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पिक्चर तो अभी बाकी है मेरे दोस्त…

“अगर तुम पनवेल शिफ्ट नहीं हो सकती, तो तुम्हें काम छोड़ना पड़ेगा, हेमा।” सर के शब्द सुनने के बाद मैं कुछ समझ पाने के स्तिथि मैं ही नहीं थी।

“अगर तुम पनवेल शिफ्ट नहीं हो सकती, तो तुम्हें काम छोड़ना पड़ेगा, हेमा।” सर के शब्द सुनने के बाद मैं कुछ समझ पाने के स्तिथि मैं ही नहीं थी।

“अगर तुम पनवेल शिफ्ट नहीं हो सकती, तो तुम्हें काम छोड़ना पड़ेगा, हेमा।”

सर के शब्द सुनने के बाद तो दो क्षण मैं कुछ समझ पाने के स्तिथि मैं ही नहीं थी। पंद्रह साल जहाँ पे काम किया वहाँ से अब काम अचानक से छुटने के आसार दिखे तो मानो दुनिया थम सी गयी थी मेरे लिए।

2020 में आये कोविड नामक आपत्ति ने तेज रफ्तार में भागनेवाली दुनिया को एक जगह रोक दिया। कितनी सारे परिवारों को, परिजनों को अपने लपेटे में ले लिया।

एक साल ऐसे ही बिता और 2021 भी उसी की गिरफ्त में आया। इस बार उसका शिकार मैं बनी।

पंद्रह साल जहा एडमिन के तौर पे काम किया, जो मानो मेरा दूसरा घर बन चुका था, वहाँ से अब मेरा हमेशा के लिए रिश्ता टूट रहा था। परिवर्तन सृष्टि का नियम है और यहाँ कोई भी स्तिथि, रिश्ता, इंसान एक जैसा नहीं रहता। वो कहते हैं न, हर एक रिश्ते की एक्सपायरी डेट होती है।

ऐसे देखने जाएँ तो मेरी जिंदगी कभी आसान नहीं रही।

बचपन से लेके वर्तमान तक अगणित चुनौतियों का सामना किया, संघर्ष किया। समय और नियती से हमेशा समझोता करके ही मुझे हर बार जीवन को आगे लेके जाना पड़ा है।

कुछ परिवार ऐसे होते हैं जहाँ उनका पेट और मुँह का संगम तभी मुमकिन हो जब हाथ को काम मिले। मैं उसी श्रेणी मैं आती हूँ।

पिछले तीन साल बहुत मुश्किल समय रहा है, मेरे लिए। आर्थिक, मानिसक और शारीरिक तौर पे।  बस तसल्ली थी की मेरे पास मेरी नौकरी थी।

जिंदगी मैं एक दौर तब भी आता है जब समझदार इंसान भी थक जाता है। उसे जिंदगी में सुकून चाहिए होता है। मेरा वो सुकून मुझसे छीन गया था।

कोविड ने जब पूरा जनजीवन अस्थायी कर दिया है, जहाँ कल का, जीवन का किसी का पता नहीं, वहाँ वापस जिंदगी को नए सिरे से शुरू करना इसकी कल्पना भी नहीं की जा रही थी।

2017 से जीवन मैं चल रही घटनाओं ने मुझे डिप्रेशन जैसी समस्या में डाल दिया था। वहीं मैंने हार न मानते हुए खुद ही खुद की हीलर बनके खुद को संभाल रही हूँ। मन के हारे हार है, मन के जीते जीत, है ना?

जब आप परिस्थिति न बदल सको तो उसे देखने का नजरिया बदलो। मैंने यही तय किया। मुझे नहीं पता यह प्रवाह मुझे कहाँ लेके जायेगा, पर इतना जानती हूँ यह कभी न कभी रुकेगा ज़रूर। जहाँ यह रुकेगा बस वहीं से मेरा मार्ग फिर शुरू होगा।

अचानक आये इस मुश्किल को मैंने सकारत्मक रूप से लिया। जहाँ मेरे तन और मन दोनों थके हुए हैं, तो अचानक मिले इस ब्रेक को मैंने ‘जिंदगी ने मुझे कुछ दिनों की छुट्टी दी है’ ऐसे माना।

इन दिनों मैं घर पे रह के अपने आप को बेहतर इंसान बनाने के काम जुट गयी। यह समय परिवार के लिए, खुद के लिए है ऐसा माना।

नयी-नयी चीज़ें सीखना। कई दिन से मैं लेखन क्षेत्र मैं कुछ करना चाहती थी, इसलिए मैंने यह समय कंटेंट राइटिंग सिखने मैं लगा दिया।

नृत्य मेरा पेंशन है, पर कभी हालत और संकुचित परिवार की सोच की वजह से मैं सीख नहीं पायी। आज मैं दिन एक घंटा तो अपने नृत्य को देती हूँ।

आज यह लेख लिखने का तात्पर्य यही है कि जब जब ऐसा लगे जिंदगी में कि अब क्लाइमेक्स का समय आ गया है, तब तब जिंदगी को बस इतना ही कहना होता है…पिक्चर तो अभी बाकी है मेरे दोस्त…

मूल चित्र : Still from Short Film Anamika/Pocket Films, YouTube 

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