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तुम मेरी बहू भी हो और बेटी भी…

"मेरे बेटे ने पसन्द किया है लड़की को और लड़की रहना चाहती है। मैं माँ हूँ अगर मैं साथ न दूँगी तो मेरे बच्चे दुनिया में अकेले हो जायेंगे।"

“मेरे बेटे ने पसन्द किया है लड़की को और लड़की रहना चाहती है। मैं माँ हूँ अगर मैं साथ न दूँगी तो मेरे बच्चे दुनिया में अकेले हो जायेंगे।”

माँ से अपेक्षा?

माँ तो भगवान का रूप है।

मैंने कई माओं को देखा है जिन्होंने समाज की कई अपेक्षाओं को तोड़कर होने बच्चों को सशक्त बनाया है। मेरी चाची, जिनके तीन बेटे हैं, वो भी एक ऐसी ही माँ हैं।

बड़ा बेटा बाहरवीं के बाद, अपने काम की ट्रेंनिग कर रहा था ग़ाज़ियाबाद में। चाची गाँव में रहती थी। यहाँ चाची की स्तिथि खास अच्छी न थी।

लोग कहते बेटे को और आगे पढ़ाने से अच्छा काम करने को बोलो, पर चाची ने कर्ज आदि लेकर बेटे को पढ़ाया, ताकि बेटा अपने पैर पर खड़ा हो सके।

बेटा(आरुष) पढ़ाई करने के लिये बाहर रहता था तो, खर्च चाची जैसे-तैसे कर्ज लेकर भेजती थी।

आरुष पढ़ाई के साथ-साथ किसी दूसरे राज्य की लड़की से प्यार भी करने लगा। चाची अपने बेटे के साथ ऐसे खड़ी रहती थी कि बेटा सारी बातें अपनी माँ से बताता। प्यार की बातें भी।

जब माँ को उसने अपने प्यार के बारे में बताया, तो माँ ने कहा, “बेटा तेरी खुशी में ही मेरी खुशी है। तू बस काबिल बन जा, मुझे तेरी पसंद की लड़की से कोई समस्या नहीं।”

उन्होंने लड़की से भी फोन पर बात की। लड़की भी आरुष से प्यार करती थी। पर उसके घरवाले किसी दूसरे राज्य में शादी के खिलाफ थे। चाची का कहना था, “सही समय पर मैं तुम्हारे परिवार वालों से बात करूँगी।”

फिर लड़की के परिवार वालों ने लड़की पर दवाब बनाना शुरू किया, बंदिशें लगाने लगे, लेकिन लड़की(सुधा) बस आरुष से ही शादी करना चाहती थी।

एक दिन सुधा ने आरुष को फोन किया, “मुझसे शादी करनी है, तो मैं अभी आ रही हूँ। मुझसे मंदिर में शादी कर मुझे अपने घर ले जाना। वरना मैं अब और बर्दाश्त न कर पाऊँगी।”

आरुष को भी समझने का मौका न मिला क्यूंकि सुधा घर छोड़ आ गई। सुधा के कहने पर आरुष सुधा को अपनी बाईक पर मंदिर ले गया और दोनों ने बहुत सोच-विचार कर के एक-दूसरे से शादी कर ली।

आरुष ने फिर सारी बातें माँ को बताईं। माँ थोड़ी परेशान तो हुयी लेकिन अब किया क्या जा सकता था, तो उन्होंने कहा, “अच्छा, इस तरह की बातें हो गईं? कोई बात नहीं तुम दोनों घबराना नहीं। मैं तुम दोंनो के साथ हूँ।”

दोनों बालिग थे, ज्यादा परेशानी न थी फिर भी…

जिस बात का अंदेशा था, वही हुयी! सुधा के घर वालों ने तुरंत पुलिस केस कर दिया।

अब चारों तरफ पुलिस इन दोनों को ढूंढने लगी। साथ ही गाँव के थाने से पुलिस चाची के घर भी आई दोनों को ढूंढने। लेकिन वो दोनों घर तो आये ही नहीं थे।

कुछ दिन दोनों बाहर ही इधर-उधर रहे। फिर चाची ने उन दोनों को अपने पास बुलाया। बहुत समझाया कि घबराने की कोई बात नहीं। फिर उन्होंने अपने समक्ष सारी रस्में करवाईं और बहु को घर किया।

जबकि पूरे गाँव वाले, परिवार वाले चाची के खिलाफ थे, चाची का कहना था, “मेरे बेटे ने पसन्द किया है लड़की को और लड़की रहना चाहती है तो मैं माँ हूँ और अगर मैं साथ न दूँगी तो फिर मेरे बच्चे दुनिया में अकेले हो जायेंगे।”

चाची ने पुलिस का दवाब झेला, कोर्ट में उपस्थित हुईं, पूरे परिवार सहित। उन्हें ऊपरी खर्च, जो शादी, केस आदि में हुआ वो भी करना पड़ा।

सुधा के मायके वालों के ताने और कई चेतावनियों को चाची ने अकेले झेला। गावँवालों ने भी चेतावनी दी, “दूसरे जगह की लड़की है, वो भी भाग कर शादी की है! हम लोग आपके परिवार से सम्बंध न रखेंगे। इस लड़की को भगा दीजिये। उसके मायके वाले आये हैं वापस भेज दीजिये।”

चाची ने कहा, “कोई बात नहीं! आपको जो ठीक लगे आप वो करो। मुझे जो ठीक लगेगा वो मैं करती हूँ। गावँ वालों के साथ पूरा गाँव है और मेरे बेटे के साथ सिर्फ मैं। मैं इसे नहीं छोड़ सकती। यह अकेला पड़ जायेगा। आप गाँव वाले जैसा चाहे मुझसे रिश्ता रखें।”

सुधा के मायके वालों ने सुधा से, सारे सम्बंध तोड़ लिए और शादी के बाद अन्य रस्में जो सुधा के मायके से होनी थीं, उसे भी चाची ने ही निभाया। चाची ने कहा, “मैं तेरी सास भी हूँ और माँ भी हूँ अबसे। तुम बहू और बेटी भी हो मेरी।”

इस तरह परिवार, समाज सभी के तानों, सभी के खिलाफ होने के बावजूद चाची अपने बेटे के साथ खड़ी रहीं और बहू का ससुराल और मायका दोंनो यहीं बना दीं।

आज भी सुधा का सम्बंध अपने मायके से नहीं हैं, पर चाची बेटे के साथ-साथ अपनी बहू का इस तरह ख्याल रखतीं कि मिसाल बन गई हैं वे पूरे गाँव में।

हर तरफ सास-बहू के चर्चे होते। अब गाँव वालों को भी मेरी चाची से कोई शिकायत नहीं है।

इस तरह मैंने देखा, एक मजबूत माँ को, जो अपने बच्चों की खुशी के लिए हर परेशानियों से लड़ती,
हर मुश्किल के खिलाफ डटकर खड़ी रहती है।

परंपराओं या अपेक्षाओं से बड़ी होता है, माँ का हौसला। माँ का साथ हमें हर मुश्किल से लड़ने का साहस देता है।

चाची के बहू और बेटे कभी चाची के पास तो कभी बाहर, बेटा जहाँ काम करता, रहते हैं। जब सुधा को दो बच्चे हुए, उस समय भी चाची एक माँ के तरह सुधा के साथ थीं।

सलाम है मेरी चाची के हौसलों को।

मूल चित्र : Still from Happy Diwali Moments/P N Gadgil and Sons, YouTube

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