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गांधीजी के बताए अहिंसा मार्ग पर चल दुनिया में हक की कई लड़ाईयां जीती जा चुकी हैं और ये महिलाएं उन गांधीवादी मूल्यों का प्रयोग कर रही हैं।
भारतीय समाज सुधारकों के सूची में कई समाज-सुधारक हुए जिन्होंने महिलाओं के सामाजिक स्थिति को दुभार्ग्यपूर्ण माना और उस यथास्थिति में बदलाव के लिए जरूरी सामाजिक पहल की। सती प्रथा, विधवा विवाह, बाल विवाह, छुआ-छूत और महिलाओं को तालाक अधिकार सामाजिक प्रयासों से किए गए सामाजिक सुधार थे। इन सभी सामाजिक सुधार के प्रयास ने स्त्री-शिक्षा के महत्व को इन सामाजिक कुरितियों के समाप्त हो जाने के लिए जरूरी समझा।
महात्मा गांधी संभवत: पहले व्यक्ति हैं, जिन्होंने महिलाओं के सामाजिक स्थिति में बदलाव के लिए परिवार के दायरे में महिलाओं के आर्थिक आत्मनिर्भरता के महत्व को प्राथमिकता दी और विकल्प के रूप में चरखा दिया। महात्मा गांधी अपने पूरे सामाजिक और राजनीतिक यात्रा में संघर्ष करते हुए जिन मार्गों का अनुसरण करते हैं, वह उनके शहादत के बाद वह उपयोगी मूल्य है, जो महिलाओं के स्वतंत्रता और अस्मिता मूलक अधिकार के लिए फार्मूले के रूप में उभरे।
महात्मा गांधी ने अपनी जायज मांगों को मनवाने के लिए गैरजायज कानूनों की मुखालफत करने और स्वतंत्रता हासिल करने के लिए सदैव अहिंसा का मार्ग अपनाने और शांतिपूर्ण आंदोलन पर जोर दिया था। उनके बताए अहिंसा के मार्ग को अपना कर दुनिया में हक की कई लड़ाईयां जीती जा चुकी हैं और कितने ही मोर्चो पर उन गांधीवादी मूल्यों का प्रयोग हो रहा है।
आइए जानते हैं वे कौन सी गांधीवादी महिलाएं हैं जो आज भी गांधी मार्ग पर संघर्ष का पथ चुन रही हैं…
हैदराबाद की सुनीता कृष्णन ने दस हजार से अधिक बच्चियों और महिलाओं को देह व्यापार के दलदल से बाहर निकालने में गांधी मार्ग का अनुसरण किया। इसके लिए कई बार असमाजिक तत्वों के हमलों की भी शिकार हुई पर उनके कदम अहिंसा के पथ पर जमे रहे।
मात्र 15 वर्ष के उम्र में सुनीता ने स्वयं भी इस पीड़ा को झेला जब आठ लड़कों ने उनके साथ गैंग रेप किया। निर्दोष होने के बावजूद उन्हें दो साल के लिए समाज से बहिष्कार कर दिया गया। इस दौरान उपजे क्रोध ने उन्हें नया रास्ता दिखाया और सुनीता उन महिलाओं के लिए उठ खड़ी हुईं जो यौन उत्पीड़न का शिकार हो रही हैं।
वे इन लड़कियों के पुर्नवास के लिए काम करती हैं। शोषण के विरुद्ध आत्म चिंतन के ताकत से सुनीता कृष्णन यौन उत्पीड़न झेल चुकी महिलाओं को जीवन-संघर्ष के राह पर लाती हैं। उनकी आत्म चिंतन से निकली संघर्ष-यात्रा जब सामाजिकता बन जाती है तो गांधी मूल्य से जुड़ जाती है।
इन महिला सरपंच ने जो कर दिखाया, वह वाकई मिसाल है। जशपुर अंचल के सना गांव की महिला सरपंच काजल राय चाहती थीं कि गांव की महिलाएं खुले में शौच से मुक्त हों। जब इस काम में संसाधन की कमी आई तो उन्होंने अपने गहने भी गिरवी रखवा दिए।
शुरुआत अपने वार्ड में 50 शौचालय बना कर किया। जब काम समय पर पूरा हुआ तो फिर 50 शौचालय बनवाए। आज भी वह गांव में घर-घर जाकर महिलाओं को शौचालय के इस्तेमाल और उसके महत्व के बारे में बताती हैं।
स्वच्छता का मूल्य गांधी के तमाम मूल्यों में आत्म-संघर्ष का मूल्य है, जो सबसे पहले स्वयं पर लागू होता है फिर सबों पर। गांधीजी कोई भी नैतिक मूल्य देने से पहले स्वयं पर उसका प्रयोग करते थे। काजल राय का गांव के शौचालय के लिए स्वयं का गहने गिरवी रखना, सामाजिक स्वच्छता के मिशन के लिए आत्म-बलिदान के लिए समाज को प्रेरित करता है।
ससुराल के गांव बैडाडीह टोला के आसपास के जंगलों की कुछ ज्यादा ही कटाई हो रही थी। उस बात ने जमुना को दुखी किया। पहले उन्होंने परिवार, समाज और गांव के लोगों को इसे रोकने के लिए कहा, पर बात इतने से नहीं बनी, तब तीर-धनुष लेकर महिलाओं को अपने साथ जोड़ा और खुद चार महिलाओं के साथ वन माफिया से भिड़ गईं।
बाद में वन रक्षक समिति बनाकर गांव की सैकड़ों महिलाओं को इस मुहिम से जोड़ा। अब वन माफिया महिलाओं के समूह से डरते हैं। जमुना को पद्मश्री से सम्मानित भी किया गया है।
पर्यावरण संरक्षण और प्राकृतिक ससाधनों के दुरुपयोग के बारे में तो नहीं परंतु गांधीजी संगठन शक्ति को संघर्ष की सबसे बड़ी ताकत मानते थे। किसी भी संघर्ष को बिना संगठित हुए सभी सफल परिणाम तक नहीं पहुंचाया जा सकता है। पेड़ बचाओ की जमुना टुडू की मुहीम में स्वयं को कुछ महिलाओं के साथ संगठित करने की मिसाल मिलती है।
गांधी मार्ग में अहिंसा की व्याख्या भरी हुई है। परंतु, गांधी हमेशा अपने ऊपर हुए अत्याचार के विरोध का पक्ष लेते थे, जो घरेलू हिंसा का विरोध हर महिला को करने को कहता है।
पति के शराब, जुआखोरी और घरेलू हिंसा के विरोध में बनरस के पास बसे खुशयारी गांव की महिलाएं हरा कपड़ा पहनकर गांव भर में घूमती हैं और महिलाओं पर जुर्म करने वाले पुरुषों से लोहा लेती हैं। इन महिलाओं को ग्रीन गैंग कहते हैं वहां के निवासी।
पुरुषों ने भी इनकी बातों को गंभीरता से लेना प्रारंभ किया है। यह गांधीवादी महिलाएं अपनी आत्मरक्षा के लिए कराटे की ट्रेनिंग भी देती है। उत्तर प्रदेश के कई गांवों में यह अपना काम कर रही हैं। यह किसी एक महिला का नहीं, कई महिलाओं का मिला-जुला सांगठनिक प्रयास है जिसमें गांव भर की महिलाएं घरेलू हिंसा, शराबखोरी और जुआ के विरोध में साथ आई हैं।
2007 में सितंबर की एक शाम एक मां अपने नन्हे के साथ अमरीकी रेस्त्रां एप्पलबीज़ लंच करने गईं। अपने नन्हे को भूख से रोता देख वह बच्चे को स्तनपान कराने लगीं तो वहां मौजूद ग्राहकों ने इस पर आपत्ति जताई।
मैनेजर ने महिला को सार्वजनिक जगह पर स्तनपान कराने से मना करते हुए कंबल से ढकते हुए स्तनपान कराने को कहा। महिला से मना कर दिया और रेस्त्राँ के खिलाफ अवाज उठाई। कई महिला संगठन ने उन महिला का साथ दिया और पूरे देश के रेस्ट्राँ में महिलाएं नवजात शिशुओं के साथ जाने लगीं और स्तनपान कराने लगीं। महिलाऒं ने शिशुओं को स्तनपान करवाने के लिए जैसे अभियान छेड़ दिया।
अंत में समाज और रेस्ट्रॉं, सभी को महिलाओं के सामने झुकना पड़ा।
अमेरिका में अश्वेतों के अधिकार के लिए रोजा पार्क्स का गांधीवादी आंदोलन काफी महत्वपूर्ण रहा है। वहां अलबामा प्रांत के मोंटगोमरी में सार्वजनिक वाहनों में रंगभेद किया जाता था। वाहनों पर सामने के दरवाजे से चढ़ने या गोरो लोगों के सामने सीट छोड़ देने का रिवाज था।
1955 के दशक में रोजा पार्क्स ने इसे अपने स्वाभीमान का मुद्दा बनाया और उनको गिरफ्तार कर लिया गया। रोजा ने गांधीवादी अहिंसक तरीके इसका विरोध किया। अंत में 20 दिसंबर 1956 को अमेरिकी सर्वोच्च अदालत ने इस वर्णभेदी नीति का विरोध किया और सार्वजनिक वाहनों में सबको समान अधिकार दे दिए।
कैलिफोर्निया में 600 साल पुराने पेड़ को जो 180 फुट लंबा भी था को काटने से तोकने के लिए जूलिया 738 दिनों तक पेड़ पर बैठी रहीं। जूलिया के साथी ने इतने दिनों तक अहिंसक तरीके से यह आंदोलन चलाया। आखिर इस पेड़ और उसके 200 फुट परिधि क्षेत्र की रक्षा करने में जूलिया कामयाब हुईं। पर्यावरण से जुड़े और भी सवाल थे जिस पर सरकार सहमत हो गई।
जुलिया ने भारत के चिपको आंदोलन से प्रेरणा ली, चिपको आंदोलन भी विरोध का एक गांधीवादी तरीका था जिसका अनुसरण बाद में कई देशों में पर्यावरण संरक्षण के लिए किया।
मूल चित्र : by Author/Wikipedia
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