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जग तारूं, उद्धार करूँ,दया भाव से, सबको निवारूँ,न अपना कोई न बेगाना,बिन स्वार्थ सबका कल्याण करूँ,कल्याणी सी भव्यता हो मुझमें।
जग तारूं, उद्धार करूँ, दया भाव से, सबको निवारूँ, न अपना कोई न बेगाना, बिन स्वार्थ सबका कल्याण करूँ, कल्याणी सी भव्यता हो मुझमें।
गंगा सी पवित्रता हो मुझमें, शिवप्रिया सी स्थिरता हो मुझमें। पवित्र पापनाशिनी सी शक्ति, धारा सी अविचल बहाव हो मुझमें। भगीरथी सी सहनशक्ति, सुरसरि सी सहनशीलता हो मुझमें। क्षमाशीलता, सार्वभौमिकता, दया, अद्भुत निर्मल स्वच्छता हो मुझमें। धर्मपरायणी, शिव के जटा में विराजमान, देवतारिणी, दनावतरिणी, दयालुता हो मुझमें। हर घर तारे, हर घर धारे, ऐसी विलक्षण उदारता हो मुझमें। मुझमें हर कोई समा जाये, मेरी बहाव को कोई रोक न पाये, हर क्षण धैर्य धारण करूँ, ऐसी असंख्य झमता हो मुझमें। जग तारूं, उद्धार करूँ, दया भाव से, सबको निवारूँ, न अपना कोई न बेगाना, बिन स्वार्थ सबका कल्याण करूँ, कल्याणी सी भव्यता हो मुझमें। सावन में हाहाकार मचाती, गर्मी में मधुर, कलकल करती, हमेशा सबकी प्यास बुझाती, ऐसी ही तत्परता हो मुझमें। देवनदी की जलधारा सी शीतलता, मनमोहक तट, अद्भुत नजारा, शिव की दुलारी, जाह्नवी सी त्यागशीलता हो मुझमें। मैं नायिका बनूं, जगतारिणी, ऐसी ही मेरी जय-जयकार हो, पूजनीय, स्मरणीय, और उपकारिणी, सबको तारने की ललायिता हो मुझमें। गंगा के लहर के उफान से भयानकता, हर दुःख सहुँ, सुख में न खो जाऊँ, असमर्थ न होऊँ कभी, न निराश हो कोई मुझसे, हर समय की पाबंदी की मानकता हो मुझमें। सच मैं यही चाहती, पतितपावनी, गंगा सी अविरल, भाव, और ऐसी ही पवित्रता हो मुझमें।।
मूल चित्र: Madam Geeta Rani,YouTube
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