कोरोना वायरस के प्रकोप में, हम औरतें कैसे, इस मुश्किल का सामना करते हुए भी, एक दूसरे का समर्थन कर सकती हैं?  जानने के लिए चेक करें हमारी स्पेशल फीड!

माँ, अब आपके दिखावटी प्यार पर मुझे भरोसा नहीं रहा…

मोनिका अपनी जेठानी को फूटी आंख भी पसंद नही करती थी। लेकिन मजबूरी में उसको जेठानी को बर्दाश्त करना होता और बनावटी मुस्कान बनाये रखना होता।

मोनिका अपनी जेठानी को फूटी आंख भी पसंद नही करती थी। लेकिन मजबूरी में उसको जेठानी को बर्दाश्त करना होता और बनावटी मुस्कान बनाये रखना होता।

गर्भवती मोनिका के पति अमर ने उसकी देख-रेख के लिए गांव से अपनी बड़ी भाभी रमा को बुलाया। क्योंकि मोनिका के मायके से कोई आने के लिए तैयार नहीं हुआ, इसलिए उसके पास अपनी जेठानी को बुलाने के सिवाय कोई दूसरा रास्ता नहीं था। डिलीवरी की डेट भी नजदीक आ रही थी। इसलिए उसने नौंवे महीने अपनी बड़ी भाभी को बुलाने का निर्णय लिया।

मोनिका के प्रसव की खबर सुनकर गाँव से अकेली रमा शहर अपनी देवरानी की देख-रेख के लिए आयी। गांव में अपने दोंनो बेटो और पति को उसे अकेला छोड़ना पड़ा क्योंकि रमा के सास ससुर का निधन बहुत पहले ही हो चुका था।

नौ महीने बाद मोनिका ने सामान्य प्रसव प्रक्रिया से बेटे को जन्म दिया। सब बहुत खुश हुए। पूरे तीन महीने रमा ने दिल से देवरानी और बच्चे की सेवा की। जितने दिन रमा मोनिका के पास रही, उसने पूरा घर व्यवस्थित रखा और उसका और उसके बच्चे का भी पूरा ख्याल रखा। बच्चे की मालिश से लेकर उसे नहलाने धुलाने तक के सारे काम रमा करती जिससे मोनिका को आराम भी खूब मिल गया।

मोनिका जब भी अपने मायके फोन पर बात करती, वो रमा के एक-एक कार्य के बारे में सब कुछ बताती, तो उसकी मां कहती, “तेरी गंवार जेठानी को और काम ही क्या है? अच्छे से जानती हूं ऐसी औरतों को देवर के सामने बस अच्छे बनने का दिखावा जो करना है। इसीलिए तेरी इतनी सेवा कर रही है।”

मोनिका को मजबूरी में उसको जेठानी को बर्दाश्त करना पड़ता लेकिन अमर अपनी मां समान बड़ी भाभी को बहुत ही मान सम्मान देता। जिसे देखकर मोनिका मन ही मन कुढ़ कर रह जाती।

अमर बार-बार मोनिका को समझता, “देखो तुम जैसा सोचती हो ऐसा कुछ भी नहीं। भैया-भाभी को कोई लालच नहीं। वो ये सब मेरे पैसों के लिए नहीं कर रहे। उल्टा आज मैं जो कुछ भी हुँ वो उनकी ही बदौलत हूं।”

लेकिन मोनिका कहाँ मानने वाली थी।

सास-ससुर के जाने के बाद रमा ने अमर को अपने बच्चें की तरह पाला था। घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी लेकिन फिर भी बारहवीं बाद अमर के जिद करने पर रमा और उसके पति महेश ने उसे शहर इंजीनियरिंग की पढ़ाई करने के लिए भेज दिया। अमर की पढ़ाई के पीछे रमा को अपने गहने भी बेचने पड़े।

रमा मायके से मजबूत नहीं थी। बचपन मे ही उसके माता पिता का निधन हो गया था और उसकी दादी ने उसे किसी तरह  पाला-पोसा और सिलाई कढ़ाई करना सिखाया। इसलिए रमा को बहुत अच्छे से पता था माता-पिता ना होने का दुःख।

इतना कुछ करने के बावजूद भी मोनिका के दिल में अपनी जेठानी के लिए कोई उदारता और प्यार अपनेपन का भाव नहीं बन पाया। मोनिका को अमर के इंजीनियर होने और वह स्वयं भी पैसे वाले घर से होने के कारण हमेशा घमंण्ड में ही रहती थी। तीन महीने बाद रमा गांव वापिस लौट गयी।

ठीक एक साल बाद मोनिका ने अपने बेटे के जन्मदिन को खूब धूमधाम से मनाने का प्रोग्राम बनाया। अपने सभी आम खास दोस्तो और रिश्तेदारों को उसने निमंत्रण भेज दिया और उसने अपनी जेठानी को निमंत्रण नहीं भेजा था।

लेकिन जन्मदिन के ठीक एक दिन पहले उसकी जेठानी सपरिवार उसके घर आ गयी जिसे देखकर वो सकपका गयी। बाद में पता चला कि अमर ने उन लोगों को टिकट भेजकर बहुत आग्रह करके बुलाया है।

अगले दिन शाम को लोगों का आना-जाना लगा रहा और मोनिका के बेटे के लिए तोहफों का ढेर लग चुका था। रमा ने भी अपने लाये उपहार को जाकर मोनिका को उसके कमरे में दिया और बाहर चली गयी बाकी आये हुए मेहमानों की देखरेख के लिए।

बाहर रमा और उसके पति ने मेहमानों की बहुत आवभगत की। मोनिका और अमर को कोई काम नहीं करने दिया। अमर भी अपने सभी दोस्तों से अपने भाई-भाभी का परिचय कराता और सबसे कहता, “आज मैं जो कुछ भी हूं अपने भाई भाभी की बदौलत हूं।”

मोनिका के कमरे में पहले से मौजूद उसकी भाभी और मां ने रमा के उपहार को देखते बोला, “देखूं तो तेरी गंवार जेठानी क्या लेकर आयी है मेरे लाडले नाती के लिए।”

उपहार खोलकर देखा तो उसमें एक सोने की चेन, बारीक जरीदार कुर्ता बच्चे के लिए कपड़ा और साड़ी थी। साड़ी और कुर्ते का काम देखकर मोनिका और उसके मायके वाले दंग रह गए।

मोनिका की भाभी के मुँह से अचानक ही निकल पड़ा, “अरे मनु, इतना बारीक और खुबसूरत काम मेरी बुटीक वाली कभी न करके दे। मेरी मान तो तू तो अपनी जेठानी से ही डिजाइन करा लिया कर। और सुन उससे कहना हमारे लिए भी दो चार साड़ियों पर ऐसी ही कढ़ाई कर दे। फ्री में काम हो जाएगा सबका और उसे हमारा काम करके ख़ुशी भी मिलेगी। वैसे भी काम ही क्या है उसे?”

“हाँ माँ ठीक है। मुझे अच्छे से पता है उनको कैसे हैंडल करना है? उन्हें सिर्फ एक ही चीज अच्छी लगती है। इनकी तारीफ कर दो और फिर इनसे कोई भी काम करा लो।”

दरवाजे के बाहर खड़ी रमा ने सारी बात अपने कानों से सुनी। उसकी आँखों मे आंसू आ गए। वो सोचने लगी पिछले चार महीने से इतने प्यार और अपनेपन से  इस साड़ी और कुर्ते पर हाथ से कढ़ाई कर रही थी लेकिन उसकी अपनी देवरानी उसके प्यार और अपनेपन को नहीं समझती।

तभी पीछे से अमर कमरे में दाखिल हुआ और कहा, “वाह रे पढ़े-लिखे बुद्धिमान लोग, जो मेरी डबल एम.ए.की हुई भाभी के प्यार और समर्पण को गंवार कह रहे हैं। मोनिका मैं तुम्हारी माँ और तुमसे पूछना चाहता हूँ कि ये लोग तब कहाँ होते हैं, जब तुम्हें इनकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है? क्या तुम और ये तुम्हारे अपने जो इसी शहर में रहते हैं बता सकते हैं? चाहे तुम्हारी डिलीवरी हो या तुम्हारा बीमार होना, हर बार तुम्हे, मुझे और इस घर को मेरी इसी गंवार भाभी और तुम्हारी गंवार जेठानी ने सहारा दिया है। समझी!

और फिर भी तुम्हे अगर अपने पराए, अच्छे बुरे और अनपढ़ गंवार में फर्क पता ना चलता हो तो कोई बात नहीं। क्योंकि तुम तो शायद अपनेपन और प्यार का मतलब ही नहीं जानतीं! वैसे तुम्हे यहाँ भाभी केक कटिंग के लिए बुलाने आयी थी। लेकिन कमरे में कुछ काम से मैं भी यहाँ आ गया और तुम लोगों का सच सामने आ गया।”

तभी मोनिका की माँ ने कहा, “अरे दामादजी आप हमारी बात का गलत मतलब समझ रहे हैं। अरे मोनिका तू चुप क्यों हैं? समझा अमर को बोल की वो गलत बोल रहे हैं।”

अमर ने गुस्से में मोनिका की तरफ देखा तो उसने नजरें झुका लीं।

तब अमर ने कहा, “मैं सब समझ रहा हूँ। मोनिका बाहर मेहमान है और मैं कोई तमाशा नहीं चाहता इसलिए चुपचाप बाहर चलो।”

अमर अपनी भाभी को लेकर वहाँ से चला गया।

इधर मोनिका आज बहुत आत्मग्लानि महसूस कर रही थी। वो खुद से नजरें भी नहीं मिला पा रही थी। वो जैसे ही हाल पहुंची तो होस्ट ने कहा, “अब हमारे लिटिल मास्टर अपने मम्मी-पापा के साथ केक कटिंग करेंगे।”

तभी मोनिका ने होस्ट को टोकते हुए कहा, “मम्मी-पापा नहीं आज बेबी अपने बड़े मम्मी पापा के साथ केक कटिंग करेगा।”

और उसने जेठानी को गले लगाते हुए सबके सामने कहा, “भाभी मुझे माफ़ कर दीजिए। चलिए केक कटिंग में देर हो रही है।”

आज मोनिका को अपनी और अपनी माँ की हरकतों पर ग्लानि हो रही थी। कहने को माँ अपनी थी लेकिन वो ही उसे गुमराह करने में लगी थी! आज मोनिका को सच्चे और दिखावटी प्यार में फ़र्क़ नज़र आ रहा था। और वह अपने सच्चे परिवार के साथ जा खड़ी हुयी।

इमेज सोर्स : Still from Exchange at Tanishq ad, Tanishq Jewellery, YouTube

विमेन्सवेब एक खुला मंच है, जो विविध विचारों को प्रकाशित करता है। इस लेख में प्रकट किये गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं जो ज़रुरी नहीं की इस मंच की सोच को प्रतिबिम्बित करते हो।यदि आपके संपूरक या भिन्न विचार हों  तो आप भी विमेन्स वेब के लिए लिख सकते हैं।

About the Author

79 Posts | 1,624,608 Views
All Categories