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बचपन से लेकर पचपन तक सीटी की बदलती आवाज…

रसोई घर की सीटी बजते हुए सुनकर मन में यह भाव आया, हाय राम कब यह मेरी जान छोड़ेगी! सीटी की आवाज, बचपन से लेकर पचपन की उम्र तक...

रसोई घर की सीटी बजते हुए सुनकर मन में यह भाव आया, हाय राम कब यह मेरी जान छोड़ेगी! सीटी की आवाज, बचपन से लेकर पचपन की उम्र तक…

इस सीटी की आवाज मैं बचपन से आज पचपन की उम्र में भी सुन रही हूँ। 

जब मैं  छोटी  थी ,और जैसे ही घड़ी का कांटा चार पर आता था, तब मैं और मेरी दोस्ती प्रीति मस्ती में झूमते हुए सीटी बजाते हुए, खेलने को निकलते थे।

यह सीटी  की आवाज हमारा संकेत था जिसको सुनकर बाकी मेरे मित्र घरों से बाहर निकल आते थे, ताकि अब हम सब  मिलकर खेल के मैदान में इकट्ठा हो सकें।

मेरी और प्रीति की सीटी और स्कूल के रिक्शे वाले भैया की सीटी की आवाज़ एक जैसी थी। मेरी सीटी को तो माँ मना करती थी लेकिन रिक्शे वाले भैया को मना क्यों नहीं करती थी, यह बात मुझे उस समय समझ नहीं आई।

ट्रैफिक पुलिस वाले भैया की सीटी, उसी चौराहे पर मनचलों की सीटी, स्कूल में गेम टीचर की सीटी, स्काउट गाइड वाले मैडम की सीटी को सुनते सुनते हम कब बड़े हो गए यह पता ही नहीं चला।

जब मैं अपने ससुराल आ गई तो सीटी ने यहां पर भी मेरा पीछा नहीं छोड़ा।

जब मेरी पहली रसोई की सीटी बजी तो मन में डर और भय उठा कि अब क्या होगा? पहली बार  इस सीटी  ने मुझे झकझोर दिया। इसके बाद तो यह सीटी सुबह, दोपहर,और  शाम को बजने लगी।

सुबह सफाई करने वाले भैया की सीटी, फिर सब्जी बेचने वाले भैया की और फिर अखबार वाले भैया की सीटी! 

इसके बाद तो फिर वही क्रम शुरू हो गया कि बच्चों की सीटी और मेरे पूरे घर वालों की सीटी, जिस सीटी पर मैं पिछले तीस साल से नाच रही हूँ। अब समझ आया कि सीटी बुरी क्यों थी!

लेकिन इस सीटी के जाल में फंस कर मेरे सपने भी सीटी हो गऐ। इसी भंवर जाल में मैं इतना डूबी  कि इसके शोर के आगे कुछ और सुनाई ही नहीं दिया।

जिस दिन मेरी बेटी ने सीटी बजाई और मैंने उसे मना किया कि सीटी बजाना बुरी बात है, उस दिन मुझे माँ की बात समझ में आ गयी। 

मूल चित्र : Still from Short Film Pressure Cooker/hamaramovie, YouTube

 

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