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बेटा, मैं आज ही अपनी गलती सुधारती हूँ…

"माँ, आप देखो सिंक बर्तन से भरा है, घर का हाल देख लीजिये! ये नहीं कि थोड़ा टाइम निकाल ले। छोटी सी बच्ची है घर में। पता नहीं कैसी माँ है!"

“माँ, आप देखो सिंक बर्तन से भरा है, घर का हाल देख लीजिये! ये नहीं कि थोड़ा टाइम निकाल ले। छोटी सी बच्ची है घर में। पता नहीं कैसी माँ है!”

जैसे ही  मीटिंग ख़तम हुई मैंने चैन की साँस ली। क्या ज़िंदगी हो गयी है पिछले एक साल से!

घंटों लैपटॉप पर सर खपाने के वावजूद सबको यही लगता है वर्क फ़ॉर्म होम से महिलायों को सुविधा हो गयी है!

खाक सुविधा हुई है? बस घरवालों की अपेक्षा बढ़ गयी है…

मैंने  सोचा और कमरे से बाहर आकर अपनी पांच साल की बिटिया को देखा। आहना मजे से सो रही थी। चलो वर्क फ़ॉर्म में एक चीज़ तो अच्छी हुयी। थोड़ा सा टाइम आहना के साथ बिताने को मिल जाता है।

पहले एक कप चाय पीती हूँ, फिर आहना के उठने से पहले सारा काम निपटा लूँगी। सोचते हुए मैं जैसे ही किचन में घुसने को थी, रुक गयी क्यूंकि अंदर से मेरे सास और पति की आवाज़ आ रही थी।

क्या हो गया इन दोनों को? किचन में क्या कर रहे हैं? पति अभि किचन के काम से हमेशा दूर रहता था। मेरे बहुत समझाने के वावजूद कोई घर का काम नहीं करता था। एक ही बहाना रहता था कि मुझे घर का काम आता ही नहीं!

सास वैसे ही बीमार रहने के कारण कोई काम नहीं कर पाती थी।

आहना के बाद भी अभि का रवैया कभी नहीं बदला फिर आज किचन में कैसे?

मैं सोच में पड़ गयी! ये क्या बोल रहे हैं मेरे बारे में?

“माँ आप देखो सिंक बर्तन से भरा है, घर का हाल देख लीजिये और मैडम अपने मीटिंग में वयस्त है। ये नहीं कि थोड़ा टाइम निकाल ले अपने घर के लिए भी। घर को थोड़ा साफ़ रखे। छोटी सी बच्ची है घर में। पता नहीं कैसी माँ है!”

मैं अवाक् रह गयी। अभि को जरा भी शर्म नहीं?

पूरे दिन मैं घर और ऑफिस के काम में लगी रहती हूँ। अभि बिलकुल मदद नहीं करता और अब ऐसे बोल रहा है अपनी माँ के सामने? आज इनको जबाब देती हूँ।

मैंने गुस्से में सोचा और किचन में घुसने लगी, पर मैं रुक गयी अपनी सास की बात सुनकर।

“बेटा, तुमने कैसे सोच लिया कि आरज़ू का सिंक अगर भरा हुआ है और घर साफ़ नहीं है तो वो अच्छी माँ नहीं है? सुबह पांच बजे से रात के बारह बजे तक वो कभी घर और कभी ऑफिस के काम में लगी रहती है। मेरा भी इतना ध्यान रखती है। माँ, तो मैं तुम्हारी हूँ, पर तुम एक काम बताओ जो तुम मेरा करते हो?”

“मैं क्या करू माँ, मुझे आता ही नहीं  घर का काम। आपने कभी मुझसे और पापा से करवाया नहींं, तो इसमें मेरी गलती नहीं है…”

“यही गलती कर दी मैंने”, मेरी सास बोलीं।

“पर कोई बात नहीं अब सुधार लूंगी अपनी गलती। ये भरा हुआ सिंक देखकर बहुत परेशान हो रहे थे? तुम धो दो सारे बर्तन, खाली हो जाएगी ये सिंक!”

“मैं…मैं कैसे?” अभि घबरा कर बोला।

ये देखकर मुझे रहा नहीं गया। मैं किचन में घुस कर बोली, “नहीं माँ रहने दीजिये मैं कर लूंगी। आपने इतना सोचा मेरे लिए वही बहुत है।”

“बहुत नहीं है बहू! बहुत दिनों से तुम्हारी तकलीफ समझ रही थी, पर समझ नहीं आ रहा था कैसे मदद करूँ तेरी।”

“कोई मदद की ज़रूरत नहीं मुझे। आप का प्यार ही काफी है।”

“प्यार काफी नहीं है बहू। मदद भी ज़रुरी है।”

“कोई बात नहीं माँ, आप चलिए। मैं चाय बना के लाती हूँ, फिर दो मिनट में ये सारे बर्तन धुल जायेंगे। अभी आहना भी सोई है, मुझे थोड़ा ऑफिस का काम भी निपटाना है…”

“नहीं बहू, चाय आज हम दोनों भी अभि के हाथ की पियेंगे। तुम जाओ अपने ऑफिस का काम निबटा लो, फिर साथ मे चाय पीते हैं। हैं अभि! चाय थोड़ी अच्छी बनाना। हम सास बहु दोनों ही अच्छी माँ हैं, ये याद रखना।”

और फिर हम हैरान परेशान अभि को किचन में छोड़ कर निकाल गए, ये सोचते हुए कि हम अच्छी माँ हैं…

मूल चित्र : Still from Bahu’s/Teas at Girnar Ad, YouTube

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