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रात में ही जेठानी जब कमरे में छोड़ने आई थी, तभी कह गई थी कि कल सुबह रसोई की रस्म है। सुबह जल्दी उठकर तैयार हो जाना।
सुबह नींद खुलते ही रेखा की नजर जैसे ही सामने लगी घड़ी पर पड़ी समय देखकर वह हड़बड़ा गई थी। उसे सुबह जल्दी जगकर तैयार होकर नीचे जाना था।
यह सोचते हुए वह तैयार होने के लिए जल्दी से बाथरूम में घुस गई थी। रेखा कल ही विदा होकर ससुराल आई थी। आज ससुराल में उसका दूसरा दिन था। रात में ही जेठानी जब कमरे में छोड़ने आई थी। तभी कह गई थी कि कल सुबह रसोई की रस्म है। सुबह जल्दी उठकर तैयार हो जाना।
रेखा नहा कर जैसे ही तैयार हुई, वैसे ही उसकी चचेरी ननद उसे बुलाने आ गई। रेखा ननद के साथ कमरे से बाहर आई तो सामने की चौकी पर बैठी सास का जाकर पैर छुए।
सास ने आशीर्वाद देते हुए कहा, “जाओ बेटा, आज तुम्हारी रसोई की रस्म है। अपनी जेठानी से पूछ कर कुछ मीठा बना लो।”
तब रेखा रसोई में आकर अपनी जेठानी सीमा का भी पैर छुए। जेठानी ने उसे आशीर्वाद दिया और कहा, “मैंने सारा इंतजाम कर दिया है, तुम खीर बना लो, मैं सबके लिए नाश्ता बना लेती हूं।”
रेखा की जेठानी अपना भी काम कर रही थी, साथ में रेखा की भी मदद कर रही थी। क्योंकि नई जगह होने के कारण रेखा थोड़ा घबरा रही थी, उन्होंने रेखा से कहा, “परेशान ना हो। मैं समझती हूं, नई जगह है इसलिए थोड़ी दिक्कत हो रही है, जब रहने लगोगी धीरे धीरे आदत पड़ जाएगी।”
रेखा को अपनी जेठानी का स्वभाव और व्यवहार बहुत अच्छा लगा। वैसे रेखा के ससुराल में सभी लोग बहुत सीधे-साधे और सज्जन थे। परिवार में ससुर नहीं थे। सास, ससुर के ना रहने के बाद से ज्यादातर बीमारी ही रहती थी। उनके तीन बेटे थे। बड़े बेटे बाहर नौकरी करते थे, उनकी पत्नी (जेठानी) अपने 3 साल के बेटे के साथ यही रहती थी। उसके बाद रेखा के पति थे, जो यहीं नौकरी करते थे। और सबसे छोटा बेटा अभी इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहा था।
शादी के कुछ दिन बाद ही सारे रिश्तेदार और रेखा के जेठ जी भी वापस चले गए।
अब रेखा को भी ससुराल में रहते हुए कई दिन हो गए थे और उसे यह समझ में आ गया था कि पूरा घर जेठानी ने ही संभाल रखा है। सास अपनी बीमारी और पैरों में गठिया के दर्द से ज्यादातर लेटी या बैठी ही रहती हैं या फिर पूजा पाठ में मन लगाए रहती थीं।
घर के ज्यादातर फैसले जेठानी ही लेती थी। बिना उनकी सलाह के घर में कोई फैसला नहीं होता था। और जेठानी भी घर का सारा काम बहुत खुशी खुशी करती। बिना कहे सब की हर जरूरत का ख्याल रखती थी वो।
रेखा ने जब यह बात अपनी मम्मी को फोन पर बताई, तब उसकी मम्मी ने कहा, “मतलब तेरे ससुराल में तेरी सास का नहीं जेठानी का राज है। बेटा, तुम भी अपनी सास की बहुत सेवा किया करो और घरवालों को भी आजकल की नई नई खाने की चीजें बना कर खिलाया करो और जेठानी को घर का बाकी काम करने दिया करो। तभी तुम उस घर में अपनी जगह बना पाओगी, नहीं तो तू पूरी जिंदगी अपनी जेठानी की नौकरानी बन कर रह जाएगी। वह तुम्हारे भी काम का श्रेय खुद ले जाएगी और महान भी बनी रहेगी।”
शुरू शुरू में रेखा ने अपनी मम्मी की बात नहीं मानी, उसे लगता था मम्मी की तो आदत है। सब पर शक करने की और सब के कामों में कमी निकालने की। पर जब उसकी मम्मी रोज फोन करके उसे कुछ ना कुछ सलाह देती रहती थी और समझाती, तब धीरे-धीरे उसके ऊपर अपनी मम्मी की बात का असर होने लगा। कहीं ना कहीं उसकी मम्मी उसे अब सही लगने लगी। उसे भी अपनी जेठानी स्वार्थी लगने लगी।
इसलिए अब जब किसी काम के लिए उसे जेठानी से पूछना पड़ता, तब उसे बुरा लगने लगा। उसे लगता था कि वह भी तो घर की बहू है। सास से पूछना समझ में आता भी है, जेठानी से क्यों पूछूं?
अब उसे जेठानी से चिढ़ और जलन होने लगी थी। उसे सच में लगने लगा था कि जेठानी उसके काम का भी श्रेय खुद ले जाती हैं। बल्कि जेठानी रेखा को घर के काम के लिए कभी टोका टाकी नहीं करती थी। जितना रेखा से हो पाता था, वह करती थीं। बाकी वह बिना कुछ कहे खुद कर लेती। अब रेखा अपनी मम्मी के कहे अनुसार, किचन में कुछ ना कुछ नया बनाने की कोशिश करने लगी थी और सास का भी ज्यादातर काम खुद करती।
एक दिन अचानक जेठानी के पति के ऑफिस से फोन आया कि उनके पति ऑफिस में बेहोश हो गए और उन्हें हॉस्पिटल में एडमिट कराया गया है। उनकी तबीयत काफी खराब है, घर के लोग जल्दी से आ जायें। यह सुनकर घर में सब दुखी हो गए। ऐसे में फटाफट रेखा के पति अपनी भाभी और बेटे को लेकर अपने भाई के पास चले गए।
जेठानी के जाने के बाद रेखा को ही पूरा घर संभालना पड़ा। साथ में दुखी सास और देवर का भी ज्यादा ध्यान रखना पड़ रहा था। अब उसे अपने लिए बिल्कुल भी समय नहीं मिलता। पर उसे लगा कि कुछ दिन की बात है, फिर जेठानी आ जाएंगी।
पर एक हफ्ते बाद उसके पति अकेले वापस आए थे और बाद में सास ने बेटे बहू को फोन करके कह दिया, “तुम्हारी तबीयत खराब रहती है, इसलिए बहू अब वहीं रहेगी। यहां रेखा सब संभाल लेगी।”
जेठानी ने कहा भी, “अभी उसकी नई नई शादी है, कुछ दिन सुकून से इंजॉय करने दें। इतनी जल्दी उसके ऊपर इतनी जिम्मेदारी न डालें।”
सास ने कहा, “मैं भी थोड़ी बहुत मदद कर दिया करूंगी। पर अब तुम मेरे बेटे को अकेले छोड़कर नहीं आना।”
जब रेखा को यह बात पता चली, तब उसे सच में बड़ा दुख हुआ। अब उसे अपनी जेठानी की बहुत याद आती कि कैसे वह उसका मायूस चेहरा देख कर कह देती थी, “तुम जाओ आराम कर लो, बाकी काम मैं कर लूंगी।”
अब रेखा काम करते हुए सोचती रहती थी कि, जेठानी जी सारा दिन अकेले इतना काम कैसे कर लेती थी? इतना काम करने के बाद भी वह मुस्कुराती रहती थी। थोड़ा सा श्रेय पाने के लिए और अपने आप को महान साबित करने के लिए कोई इतना क्यों करेगा? यह कौन सा राज करना हुआ, जिसमें सारा काम खुद ही करना पड़े? इसमें उनका कौन सा स्वार्थ था?
मैं ही गलत थी, जो अपना दिमाग नहीं लगाया। मम्मी के कहे में आकर जेठानी जी को गलत समझ लिया। आज दुनिया भले स्वार्थी हो गई है, पर अभी भी जेठानी जी जैसे कुछ लोग हैं जो स्वार्थ से परे हैं। उन्हें आज भी अपनों की और रिश्तों की परवाह है।
मूल चित्र : Still from Short Film Housewife/Indie MM, YouTube
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