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हिन्दी भाषा की वर्तमान स्थिति और भविष्य के लिए भाषा में परिवर्तन कीजिये अन्यथा इतने विशाल साहित्य भंडार को पढ़ने वाला कोई रहेगा ही नहीं।
हिंदी दिवस नजदीक आते ही हिंदी कार्यक्रमों की बाढ़ आने लगती है। शुभकामना संदेशों का आदान-प्रदान आरम्भ हो जाता है और 14 सितंबर के बाद सभी शांत हो कर बैठ जाते हैं, जैसे कि हिंदी के प्रति अपने कर्तव्य की पूर्ति हो गई।
हिन्दी भाषा की वर्तमान स्थिति और भविष्य को ले कर मैं चिंतित हूँ। मेरी नज़रों में सभी भाषाओं के लिए समान सम्मान है पर, आज मेरी लेखनी भी हिंदी के लिए चली है।
मैंने भी कुछ समय से एक विषय पर काफ़ी विचार किया, वह था हिंदी की वास्तविक व वर्तमान स्थिति। जो मैंने अनुभव किया शायद आप में से अधिकांश लोग उससे सहमत होंगे।
कुछ ज्वलंत प्रश्न हम सब के समक्ष विचाराधीन हैं। हमारे बीच अनेक व्यक्ति होंगे, जिन्होंने हिंदी माध्यम से अपनी शिक्षा प्राप्त की होगी। विज्ञान के साथ-साथ अन्य विषय भी उन्होंने हिंदी में पढ़ा होगा परन्तु देखते ही देखते हम सब ने परिवर्तन देखा और महसूस किया है। यदि वर्तमान में किसी से विज्ञान जैसे विषय को हिंदी माध्यम से पढ़ने या पढ़ाने की बात करें तो उनको आश्चर्य होगा।
आजकल हिंदी लिखने वालों की कमी नहीं है परंतु क्या उस सामग्री को पढ़ने के लिए हमारी आने वाली पीढ़ी तैयार है?
क्या उनको हिंदी साहित्य में रुचि है?
क्या वे उसे स्वेच्छा से पढ़ना चाहते हैं?
हिंदी पत्र-पत्रिकाएँ तो हैं, परंतु पाठक कितने हैं?
अपनी कविता प्रकाशित करवा लेने से या एक-दो पुस्तक लिख लेने से हमारी पीढ़ी को कुछ लाभ होगा?
हिंदी मंच बहुत हैं, लेकिन इन मंचों से युवा पीढ़ी कितनी जुड़ी हुई है?
उत्तम रचनाएँ हैं, परंतु क्या अंग्रेज़ी जैसी प्रसिद्धता उन रचनाओं को मिल पाती है?
शायद नहीं!
तो क्या कर रहे हैं हम हिंदी भाषा के वर्तमान और भविष्य के लिए?
क्यों हिंदी भाषा की पहुँच लोगों में कम हो रही है? कहते हैं वह प्रत्येक वस्तु या रीति समाप्त हो जाती है जिसे भावी पीढ़ी नहीं अपनाती और यही मुझे हिंदी का भविष्य दिखाई दे रहा है।
इनके कारणों को समझेंगे तो सबसे बड़ा कारण अंग्रेजी भाषा के प्रति लगाव है। इसके उपरांत भाषा को क्लिष्ट करना भी लगता है।
कहीं संस्कृत के समान हिंदी भी कर्मकांडों की भाषा बन कर न रह जाए यह भय मुझे लगता है!
क्या हम सरल, सहज भाषा में अपनी यह भाषा अपनी पीढ़ी को नहीं बता सकते? आवश्यक तो नहीं हमारी भावी पीढ़ी साहित्यकारों की भाषा में ही लिखे या पढ़े?
आप उनके अनुसार अपनी भाषा में परिवर्तन कीजिये अन्यथा इतने विशाल साहित्य भंडार को पढ़ने वाला कोई रहेगा ही नहीं।
आप विद्यार्थियों से बात करके देखिए, अधिकांश बच्चे 10वीं की परीक्षा के बाद हिंदी को देखना नहीं चाहते। ऐसा नहीं है कि वे कहानियाँ, उपन्यास नहीं पढ़ते पर हिंदी भाषा में नहीं पढ़ना चाहते।
कारण का पता लगाना कोई नहीं चाहता!
हिन्दी की विकास यात्रा हिंदी दिवस मनाने तक सीमित नहीं रह सकती, हमें उसे रुचिकर बनाने के साथ-साथ सरल और शुद्ध रखना पड़ेगा। यह भ्रम भी तोड़ना पड़ेगा कि शुद्ध साफ़ सुथरी हिन्दी कठिन ही होती है। तभी हिंदी को भविष्य में उचित सम्मान मिलेगा।
साहित्यकार, कवि और लेखक लिखते हैं परंतु पाठक नहीं हैं और करोड़ों की भाषा के बारे में यह कटु सत्य है कि हिंदी की पुस्तकों के पाठक अब नाममात्र हैं। इस तथ्य को नकारना यानि हिंदी का विलुप्त हो जाना एक ही बात है। तो प्रयास करें कि अपने घर, मोहल्ले और नगर से ही सबसे हिंदी बोलने का और उसके बाद उसे पढ़ने, पढ़ाने का अभियान आरम्भ हो।
बच्चे प्रारंभ से ही अंग्रेजी माध्यम के विद्यालयों में पढ़ रहे हैं चलिए वह भी स्वीकार है लेकिन निज भाषा में संवाद तो बंद ना हो। भाषा उनके लिए अपरिचित न बन जाए इसके लिए हमारी पीढ़ी ने भी अगर विचार नहीं किया तो शायद आगे विचार करने वाले बचेंगे भी नहीं। यह भय निराधार नहीं है।
बेहतर होगा इस पर आज से ही काम हो और निरंतर हो। हिंदी भाषा की चिंता छोड़, सुनहरे वर्तमान और भविष्य के लिए नयी पीढ़ी को इससे जोड़ना होगा।
हमारी भाषा जब इतने संकटों से उबर कर पूरे सम्मान के साथ विश्व की भाषाओं के साथ खड़ी है तो उसे आगे यही सम्मान दिलाना हमारा फ़र्ज़ है और आशा है हमारी हिंदी इस पथ पर निरंतर अग्रसर रहेगी।
मूल चित्र: Tribhanga Official Trailer, YouTube(for representational purpose only)
I am Shalini Verma ,first of all My identity is that I am a strong woman ,by profession I am a teacher and by hobbies I am a fashion designer,blogger ,poetess and Writer . मैं सोचती बहुत हूँ , विचारों का एक बवंडर सा मेरे दिमाग में हर समय चलता है और जैसे बादल पूरे भर जाते हैं तो फिर बरस जाते हैं मेरे साथ भी बिलकुल वैसा ही होता है ।अपने विचारों को ,उस अंतर्द्वंद्व को अपनी लेखनी से काग़ज़ पर उकेरने लगती हूँ । समाज के हर दबे तबके के बारे में लिखना चाहती हूँ ,फिर वह चाहे सदियों से दबे कुचले कोई भी वर्ग हों मेरी लेखनी के माध्यम से विचारधारा में परिवर्तन लाना चाहती हूँ l दिखाई देते या अनदेखे भेदभाव हों ,महिलाओं के साथ होते अन्याय न कहीं मेरे मन में एक क्षुब्ध भाव भर देते हैं | read more...
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