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वायरल कैडबरी डेयरी मिल्क ऐड में कुछ बात है, पर कुछ खास नहीं है!

कैडबरी नए डेयरी मिल्क ऐड के साथ महिलाओं की सफलता को सेलिब्रेट करने का मौका गवाँना नहीं चाहती है, लेकिन अभी भी इस ऐड में कुछ मिसिंग है...

कैडबरी नए डेयरी मिल्क ऐड के साथ महिलाओं की सफलता को सेलिब्रेट करने का मौका गवाँना नहीं चाहती है, लेकिन अभी भी इस ऐड में कुछ मिसिंग है…

भारतीय सामाजिक संस्कृति में “मीठा खाने” के मायने एक नहीं, कई हैं।

मीठा खाने के तरीके को नये तरीके से हमारे समाजिक जीवन में घोलने का काम कैडबरी के डेयरी मिल्क ने किया है “कुछ मीठा हो जाए” की पंचलाइन से।

मौजूदा दौर में “कुछ मीठा हो जाए” के इस पंचलाइन ने खुशी और उत्सव के महौल को थोड़ा बदल तो दिया है, इससे इंकार नहीं किया जा सकता है। मतलब आप भले मिठाई नहीं ले रहे हैं, तो डेयरी मिल्क से भरपाई तो कर ही सकते हैं। जैसा बजट उसी माफिक डेयरी मिल्क।

डेयरी मिल्क ऐड जो काफी वायरल हो रहा है और लोगों को पसंद आ रहा है। मार्केटिंग रणनीति में ये मानवीय संवेदना को पूरी तरह से इनकैश करता है। कहना होगा इस विज्ञापन से, छक्का मार गया कैडबरी, आम जन के दिलों में।

क्या खास है कैडबरीडेयरी मिल्क चॉकलेट के विज्ञापन में

विज्ञापनों के दुनिया में एक जमाना था जब प्रोडक्ट एडवरटाइजमेंट में पुरुषों को इन कंट्रोल (In control) और महिलाओं को सिर्फ प्लीज़िंग और ग्लैमरस (pleasing & glamorous) दिखाया जाता था। लड़कियों ने अपने संघर्ष और मेहनत के पसीने से इस स्थिति को बदल कर रख दिया।

कैडबरी डेयरी मिल्क चॉकलेट का यह विज्ञापन उसका ही आईना है क्योंकि ये विज्ञापन जेंडर बदल कर कुछ दशक पहले भी धूम मचा चुका था।

पहले विज्ञापन ने भी अपने समय में एक नयी शुरुआत ही की थी।  एक फ्रेशनेस थी इस ऐड में। इस विज्ञापन को देखिये –

https://youtu.be/evYtAc-uedk

अब नए विज्ञापन की बात करते हैं (Cadbury Dairy Milk Chocolate New Viral Ad)

विज्ञापन में विमेन्स किक्रेट का मैच चल रहा है गेद पर छह रनों की जरूरत है।

महिला बल्लेबाज गेंद को हवा में उछाल देती है बल्ले से, गेंद सीमा रेखा के बाहर हवा में गोते खा रही है, फिल्डर कैंच लेने के लिए गेंद के नीचे है और दर्शकों की सांसे रूकी है।

छक्का कामयाब होता है और महिला बल्लेबाज का चहेता जो डेयरी मिल्क खा रहा है और सास रोक कर खेल देख रहा है। छक्का लगने के बाद फिल्ड का बैरियर तोड़ कर मैदान में आ जाता है, पुलिस के रोकने के बाद भी वह मैदान में आ जाता है और झूमने-नाचने लगता है। महिला बल्लेबाज मुस्कुराने  लगती है। और आगे…. पूरा ऐड दिल को छू जाता है। आप भी मुस्कुराये बिना नहीं रह सकते।

इस पूरे विज्ञापन में महिला पूरी तरह इन कंट्रोल  और पुरुष पूरे इमोशंस के साथप्लीज़िंग (pleasing) दिखता है। यही कारण है कि लोगों को विज्ञापन पसंद आ रहा है। कोई शक नहीं है कि विज्ञापन बदलते समय के हिसाब में पूरी तरह फिट होता है। आप खुद ही देख लें –

लेकिन मुझे विज्ञापन से थोड़ी आपत्ति भी है

इसमें कोई शक नहीं है कि कैडबरी का विज्ञापन “मन खुश कर दिता” के फ्रेम में पूरी तरह सेट होता है। परंतु, मुझे फिर भी विज्ञापन को लेकर आपत्ति है।

आपने इस बात को नोट किया या नहीं पर यहां कुछ कारणों पर तो बात हो ही सकती है।

महिला क्रिकेट में बेजोड़ उपलब्धियां जो पूर्व में दर्ज हुई वह तो बीत चुकी हैं। कोरोना काल में पुरुष किक्रेट को खेलने का मौका मिला पर महिला क्रिकेट अभी भी सरकार और प्रशासन से हरी झंडी का इतंजार कर रहा है।

अभी तो ओलंपिक और पैरा-ओलपिंक में महिलाओं ने अपने सफलता की नई कहानी दर्ज की है, फिर क्रिकेट पर विज्ञापन क्यों?

कैडबरी जैसी कंपनी अगर महिलाओं की सफलता को सेलिब्रेट करने का मौका गवाना नहीं चाहती है तो फिर वह क्रियेटिव स्पेश लेने में अब तक कुमभकर्ण की नींद में क्यों सोई हुयी थी?

महिला का क्रियेटिव स्पेस तो केवल विज्ञापन में ही नहीं साहित्य, सिनेमा हर जगह अपनी जमीन तलाश रहा है, फिर ये देरी क्यों?

ओलपिक और  पैरा-ओलंपिक में शामिल महिलाओं के साथ कोई विज्ञापन मानवीय संवेदना को उद्देलित करने वाला क्यों नहीं बनाया जा सकता है?

मौजूद आपत्तियां बता देती हैं कि “कुछ अच्छा हो जाए, कुछ मीठा हो जाए” की पंचलाइन में कुछ खास है हम सभी में, कुछ बात है हम सभी में, बात है, खास है, कुछ स्वाद है, क्या स्वाद है, जिंदगी में! परंतु, बात, खास, स्वाद और जिंदगी में महिलाओं का सवाल हो, तो वक्त लगता है।

महिलाएं “अपना टाईम आएगा” नहीं “लाना पड़ेगा” के सूत्र वाक्य को ताबीज बनाकर गले में बांध ले। बाज़ार उनसे जुड़ी मानवीय संवेदनाओं का दोहन करके मुनाफा जरूर बटोरेगा, पर महिलाओं के विकास और सशक्त्तिकरण जैसे विचारों के लिए महिलाओं को अपनी जमीन और आसमान खुद ही बनाना होगा।

मूल चित्र : Still from Cadbury Dairy Milk Ad, YouTube  

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