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शादी के बाद पर्व त्यौहार, बच्ची का होना, इसका पालन पोषण कुछ भी मैं इंजोय नहीं कर पाई, अपनी नौकरी के दवाब में, इसलिए मैंने नौकरी छोड़ दी...
शादी के बाद पर्व त्यौहार, बच्ची का होना, इसका पालन पोषण कुछ भी मैं इंजोय नहीं कर पाई, अपनी नौकरी के दवाब में, इसलिए मैंने नौकरी छोड़ दी…
बड़े बड़े उसूलों और आदर्शों पर चलने वाली राधिका ने उच्च शिक्षित होते हुए भी घर परिवार को प्राथमिकता दी। उसे हमेशा ऐसा लगता कि कामकाजी होना भले ही घर को आर्थिक संपन्नता देता हो, पर घर को घर नहीं बनने देता। इसलिए राधिका ने मन ही मन निश्चय कर रखा था कि आवश्यकता ना हुई तो वो नौकरी नहीं करेगी। अपना समय अपने घर को, घर के लोगों को देगी।
पर शादी के शुरुआती सालों में अपने निर्णय पर गर्वान्वित राधिका, प्रौढ़ावस्था आते आते कहीं ना कहीं पछतावों की आग में जलने लगी।
पति की पोस्ट के साथ व्यस्तता बढ़ती गई और बच्चे बढ़ती उम्र के साथ साथ आत्मनिर्भर होते गए और राधिका! बेचारी दिन-ब-दिन अकेली और कटी कटी सी रहने लगी। पहले काम से फुर्सत ना थी, अब आराम से ऊबकर काम ढूंढना पड़ता।
अपनी हमउम्रों और साथ पढ़ने वाली सहेलियों को आफिस संभालते देखती और मन ही मन कुढ़ती। उनकी स्मार्टनेस देखती, फिर अपने बेडौल होते शरीर को निहारती। धीरे-धीरे उसे लगने लगा कि अपने करियर को प्राथमिकता ना देकर बहुत बड़ी गलती हो गई उससे शायद। अरे कामकाजी औरतों के घर नहीं चलते क्या? उनके बच्चे पलते-बनते नहीं क्या? सब हो जाता है, समय के साथ साथ।
धीरे-धीरे राधिका हमेशा परेशान और सोच में डूबी रहने के चलते अवसादग्रस्त रहने लगी। बीमार ही दिखती। पति बच्चे भी उसकी इस दशा को देखकर चिंतित थे। वो भी अपनी ओर से प्रयास करते पर राधिका पर सब विफल था। वो तो खुद इन सबसे बाहर आना नहीं चाहती थी।
इसी दरम्यान सामने नए पड़ोसी आए। नया जोड़ा था। एक छोटी सी बच्ची थी उनकी। देश के सबसे प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग संस्थान से साथ पढ़े दोनों पति-पत्नी एक ही फर्म में काम भी करते थे। घर शिफ्टिंग के दौरान प्राची का कई बार आना जाना हुआ।
जब उनका घर शिफ्ट हो गया, तो एक दिन दोपहर को प्राची बच्ची को लेकर राधिका से मिलने आई। उसने बताया कि कल से वो आफिस ज्वाइन कर लेगी।
बातों ही बातों राधिका के इस प्रश्न ने कि बच्ची कहां छोड़ेगी, मानो प्राची की दुखती रग पर हाथ रख दिया। वो तो मानो फट पड़ी…
“क्या बताऊं आंटी! मैं पढ़ने में बहुत अच्छी थी और बहुत महत्वाकांक्षी भी, जिस वजह से जीवन में जो चाहा सो मिला, मनपसंद नौकरी, मनपसंद जीवनसाथी, पर सारे सपनों के साथ मेरा एक ये भी सपना था कि शादी के बाद मैं नौकरी नहीं करना चाहती थी।
मेरा शुरू से मानना था कि अच्छी पढ़ाई हम उच्च आत्मविश्वास और अपने मनोबल के लिए करते हैं और हर चीज का एक समय होता है। हर महीने एक मोटी रकम घर आना ही शिक्षा की सार्थकता है, ऐसा किसने कहा है? पर मेरे नौकरी छोड़ने के फैसले पर ससुराल वाले और मायके वाले दोनों ने मोर्चा खोल दिया और तो और साहिल ने भी मेरा साथ नही दिया।
शादी के बाद पर्व त्यौहार, बच्ची का होना, इसका पालन पोषण कुछ भी मैं इंजोय नहीं कर पाई, अपनी नौकरी के दवाब में…”
“पर प्राची, नौकरी छोड़ दोगी, फिर करोगी क्या? और एक समय आएगा जब तुम्हें एहसास होगा कि तुमने बहुत बड़ी गलती कर दी। ना आर्थिक स्वतंत्रता होगी, ना पहचान और तो और जिनके लिए छोड़ोगी, उनकी भी नजर में इसका कोई महत्व नहीं होगा।”
“ये आपने बिल्कुल मेरी मम्मी की तरह बात की आंटी और ये कौन कहता है कि घर पर रहकर आर्थिक स्वतंत्रता और पहचान हासिल नहीं की जा सकती? आज तो टेक्नोलॉजी इतनी विकसित हो चुकी है कि हम घर पर रहकर भी दुनिया से जुड़े रह सकते हैं। और मैं त्याग करने के उद्देश्य से नौकरी बिल्कुल नहीं छोड़ना चाहती आंटी। मैं तो खुद जीवन जीना चाहती हूं। अपनी शादीशुदा जिंदगी,अपने मातृत्व, अपने स्त्रीत्व, इन सबके मज़े लेना चाहती हूं।
और हां पहचान बनाना किसी उम्र का मोहताज नहीं होता। आप किसी भी उम्र में अपने शौक और रूझान के हिसाब से अपनी पहचान बना सकते हैं। पर पहले ढंग से जी तो लें। अपनी जिम्मेदारियों को बखूबी निभा तो लें। सेहत अच्छी हो, खान-पान ढंग का हो, घर घर जैसा लगे, चेहरे और मन में खुशी हो, घर में रहने वालों के चेहरे पर संतुष्टि हो यही तो जीवन के असली मायने हैं आंटी।
मैं चूहे बिल्ली वाली भागदौड़ के बीच अपने अस्तित्व को गंवाना नहीं चाहती, एक ही तो जीवन मिला है, पर मेरी ना कोई सुनता है और ना समझता है।”
प्राची तो बस अपना दिल खोलकर गई पर राधिका की तो आंखें भी खुल गईं। छोटी सी लड़की,कितनी बड़ी बड़ी और गुढ़ बातें! कितनी अच्छी तरह और सरल शब्दों में कह गई।
सही बात है हर किसी के अंदर किसी ना किसी तरह का शौक और टैलेंट होता ही होता है, जिसको कभी भी निखारा जा सकता है। पहले अपना जीवन तो भरपूर जी लें, अपने आप और अपने परिवार को लेकर कोई अधूरापन तो ना रह जाए मन में।
अपने भी बारे में सोचती तो उसे एहसास हुआ, ये गिले शिकवे तो साल दो साल के हैं, वरना वो भी तो बहुत खुश थी अपनी जिंदगी से। और वैसे भी उसके पति और बच्चे इतने सपोर्टिव है कि उसकी हर इच्छा का सम्मान करते हैं। अभी उसको लेकर सबके चेहरे पर जो चिंता है वो साफ पढ़ी जा सकती है और आज वो जो सोचकर अपने आप को सजा दे रही है वो तो पूर्ण रूपेण उसका फैसला था। ना कि किसी और का थोपा हुआ। अब तक वो जो चाहती थी, उसने वही किया। अब वो अपने आप को भी संभालेंगी, अपने घर को भी और अपनी जिंदगी को भी।
शाम को सब वापस आए तो पुरानी राधिका को वापस पाया। थके होने पर भी सबके चेहरे पर खुशी पढ़ पा रही थी राधिका। सोचकर मन भर आया उसका कि आखिर उसका त्याग व्यर्थ नहीं गया।
रात को खाने की मेज पर राधिका ने क्रेच खोलने का प्रस्ताव रखा।
“सोसायटी में क्रेच नहीं है, जिसके लिए प्राची भी आज परेशान थी। कई महिलाएं ज़रूरत होने पर भी अपनी नौकरी सिर्फ इसलिए नहीं कर पातीं क्यूंकि उन्हें अपने बच्चों के लिए कोई अच्छा क्रेच नहीं मिलता। उन औरतों के लिए भी तो कोई होना चाहिए! कई कामकाजी जोड़ों को दूर दराज के क्रेच में छोटे बच्चों को डालना पड़ता है। उनकी भी मदद हो जाएगी और मेरा भी समय मजे से कट जाएगा।”
“अरे वाह मम्मी ये तो ग्रेट आयडिया है,आपको पहले क्यों नहीं आया?” बच्चे उछल पड़े।
“हां, राधिका ये तो बहुत अच्छी बात है! मैंने देखा है तुम्हें बच्चों से कितना प्यार है। ये तो एक पंथ दो काज वाली बात है।” पतिदेव का भी समर्थन था।
अगली सुबह राधिका के जीवन में एक नई शुरुआत लेकर आई। जल्द ही सोसायटी में क्रेच खुल गया, नाम रखा था राधिका ने “आपके सपने अब मेरे अपने!”
राधिका के जीवन को अब एक नई दिशा मिल चुकी थी।
मूल चित्र : Still from Mom and Me Web Series/Ep 02 – Kanavu, YouTube
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