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बेहद ही बदतमीज औरत है! पहले दोस्ती करती है, खाना-पीना, देना-लेना सब कर लेती है। और जब मन भर जाता है तो बहाने से लड़ाई कर लेती है, दूर रहना...
बेहद ही बदतमीज औरत है! पहले दोस्ती करती है, खाना-पीना, देना-लेना सब कर लेती है। और जब मन भर जाता है तो बहाने से लड़ाई कर लेती है और कभी भी…
“अंजना भाभी वाले ब्लाॅक में आए हो क्या?” पार्क में बातचीत के दौरान एक महिला ने सुमी से पूछा।
“हां जी, शायद। मैं उनको जानती नहीं, पर बहुतों के मुंह से उनका नाम सुना है, तो थोड़ा बहुत ही पता है मुझे उनके बारे में, ज्यादा नहीं।”
“ज्यादा ना जानो और ज्यादा पास ना जाओ, वही बेहतर है।”
सुमी समझ नहीं पा रही थी कि लगभग हर औरत एक सिरे से अंजना भाभी के खिलाफ क्यों थी।उनसे परहेज़ रखने तो सब बता देती, पर कारण किसी ने नहीं बताया। वैसे अंजना भाभी ने भी कभी सामने से आकर बातचीत नहीं की, ना परिचय बढ़ाया था, पिछले बीस दिनों में, जबसे सुमी यहां शिफ्ट हुई थी।
दो तीन दिन बाद पति के मित्र सपत्नी पधारे। बातचीत के दौरान सुमी ने पूछ ही लिया उनसे कि ये अंजना भाभी का क्या राज है।
वो बोली, “देखो, ज्यादा तो मैं भी नहीं जानती। पर सुना है बेहद ही बदतमीज औरत है! पहले दोस्ती करती है, खाना-पीना, देना-लेना सब कर लेती है। और जब मन भर जाता है तो बहाने से लड़ाई कर लेती है और कभी भी, कहीं भी बेइज्जती कर डालती है। साथ ही उस परिवार की बातें नकारात्मक ढंग से इधर उधर फैलाती है।
सुनकर डर तो लगा, कोई ऐसा कैसे कर सकता है भला? ये तो विश्वासघात वाली बात हुई ना। खैर, वह कोशिश करेगी दूरी बनाकर रखने की।
गर्मी की छुट्टियां खत्म हो गई थीं बच्चों की। स्कूल बस सोसायटी में आती थी, तो बच्चे आपा-धापी में गिर पड़ ना जाएं इसलिए उनके घरवाले भी वहां खड़े होते थे। वहीं पहली बार सुमी ने अंजना भाभी को देखा।
संयोगवश उनका बेटा कुणाल और सुमी का बेटा ओजस एक ही क्लास के सेम सेक्शन में थे। ना चाहकर भी बच्चों की दोस्ती तो होनी ही थी। शाम को कभी कुणाल, तो कभी ओजस एक दूसरे के घर खेलते या ग्राउंड में खेलने को बुला लेते।
इसी क्रम में एक दिन अंजना भाभी आई कुणाल को ढूंढने, पर बच्चे बाहर निकल चुके थे। तो वो सुमी को ही घर की चाबी थमा गई क्योंकि वो मार्केट जा रहीं थी।
चलने को हुई तो थोड़ी ठिठकी, फिर बोली, “कुछ मंगाना हो तो बता दो, लेती आऊंगी।”
“नहीं भाभी आज ही आई हूं मैं मार्केट जाकर”, सुमी ने मुस्कुराकर मना कर दिया।
पता नहीं क्यों सुमी जब जब अंजना भाभी से मिली, उनसे उसे हमेशा पाज़िटिव वाइव्स ही आईं। लगा कुछ खिंचाव है उनके व्यक्तित्व में, वो भाव जो अगले को अपना बना ले।
फिर तो आने जाने का सिलसिला चल पड़ा। और ना चाहते हुए, भर-भर के सबकी हिदायतें मिलने के बाद भी सुमी अंजना भाभी से जुड़ती गई, उनके पास आती ही गई और ये सिलसिला तब तक चला जब तक अंजना भाभी के पति के पदोन्नति के साथ तबादले की न्यूज़ नहीं आ गई।
सुमी बहुत भावुक हो रही थी। दोस्त तो कई बन गए थे, पर अंजना भाभी से जो अपनेपन का भास होता था, वैसी सकारात्मकता किसी से नहीं मिलती। सुलझे विचार, पढ़ी-लिखी, बातें सीधे-सीधे बोलने वाली और संवेदनशील भी।
हां एक चीज थी, उनकी स्पष्टवादिता जो शायद आजकल के लोगों को नहीं पचती। चिकनी-चुपड़ी, लच्छेदार बातें करना शायद वो जानती नहीं थी या फिर उन्हें पसंद नहीं था। और उनके व्यक्तित्व के इसी पहलू से सुमी सबसे ज्यादा प्रभावित थी। पर इस गुण को एक बड़ा ऐब बना, पता नहीं क्यों इतनी भली और नेकदिल औरत के बारे में सोसायटी वालियां गलत बोलती रहतीं।
जाने से एक दिन पहले सुमी ने एक खूबसूरत सी दीवार घड़ी खरीदी और अंजना के घर पहुंची।
“इसकी क्या जरूरत थी सुमी?”
“कुछ नहीं भाभी! सिर्फ जब जब इसमें समय देखोगे तो मेरी याद आएगी।”
“अपनों को याद करने की जरूरत नहीं होती पगली। वो तो हमेशा दिल में होते हैं। मैंने तुम्हें कुछ नहीं दिया, तो क्या तुम मुझे भूल जाओगी?” उनकी वही स्पष्टवादिता जो सुमी को बहुत पसंद थी।
“भाभी, मैं भैया के प्रमोशन से तो खुश हूं पर तबादले से बहुत दुखी हूं। कितनी मुश्किल से मिलते हैं आप जैसे दोस्त।”
अंजना भी भावुक थी। फिर अपने आप को संयत कर बोली, “सुमी,जानती हो सोसायटी की औरतें मेरे बारे में क्या क्या बोलतीं है? मुझे सब पता है और इसलिए मैंने किसी से दोस्ती बढ़ाना ही छोड़ दिया। देखो उतार-चढ़ाव सबके जीवन में आते हैं और उस दरम्यान स्वभाव में भी अंतर आना स्वाभाविक है, पर पता है इस दुनिया को सिर्फ आपकी अच्छाई से मतलब है। जब तक अच्छे हैं तो ठीक, कभी उन्नीस-बीस हुआ मतलब आप बुरे बन गए। और ऐसी दो तीन घटनाएं अगर हो गई इसका मतलब आप पर “बुरे” की उपाधि हमेशा के लिए चिपका दी जाएगी, बिना आपसे आपका पक्ष पूछे।
एक संगीता भाभी थी। खुब बनती थी हमारी, परिवार जैसे बन गए थे हम लोग। एक दिन मैं और पति कुछ पारिवारिक मुद्दों को लेकर काफी परेशान थे। भाभी ने फ़ोन किया कि वो आना चाहती हैं। मैंने स्पष्ट कहा भाभी, अभी कुछ परेशान हैं, आप कल आईए ना। सिर्फ इतनी सी बात को लेकर उन्होंने इतना हंगामा किया कि बता नहीं सकती और मुझसे संबंध भी तोड़ लिया।
एक दूसरी भाभी थी, जिनसे मेरी काफी अच्छी दोस्ती थी। हमारे पति भी एक साथ काम करते थे। उनके बच्चे बड़े शरारती थे। कुणाल के साथ खेल-खेल में कई बार धक्का-मुक्की कर लेते थे। कुणाल रोता और शिकायत करता तो मैं समझा देती उसे, सोचकर कि बच्चों की बात पर अपने संबंध क्यों खराब करना? आज झगड़ा करेंगे कल फिर एक हो ही जाएंगे।
पर एक बार कुणाल ने उनके बेटे को धक्का दिया तो सब कुछ भूल वो लड़ने चली आई। मैंने फिर भी बात को ज्यादा तूल नहीं दिया। पर उन्होंने उस दिन के बाद से मुझसे बोलचाल ही बंद कर ली।
इसके अलावे एक भाभी और थी, जिन्हें मैं बहुत मानती थी, पर मुंह पर मीठी और अच्छी बातें करने वाली उन भाभी की हकीकत मुझे उस दिन पता चली जब वो किसी से बात कर रही थीं। संयोगवश मैं पीछे ही खड़ी थी पर उन्होंने देखा नहीं।
वह बोल रही थी कि अंजना से तो मैं बस टाईमपास करती हूं। मुझे सब पता है उसके मूडियल, बदतमीज और अक्खड़ स्वभाव के बारे में। पर बेचारी की मां बचपन में ही गुजर गई थी, ना तमीज और सलीका कौन सिखाता भला उसको। बातचीत कर लेती हूं, बेचारी से सब कटते हैं ना इसलिए। उनकी इस महानता ने मुझे बहुत आहत किया और मैं भी अपने आप को कंट्रोल ना कर पाई और उनका भी कच्चा चिट्ठा खोल डाला सबके सामने।
इन्ही वाक़यों ने मुझे मशहूर कर डाला सोसायटी में। कोई परफेक्ट है क्या इस दुनिया में सुमी, फिर सब मुझसे ये उम्मीद क्यों लगा बैठे थे? इन घटनाओं ने मेरे दिल और दिमाग पर इतना असर किया कि मैंने सोसायटी में मेल मिलाप करना ही छोड़ दिया और निश्चय कर लिया था अब किसी से दोस्ती नहीं बढ़ाऊंगी।
पर तुम्हें देखा तो पता नहीं क्यों, एक खिंचाव सा महसूस हुआ। छोटी बहन की छवि दिखने लगी तुममें और तबादले पर मैं खुश हूं कि अब हमारा रिश्ता जिंदगी भर चलेगा। वरना अब डर लगने लगा था, शायद कहीं मैं ही तो गलत नहीं? या फिर पता नहीं कहीं मुझे श्राप तो नहीं कि मेरी दोस्ती किसी से नहीं निभेगी। तुमसे भी कोई बात तो ना हो जाएगी? कोई भी रिश्ता बनाने से पहले अब मैं सौ बार सोचती हूं और अपने दिल से कहती हूं, ऐ दिल संभल जा ज़रा…”
भाभी का गला भर्रा उठा बोलते बोलते।
“भाभी आप बहुत अच्छी हैं। आप जैसी है वैसी रहना। जिन्हें आपसे दोस्ती करनी है उन्हें अपनी सोच बदलनी चाहिए। अब दिल से संभलने नहीं कहिए बल्कि कहिए दिल से कि ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेगे”, कहकर सुमी ने भाभी को गले से लगा लिया।
दोस्तों, कभी किसी का सुनी सुनाई बातों या बनी बनाई छवि के आधार पर मूल्यांकन नहीं करना चाहिए। हो सकता है वो उतना बुरा ना हो जैसी उसकी छवि बन गई हो। ऐसे किसी इंसान को आपने देखा और परखा है, तो साझा करें। आपके विचारों की प्रतीक्षा में…
इमेज सोर्स : Still from Harrier Ad/Tata Motors, YouTube(for representational purpose only)
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