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एक खत जिसने रचा इतिहास और प्रिया झिंगन बनीं कैडेट 001

एक ख़त जिसने महिलाओं का भारतीय सेना में प्रवेश कराया वो था प्रिया झिंगन का, जो कैडेट 001 से एनरोल हुईं और उन्होंने अपने सपने को पूरा किया!  

एक ख़त जिसने महिलाओं का भारतीय सेना में प्रवेश कराया वो था प्रिया झिंगन का, जो कैडेट 001 से एनरोल हुईं और उन्होंने अपने सपने को पूरा किया!  

भारतीय सेना में इनरोलमेंट नंबर 001 यानी कैडेट 001 एक ऐसी सैन्य महिला अधिकारी को मिला है जिसके एक पत्र ने महिलाओं को सेना में उनके अधिकार दिलाए और महिलाओं के लिए सेना में प्रवेश के द्वार खोल दिए।

इस बहादुर महिला का नाम प्रिया झिंगन है जो इस ऐतिहासिक निर्णय की कर्णधार रहीं। ये बात नब्बे के उस दशक की है जब महिलाओं के सेना में जाने के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था।

क्या लिखा था प्रिय झिंगन के उस ख़त में?

प्रिया झिंगन जो उस समय मात्र 21 वर्ष की थीं और शिमला के सेंट बेडे कॉलेज में पढ़ती थीं। उन्होंने समाचार पत्र में सेना के एक विज्ञापन को देखा जिसमें भारतीय सेना से जुड़ने के लिए पुरुषों के लिए आमंत्रण था।

बस इस विज्ञापन ने प्रिया झिंगन के आत्मसम्मान को झकझोर दिया और उन्हें ये बात बड़ी नागवार गुज़री। उन्होंने इसे एक चैलेंज मानते हुए उस समय के आर्मी चीफ़ जनरल सुनीत फ्रांसिस रोड्रिग्स को एक ख़त लिख डाला और उनसे प्रश्न किया कि महिलाओं की सेना में नियुक्ति क्यों नहीं? आपने केवल पुरुषों को क्यों बुलाया, स्त्रियों को क्यों नहीं? उन्होंने अपने पत्र में महिलाओं की सेना में नियुक्ति न होने के कारण पूछे।

प्रिया के उस पत्र के कारण ही आज भारतीय महिला पूर्ण आत्मविश्वास के साथ सेना के पदों पर कार्यरत हैं।

ख़त का कुछ इस प्रकार मिला जवाब

प्रिया ने ख़त तो लिख दिया था पर उन्हें अपने ख़त का जवाब मिलने की कोई आशा नहीं थी।

वह उस समय की बात है जब भारतीय सेना में महिलाओं की भर्ती नहीं की जाती थी और उन्हें सिर्फ डॉक्टर के तौर पर नियुक्त किया जाता था। उनके सेना में किसी और पद पर नियुक्त होने का कोई प्राविधान नहीं था।

प्रिया झिंगन के ख़त लिखने के बाद कुछ अलग ही घटित हुआ। कुछ सप्ताह के बाद प्रिया को अपने ख़त का जवाब सेनाध्यक्ष के द्वारा कुछ इस प्रकार मिला, “मैं जानकर बहुत ख़ुश हूँ कि एक महिला भारतीय सेना से जुड़ना चाहती है और ये शीघ्र ही होगा। भारतीय सेना में कुछ ही समय में महिलाओं की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू की जाएगी।”

इन शब्दों ने प्रिया को जैसे सातवें आसमान पर पहुँचा दिया और उन्हें लगा सेना अधिकारी बनने का उनका स्वप्न अब अवश्य पूरा होगा। पर उसके बाद कोई भी सकारात्मक खबर नहीं आई और प्रिया झिंगन ने वकालत में प्रवेश ले लिया।

आखिरकार 1992 में भारतीय सेना ने अखबार में एक पूरे पेज का विज्ञापन छापा जिसमें महिलाओं को सेना से जुड़ने के लिए आमंत्रित किया गया था। अब प्रिया को लगने लगा कि सेना की हरी यूनिफार्म पहनने का समय नजदीक आ गया है।

उन्होंने थल सेना में शामिल होने के लिए अनुरोध किया पर इस अनुरोध को सेना के शीर्ष अधिकारियों द्वारा स्वीकार नहीं किया गया। कानून में स्नातक होने के नाते कोर ऑफ जज एडवोकेट जनरल में उनको मौका मिला।

वकालत कर चुकी प्रिया को  सेना में लॉ के लिए ऑफ़िसर्स ट्रेनिंग अकैडमी में आरक्षित सीट मिली और प्रिया झिंगन कैडेट 001 के साथ सेना में प्रवेश करने वाली पहली महिला बनीं।

प्रिया के साथ-साथ 24 अन्य महिलाओं को भी 21 सितंबर 1992  सेना में प्रवेश मिला था और ये सभी भारतीय सेना की पहली महिलाएँ थीं जिन्होंने बाकि महिलाओं के लिए रास्ता खोला।

प्रिय झिंगन ने कैडेट 001 बन कर साहस से मुकाबला किया हर मुश्किल का

प्रिया ने सेना में कई अड़चनों का सामना भी किया। उन्हें कई बार अनेक मुश्किलों और भेदभाव का सामना भी करना पड़ा। उस समय महिलाओं के लिए अलग से शौचालय की कोई व्यवस्था नहीं थी और एक महिला अफसर को जवान अपना अधिकारी मानने में हेठी समझते थे, लेकिन प्रिया ने हर समस्या का साहस से सामना किया और हर ज़िम्मेदारी को पूरी तरह निभाया।

प्रिया झिंगन महिलाओं को किसी से कम नहीं मानतीं और वे कहती हैं कि महिला सही अवसर मिलने पर कोई भी जिम्मेदारी उठाने में सक्षम हैं, बस उन्हें अवसर मिलने चाहिए।

मूल चित्र : MPJ Leadership Academy 

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SHALINI VERMA

I am Shalini Verma ,first of all My identity is that I am a strong woman ,by profession I am a teacher and by hobbies I am a fashion designer,blogger ,poetess and Writer . मैं सोचती बहुत हूँ , विचारों का एक बवंडर सा मेरे दिमाग में हर समय चलता है और जैसे बादल पूरे भर जाते हैं तो फिर बरस जाते हैं मेरे साथ भी बिलकुल वैसा ही होता है ।अपने विचारों को ,उस अंतर्द्वंद्व को अपनी लेखनी से काग़ज़ पर उकेरने लगती हूँ । समाज के हर दबे तबके के बारे में लिखना चाहती हूँ ,फिर वह चाहे सदियों से दबे कुचले कोई भी वर्ग हों मेरी लेखनी के माध्यम से विचारधारा में परिवर्तन लाना चाहती हूँ l दिखाई देते या अनदेखे भेदभाव हों ,महिलाओं के साथ होते अन्याय न कहीं मेरे मन में एक क्षुब्ध भाव भर देते हैं | read more...

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