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एक दिन पूनम जी ने, काव्या को डांटा और वे बोलीं, "ये क्या जिद्द है तुम्हारी? मुझे नहीं जाना तुम्हारे साथ शादी के बाद।"
एक दिन पूनम जी ने, काव्या को डांटा और वे बोलीं, “ये क्या जिद्द है तुम्हारी? मुझे नहीं जाना तुम्हारे साथ शादी के बाद।”
“तू अकेली कैसे रहेगी ससुराल मे?” पूनम जी अक्सर अपनी लड़की काव्या को पूछती थी, और जवाब मे काव्या उत्तर देती, “माँ मैं आपको कभी छोड़ कर जाऊँगी ही नहीं।”
काव्या स्वाभाव से बहुत शर्मली और शांत थी। वह एक 22 वर्षीय लड़की थी पर दोस्त ज्यादा नहीं थे उसके, कॉलेज से घर और घर से कॉलेज, बस यही था उसका रोज का नियम।
काव्या अपनी सारी बातें माँ से साझा करती थी, फिर चाहे कॉलेज मे किसी लड़के द्वारा दिया हुआ प्रेम प्रस्ताव ही क्यूँ ना हो या फिर किया हुआ कॉलेज बंक।
करती भी क्यूँ ना आखिर पूनम जी ने काव्या को माँ और पिता दोनों का प्यार जो दिया था। काव्या एक साल की थी जब उसके पिता का देहांत हो गया था। अकेले ही नौकरी करके बड़ी मेहनत और प्यार से अपनी लाडली को बड़ा किया।
काव्या की जॉब लगते ही आये दिन काव्या के लिये रिश्ते आने लगे थे। काव्या सभी लड़को को अपनी शर्त बता देती कि वो शादी के बाद अपनी माँ को अपने साथ ही रखना चाहती है।
धीरे धीरे पूनम जी की बेटी की बाते पूरे समाज मे फैल गई। कुछ लड़के तो ये बात सुनकर ही नाक-भों सिकोड़कर चले जाते थे।
एक दिन पूनम जी ने, काव्या को डांटा और वे बोलीं, “ये क्या जिद्द है तुम्हारी? मुझे नहीं जाना तुम्हारे साथ शादी के बाद। लड़कियाँ तो होती ही हैं पराया धन, तुमको मालूम भी है लोग क्या क्या बातें बना रहे हैं?”
काव्या बोली, “माँ, मुझे लोगो की कोई परवाह नहीं है। मैं इस शर्त के बिना शादी नहीं कर सकती माँ।”
पूनम जी बोलीं, “मैं तुमको एक साल का समय देती हूँ, कोई लड़का तुम्हारी शर्त मान कर शादी करे तो अच्छा वरना मैं तुम्हारी एक ना सुनूंगी।”
काव्या ने माँ कि बात तो मान ली, पर थोड़ी चिंतित थी। उसको अब जॉब करते हुए भी एक साल हो गया था। उसका एक मित्र था जो लम्बे समय से उससे शादी करने को कहता था पर काव्या उसको मना कर देती थी।
काव्या ने अपने उस मित्र को फ़ोन किया और कॉफ़ी पर मिलने को बुलाया, बातों बातों मे शादी की फिर से बात उठी।
काव्या ने रोहन को अपनी शर्त और माँ की जिद्द दोनों के बारे में बताया।
रोहन हँसने लगा और बोला, “मुझे तुम और तुम्हारी माँ दोनों पसंद हैं।”
काव्या झींकते हुए बोली, “अरे यार बस भी करो! मज़ाक की भी हद्द होती है।”
रोहन बोला, “अरे बाबा, मुझे तुम्हारी शर्त मंजूर है। मेरी माँ भी अकेली रहती है, उसको भी एक सहेली मिल जाएगी। बताओ कब आऊं मैं तुम्हारी माँ से तुम्हारा हाथ मांगने?”
इस प्रकार काव्या और रोहन का विवाह हुआ और वो चारों एक साथ ख़ुशी ख़ुशी रहने लगे, एक परिवार की तरह।
सखियों, ये मेरी एक स्वरचित कहानी है, पर लगता है इस प्रकार के रिश्तो को समाज में बढ़ने की ज़रुरत है, ताकि ना केवल पति-पत्नी ही नहीं बल्कि दोनों परिवार एक दूसरे का सहारा बनें।
मूल चित्र : Still from web series Mom & Me/Awesome Machi, YouTube
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