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बहू, आज समय के साथ चलने में ही सबकी भलाई है…

"क्या शादी करने का? तो कर ले ना बेटा! मैं तेरी मां जैसी आउटडेटेड नहीं हूं। बता कब करना चाहता है? मैं तैयार हूं", मुस्कारा कर दादी ने कहा।

“क्या शादी करने का? तो कर ले ना बेटा! मैं तेरी मां जैसी आउटडेटेड नहीं हूं। बता कब करना चाहता है? मैं तैयार हूं”, मुस्कान दबाते हुए दादी ने कहा।

“ये क्या अनर्थ कर दिया तुमने नितिन! एक बार अपने स्वर्गीय पिताजी का चेहरा नहीं आया तुम्हारी नज़र के सामने? एक बार अपनी छोटी बहन का नहीं सोचा? और वो दादी जो तुम्हें दुनियां में सबसे ज्यादा प्यार करती है, उसका ख्याल नहीं आया? और मेरी तो खैर कोई बात नहीं, मैं तो…”

नम्रता अपने बेटे नितिन को धिक्कार ही रही थी कि वो बीच में ही बात काटता हुआ बोला, “डोंट पैनिक सो मच मम्मा… किसी का मर्डर या कोई इतना बड़ा क्राइम करके नहीं आया मैं जो आप मुझे इतना डांट रहे हो। इट्स नार्मल एट प्रजेंट टाईम… मेरे भी कई दोस्त हैं जो…”

“दूसरे क्या करते हैं क्या नहीं मुझे इससे कोई मतलब नहीं। मेरे घर में मेरा बेटा ऐसा करे, ये मेरे संस्कार और परवरिश पर उंगली उठने वाली बात है। क्या कहेंगे सब मुझे? तेरे ननिहाल-ददिहाल वाले, आस-पड़ोस, समाज, बिरादरी? यही कहेंगे ना अकेली मां थी ना, बच्चे को संभाल नहीं पाई।”

“ओहो!दैट्स द मेन प्राब्लम… ये क्या कहेगा, वो क्या कहेगा! ये कहने वाले तब कहां थे मम्मा, जब पापा के जाने के बाद हम दरबदर भटक रहे थे? जब दादी की मामूली सी पेंशन पर हम चार जनों की जिंदगी चल रही थी? जब आप दफ्तर-दफ्तर घुमतीं थीं नौकरी के लिए? तब किसी ने क्यों नहीं कहा कि हमारे घर रह लो थोड़े दिन?

आप सब भूल गई हो माॅम मैं कुछ भी नहीं भूला और जिनके लिए कल मैं महत्व नहीं रखता था वो लोग आज मेरे लिए महत्वहीन हैं…”

“जो महत्व रख रहे हैं, उन्हीं के बारे में कहां सोचा तूने नितिन?”

“सोच रहा हूं इसलिए तो बताया मैंने… क्योंकि आप, निकी और दादी, बस यही मेरी दुनिया है और कोई चौथा आदमी मेरे बारे में क्या सोचता है, डस नॉट मैटर! मैं नहीं चाहता था कि किसी और से ये बात आप लोगों को पता चले।”

“पता तो सबको चल गया होगा। सब तो वहीं रहते हैं। मुझसे ज्यादा सबको खबर रहती है तेरी।”

“हां जानता हूं! जब मेरी नौकरी लग गई और निकी का मेडिकल में एडमिशन हो गया, तभी से आपके सारे सोए हुए रिश्तेदारों को आपकी याद आने लगी, चिंता सताने लगी और ना जाने क्या क्या??”

“मैं वो सब नहीं जानती। एक बात कान खोल कर सुन ले, मैं ना निकी से कुछ कहने वाली हूं और ना ही तेरी दादी से। तू उनसे बात कर और उनका फैसला जान। मेरी तरफ से ना है…बड़ा वाला ना…”

तभी निकी और दादी भी कमरे में दाखिल हुईं।

“क्या हुआ भाई कोई मुझे भी बताएगा? दोनों मां बेटे की किस बात पर बहस हो रही है इतनी?” दादी ने पूछा।

“वो दादी…”

“बता ना! शर्म आ रही है ना…”

“बिल्कुल नहीं मां, आप मुझे बोलने दो तब तो… दादी शीना को आप जानते हो ना?”

“हां, तू तो लेकर भी आया है ना उसे घर एक बार।”

एक्सैक्टली! उसने और मैंने एक फैसला किया है।”

“क्या शादी करने का? तो कर ले ना बेटा! मैं तेरी मां जैसी आउटडेटेड नहीं हूं। बता कब करना चाहता है? मैं तैयार हूं”, मुस्कान दबाते हुए दादी ने कहा।

“हुंह! वो बात होती तो क्या बात थी मांजी! जात-बिरादरी भूलाकर मैं फिर भी तैयार हो जाती। पर आगे तो सुनिए अपने लाडले की बात”, नम्रता ने कहा तो दादी नितिन का मुंह देखने लगी।

“दादी… हम दोनों ने कुछ महीने लीव इन रिलेशनशिप में रहने का प्लान बनाया है। दरअसल हम नहीं चाहते कि शादी कर लें और फिर आपस में ना बने तो तलाक एंड आल दैट! तो साथ रहकर दोनों एक दूसरे को परख लेंगे फिर सब अच्छा रहा तो शादी तो करनी ही है…”

“रह लेंगे नहीं जनाब! बोलिए पिछले एक डेढ़ महीने से रह रहे हैं साथ।और मांजी ये हमसे आर्डर नहीं ले रहे, हमें बता रहे हैं, वो भी इसलिए कि हमें कहीं बाहर से पता ना चले।”

“नहीं माॅम! मैं आप लोगों को ये बात मिलकर बताना चाहता था। सामने बता रहा हूं तो आप ऐसे रिएक्ट कर रहे हो फोन पर बताता तो पता नहीं क्या करते?”

“अच्छा ये बता, ये बात उसके मां बाप जानते हैं?” दादी ने पूछा।

“हां! शुरू में उन्होंने भी ऐसे ही रिएक्ट किया जैसे माॅम ने, पर फिर वो कुछ नहीं बोले”, नितिन ने सर झुकाकर कहा।

“वैसे अभी जो तुमलोगो ने एक डेढ़ महीने साथ गुजार लिया है तो क्या लगता है? क्या भविष्य है तुम्हारे रिश्ते का?”

टच वुड हमारा समय बहुत अच्छा गुजर रहा है दादी। हम-दोनों एक दुसरे की कंपनी बहुत इंजाय कर रहे हैं और हम उस मुकाम की ओर बढ़ रहे हैं जहां हमें ये लगने लगे कि हम एक साथ पूरी जिंदगी गुजार सकते हैं। इनफैक्ट शीना चाह रही थी कि मैं आप लोगों को शादी की तैयारियां शुरू करने कह दूं। पर मैंने ही कहा नहीं, मैं इतनी जल्दी ये फैसला नहीं ले सकता। बस दो तीन महीने दादी…

“मम्मा-दादी, देखिए मैं बताती हूं। ये ट्वेंटी फर्स्ट सेंचुरी है। आज हर कोई अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीना चाहता क्योंकि सबको समझ में आ चुका है ये जिंदगी बार-बार नहीं मिलती। अब जमाना बदल चुका है तो प्यार का ढंग भी तो बदलेगा ना। पहले प्यार, गर्लफ्रेंड, बायफ्रेंड ये सारे शब्द ही गलत माने जाते थे। धीरे-धीरे इन शब्दों को स्वीकारा गया। फिर इन रिश्तों को स्वीकृति मिली। आज समय और एक कदम आगे बढ़ गया है।

बहुत लोग तो टाइमपास के लिए जुड़ जाते हैं, बहुत मतलब के लिए जुड़ जाते हैं, फिर अलग-अलग।पर जो सच में अपने रिश्ते के प्रति गंभीर होते हैं,आगे ले जाना चाहते हैं, वो एक दूसरे को जानने के लिए समय लेते हैं, ताकि उनका रिश्ता एक मजबूत रिश्ता बनकर जुड़े। अब अगर इसके लिए साथ रहना पड़े तो क्या ग़लत है? बताइए इसमें अनर्थ होने जैसी तो कोई बात ही नहीं है।” इस बार इतनी देर से सबकी बातें सुन रही निकी बोली।

“अच्छा! लो भाई कम बड़ा वकील था जो अब बहन भी तरफदारी करने उतर आई?” नम्रता बोल पड़ी।

“देखो बच्चों, ये जितना बड़ा सच है कि मैं पुराने जमाने की हूं, उतना ही बड़ा सच ये भी है कि मुझे अपने संस्कारों और मान प्रतिष्ठा से भी उतना ही प्यार है। पर रिश्ते निभें और परस्पर का प्यार बना रहे ये उतना ही इस युग में महत्वपूर्ण है जितना उस जमाने में था। मैं तो कहूंगी कि इस युग में रिश्ते निभना और निभाना ज्यादा मुश्किल और संघर्ष पूर्ण है। अगर नितिन का मकसद साथ रहकर अपने आप को और उस लड़की को आगे रिश्ते मजबूती के साथ निभाने के लिए तैयार करना है तो मैं तैयार हूं…”

“पर मांजी…”

“एक मिनट बहू मुझे बात पूरी करने दो। अगर इस रिश्ते की परिणति शादी में होती है, तब तो वो सबसे अच्छी बात रहेगी। अगर बात टूटने की आती है तो जब तक उस लड़की की शादी नहीं हो जाती, तब क्या होगा? क्योंकि, जमाना चाहे जहां भी चला जाए, लड़की और लड़के के प्रति दोयम दृष्टिकोण अभी तक नहीं बदला और जाने कब बदले”, दादी ने अपना निर्णय सुना दिया।

आई प्राॅमिस यू दादी, शीना और मैंने वो सब सोच-समझ कर ही फैसल लिया है। और वैसे शीना की कहीं और शादी हो जाएगी ये सुनकर ही मेरा मन डर गया, तो मुझे नहीं लगता वैसी नौबत आएगी… अब तो शायद हम लोग आप लोगों को पंद्रह-बीस दिन में ही डिसीजन दे दें”, नितिन की खुशी से आवाज नहीं निकल रही थी। वो फोन लेकर शीना को बताने बाहर निकल गया।

“बहू फ़िक्र ना करो। आजकल के बच्चे बहुत समझदार होते हैं। सब अच्छा होगा। परेशान ना होना।हमें भी तो हवा के साथ साथ और समय के संग संग चलना है, अपने बच्चों की खातिर”, दादी ने आंखों ही आंखों में नम्रता को समझाया तो अब नम्रता का भी मन पहले से थोड़ा हल्का हो चला था।

दोस्तों, जमाना बहुत तेजी से बदल रहा है,अगर हम उस रफ्तार से ना बढ़े, तो बहुत पीछे छूट जाएंगे। तो खुद को हवा की दिशा में छोड़ देना ही बेहतर है क्योंकि हम हवा से नहीं लड़ सकते।

आप क्या कहते हैं, जरूर बताएं!

मूल चित्र : Still from कारण…काही नाती ही जपावीच लागतात! by LaxmiNarayan Chiwda/ YouTube (for representational purpose only)

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