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साक्षी के मन मे तीसरी बेटी को लेकर इतनी कड़वाहट है, ये किसी को समझ नहीं आ रहा था। कोई कहता कि ससुराल वाले या पति किसी ने कुछ कहा होगा।
अस्पताल के गलियारों में फुसफुसाहट तेज़ थी। जिधर देखो उधर कमरा नम्बर 202 की महिला(साक्षी) की ही बात हो रही थी क्योंकि उसने तीसरी बेटी को जन्म दिया था और उसने गुस्से में बच्चे को अपना दूध पिलाने से इनकार कर दिया था। वो दो दिन से लगातार सिर्फ रोये जा रही थी।
साक्षी के मन मे तीसरी बेटी को लेकर इतनी कड़वाहट और दुःख क्यों हो रहा था ये किसी को समझ नहीं आ रहा था। कोई कहता कि ससुराल वाले या पति किसी ने कुछ कहा होगा।
तभी बाहर लॉबी में बैठे साक्षी के पति अमन को नर्स ने बुलाकर कहा, “देखिये आप जाकर अपनी पत्नी को समझाइए की वो बच्चे को अपना दूध पिलाये, वरना बच्चा बीमार हो जाएगा।”
अमन ने ठीक है कहकर कमरे में प्रवेश किया। उधर कमरे में अस्पताल के बिस्तर पर बैठी साक्षी अभी भी रोये ही जा रही थी।
अमन ने साक्षी को गले लगाते हुए कहा, “साक्षी तुम इतना दुःखी क्यों हो? किसी ने कुछ कहा तुमसे? तुम्हारी जिद पर हमने तीसरे बच्चे का चांस लिया,अब हमारे नसीब में जो था वो हुआ। अब उसे खुशी खुशी तुम स्वीकार करो। घर मे सब खुश हैं, तो तुम इतना क्यों दुःखी हो रही हो?”
तभी उसने गुस्से में अपने पति अमन को खुद से दूर करते हुए उस से कहा, “अमन सबको बोल दो की इतना खुश होकर मुझे दिखाने की जरूरत नहीं। मुझे पता है कि ये सब सिर्फ समाज को दिखाने के लिए किया जा रहा है, ताकि सब दुनिया की नजरों में महान बन सकें।”
अमन ने कहा, “साक्षी तुम सब को गलत समझ रही हो। ऐसा कुछ नहीं है। आज के जमाने की होकर तुम ऐसी बातें कर रही हो? अब क्या फर्क रह गया है बेटा और बेटी में? तुम भी तो सिर्फ दो बहनें ही हो, तो क्या तुम्हारे मम्मी-पापा तुम्हारे पैदा होने पर दुःखी हुए थे?”
साक्षी ने आगे अमन के बोलने से पहले ही कहा, “मुझे पता था तुम्हारा जवाब यही होगा। आखिर में तुमने ताना मार ही दिया ना कि मेरे भाई नहीं है? मुझे कुछ नहीं सुनना। मुझे पता है तुम्हारे खानदान में बेटियां नहीं होतीं। मुझे दादीजी ने बताया था। जब अपनी तनु हुई थी तब उन्होंने कहा था कि तू पहली बहू है जिसने पहले कोख से बेटी जन्मी है, वरना तो खानदान में लड़कों की लाइन लगी है। सब समझती हूं मैं तुम्हारे घर वालों की। मुझे मेरी बेटी के जन्म पर कोई दिखावा नहीं करना।”
तभी नर्स ने कमरे में आकर कहा, “बहुत बहुत मुबारक हो आप दोनों को। लक्ष्मी का आगमन बड़े नसीब से होता है। हमें मिठाई तो खिला दीजिए बिटिया होने की खुशी में।”
अस्पताल के बिस्तर बैठी साक्षी इतना सुनते ही अपना रोना बंद करके तुरंत तुनकर गुस्से से नर्स को फटकारते हुए कहा, “शायद आपको पता नहीं या ना पता होने का नाटक कर रही हैं कि बेटी के नहीं बेटे के जन्म पर मिठाई खायी जाती है और मैंने बेटी को जन्म दिया है और वो भी तीसरी बेटी।”
साक्षी की बात सुनकर नर्स ने कहा, “कोई बात नहीं हम जा रहे हैं यहाँ से।”
साक्षी के मुँह से ऐसी बात सुनकर अमन गुस्सा हो गया। उसने अपने गुस्से पर काबू करते हुए नर्स से कहा, “अरे रुकिए! अपने बिल्कुल सही कहा लक्ष्मी आगमन की खुशी में मिठाई तो बनती है। ये लीजिए मिठाई का डिब्बा आप सब आपस मे मिल बांट कर खा लेना।”
नर्स के जाने के बाद अमन ने कहा, “साक्षी मुझे तुमसे इस तरह के व्यवहार की उम्मीद तो बिल्कुल भी नहीं थी। तुम पढ़ी-लिखी, आत्मनिर्भर होकर ऐसी सोच रखती हो तो वो महिलाएं क्यों ना दुःखी हों जिनके ना बेटियों के होने पर घर वाले खुश होते हैं और ना वो खुद कुछ कर सकती हैं क्योंकि वो आत्मनिर्भर नहीं होतीं। साक्षी बेटियों के प्रति सोच जब हम खुद की बदलने में कामयाब होंगे तभी देश और समाज की सोच बदल पायेगा।”
इतना कहकर अमन कमरे से बाहर चला गया
तीसरे दिन साक्षी की जेठानी रेवा अस्पताल में खाना लेकर आयी। खाने को टेबल पर रख कर उसने साक्षी को गले लगाकर बेटी होने की ढेरों बधाई देते हुए कहा, “बहुत-बहुत बधाई हो।”
“कैसी बधाई भाभी? बेटी होने की? आखिर आप ने दिखा ही दिया कि जेठानी कभी बड़ी बहन नहीं हो सकती वरना आज आप खुश ना होतीं। लेकिन आप तो आज खुश होंगी ही कि अब आपका मान हमेशा ऊंचा रहेगा ही। ऊपर से पैसे-प्रोपर्टी किसी भी चीज की चिंता नहीं क्योंकि अब सब कुछ आपके दोनों बेटों को ही जो मिलेगा।”
साक्षी की बात सुनते रेवा का मुस्कुराता चेहरा मुरझा गया क्योंकि उसको इस तरह के जवाब की उम्मीद नहीं थी। साक्षी की बातें सुनकर रेवा की आंखे सजल हो गयीं और अश्रुधारा फुट पड़ी।
उसने आंसुओ को पोछते हुए कहा, “साक्षी यूं पहेलियां ना बुझाओ। बताओ क्या बात है तुम इतना क्यों गुस्सा हो? क्या तुम्हारी बेटी पर मेरा कोई अधिकार नहीं क्या? अब तक जहाँ हम एक छत के नीचे एक परिवार की तरह रहते थे, उसमें ये बेटे-बेटी के भेद और अपने पराए के विद्रोह का अंकुर कब फूटा, मुझे तो पता भी नहीं चला।”
“ज्यादा बनिए मत भाभी किसी की बेटी को अपना कहना और अपनी बेटी होने में बहुत फर्क होता है। क्या आप मेरी बेटी को अपनी बेटी बनाकर पालन पोषण कर सकती हैं? उसे दुनिया की नजरों और तानों से बचा सकती हैं? नहीं ना? तो बेकार के प्रवचन मत दीजिए। मैंने बचपन से देखा और सुना है मेरी माँ को कितने ताने सुनने पड़ते थे। कितना कुछ सहा है उन्होंने ये मै जानती हूं। आप को तो इसका एहसास भी नहीं होगा।”
सन्न खड़ी रेवा आज देवरानी की बातें ही सुन रही थी। ऐसा नहीं था कि उसको जवाब पता नहीं था लेकिन उसे तो मन ही मन अफसोस हो रहा था कि जिस देवरानी को उसने अपनी छोटी बहन की तरह प्यार किया वो आज उसे गुस्से में कितना कुछ कह गयी।
तभी पीछे से कड़कती आवाज आयी, “साक्षी, तुम क्या बोले जा रही हो? किसको बोल रही हो और क्यों क्या ये तुम्हें पता नहीं?”
दोनों ने पलटकर देखा तो दरवाजे पर दादी सास और बुआ सास खड़ी थीं।
दादी जी ने कहा, “बहू क्या अपनी जेठानी से बात करने का ये तरीका होता है और क्या ये जगह है इन सब बातों को कहने सुनने की? तुम भूल गयी कि तुम अभी अस्पताल में हो और तुम्हारे सेहत लिए इतना गुस्सा होना, इतना चिल्लाना ठीक नहीं? पढ़ी-लिखी होकर मूर्खो जैसी बातें करना क्या तुम्हें शोभा देता है? और जरूरी तो नहीं जो तुम्हारी मां के साथ हुआ वो तुम्हारे साथ भी हो। सात साल ससुराल में हम सब के साथ रहने के बावजूद तुम इतना ही समझ पायी हमें? जब हम औरतें ही औरतों के जन्म की खुशियां नही मनाएंगे तो पुरुष क्या खास हमारे लिए खुशियां मनाएंगे?”
तभी बुआ सास ने साक्षी के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा, “साक्षी एक बार पालने की तरफ नजर तो डाल बेटा। देख कितनी मनमोहक मुस्कान है मेरी पोती के चांद से मुखड़े की ये मनमोहक मुस्कान देखकर भला किसको प्यार नहीं आएगा? ये तो हम सब के जिगर का टुकड़ा है। बड़ी बहु जरा बिटिया को मेरी गोदी में तो देना।”
गोदी में लेकर बुआ जी ने कहा, “साक्षी तुम्हें शायद पता नहीं, औरत के एक नहीं तीन जन्म होते हैं। पहला जब वो किसी की बेटी बनकर इस दुनिया में आती है, दूसरा जब वो किसी की पत्नी बनती है और तीसरा जब वो मां बनती है।
और मां बनना एक औरत के लिए सबसे बड़ा वरदान होता है फिर चाहे बच्चा बेटा हो या बेटी। मुझसे और मेरे जैसी उन तमाम औरतों के मन से जाकर पूछो जो माँ बनने के सुख से वंचित रह गयीं। क्या बीतती है उनके दिल पर! मैंने कौन से डॉक्टर से लेकर भगवान तक सबके आगे गुहार लगाई, पूजा पाठ व्रत सब किये हर वो उपाय जो मुझे मां बना दे। लेकिन, अफसोस कुछ भी काम नहीं आया। मैं माँ नहीं बन पायी।
वो तो तुम्हारी दादी सास थी जिन्होंने मेरी गृहस्थी टूटने से बचा ली। मेरे ससुराल वालों को समझा-बुझाकर। जो परिवार मुझ जैसी मुँहबोली ननद को इतना सम्मान और प्यार दे, वो अपनी बहुओं का और अपनी पोतियों का दिल भला कैसे दुखा सकता है? ये लो अपनी बिटिया और लगाओ अपने सीने से, फिर बोलो कि दे पाओगी किसी को!”
साक्षी ने अपनी बेटी को जैसे ही गोद मे लिया, बेटी के चेहरे पर हल्की सी मुस्कान देखकर वो भी रोते रोते हँसने लगी और उसे गले लगाकर उसके माथे को चूमते हुए कहने लगी, “मेरी गुड़िया रानी माफ कर दे अपनी माँ को। मत मारी गयी थी तेरी माँ की जो तेरे होने पर दुःखी हो रही थी…”
तभी उसने अपनी जेठानी से कहा, “भाभी मुझे माफ़ कर दीजिए, मैंने गुस्से में आपको भी बहुत कुछ कह दिया।”
रेवा ने साक्षी की गोद से बिटिया को अपनी गोदी में लेते हुए कहा,”माफ तो मैंने कब का कर दिया, क्योंकि “कहावत कही जाती है क्षमा बड़न को चाहिए छोटन को अपराध और तुम तो मेरी छोटी बहन हो तो। गलती करने का तुम्हारा पूरा हक है। लेकिन खबरदार जो आज के बाद मेरी बेटियों के बारे में कुछ कहा तो फिर ये बेटियों की बड़ी माँ तुम्हें माफ नहीं करेगी।”
और सबके चेहरे पर हँसी आ गयी। तभी बुआ सास ने कहा, “अरे जाकर देखो डिस्चार्ज के पेपर क्लियर हुए कि नहीं? वरना घर पर तुम्हारी सासुमां भी गुस्से में होंगी हमारा इंतजार कर कर के।”
तभी कमरे में अमित ने आकर कहा, “हो गए हैं। बुआ जी चलिए!”
प्रिय पाठकगण , कहानी के माध्यम से मै सिर्फ इतना कहना चाहती हूँ कि हमारे आज के आधुनिक समाज के पढ़े लिखे लोग जब बेटी होने पर दुःखी होते है या बेटा बेटी में भेद करते है तो दु:ख होता है ये दुःख तब और अधिक कष्ट में बदल जाता है जब बेटी होने पर उसकी माँ या घर की महिलाएं दुःखी होती है। महिलाओं के समाज उचित मान सम्मान के लिए हमें जन्म से ही बेटा बेटी के भेद को मिटाना होगा। तभी समाज मे समानता उत्पन्न होगी।
मूल चित्र : Still from Short Film Beti/The Short Cuts, YouTube
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