँ का सम्मान नहीं होगा, उस घर में मेरी माँ नहीं रहेगी। मैं चली जाऊँगी अपनी माँ को ले इस घर से।”
“अच्छा इसी दिन के लिए तुम्हे इतना पढ़ाया लिखाया तेरे पापा ने?” दादी ने त्योरिया चढ़ाते हुए पूछा।
“माँ कुछ मत बोलिये अवनि को। हमारी गलती है सही में हमने कभी इस बात पर ध्यान ही नहीं दिया।”
पापा की बात सुनकर अवनि चौंक गयी।
हाँ बेटा मुझे माफ़ कर दो। मैं तुम्हारी माँ का सच में कभी सम्मान नहीं किया, ना ही कभी किसी बात के लिए सराहा। और मैं तुम्हारे से भी माफ़ी मांगता हूँ। बहुत गलत था मैं। मुझे कोई भी सजा दो चलेगा।”
“कोई बात नहीं पापा। जब जागो तभी सवेरा। चलिए मैं माँ की पसंद का केक ले के आयी हूँ। साथ में काटते हैं क्यूँकि मेरे डॉक्टर बनने में माँ की ही योगदान है सबसे ज्यादा और इसीलिए माँ इस सम्मान की सबसे बड़ी हक़दार हैं!”
मूल चित्र : Still from short film (Suta) The Daughter/Pocket Films, YouTube
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