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वह सोचती है कि उस पर हुक्म चलाने वाली जेठानी अपनी बहुओं पर हुक्म क्यों नहीं चलायीं? क्यों नहीं उसे ससुराल के नियम कानून सिखाती हैं?
बहुत दिनों बाद सुगंधा अपनी जेठानी के घर गई। सबसे मिलकर अच्छा लगा।
उनकी दोनों बहुएं कामकाजी हैं। जेठानी घर में रहती हैं और पोते-पोतियों को हेल्पर की मदद से संभालती हैं। उनके चेहरे पर वो रौब नहीं है जो पहले रहता था।
देवरानी को दबा कर कैसे रखना है, ये उन्हें बहुत अच्छी तरह आता था। पर अब उनकी फीकी हँसी सब कुछ बयान कर रही थी। वहाँ से आने के बाद वह सोच रही थी कि लोग समय के साथ कितना बदल जाते हैं।
दरअसल, सुगंधा जेठानी की बहुओं को देखकर अपने अतीत में चल गई थी और उन दिनों को याद करने लगी थी, जब वह भी इन बहुओं की तरह नई नवेली बहू थी।
जेठ और उसके पति एक ही शहर में नौकरी करते थे। इसलिए वह जेठ-जेठानी के साथ रहने आयी थी। दोनों भाईयों में बहुत प्रेम था और उसे भी उन लोगों के बीच स्नेह मिलता था। भरे-पूरे परिवार से वह आयी थी और यहाँ भी परिवार में रहना उसे बहुत अच्छा लगता। अकेलापन बिलकुल महसूस नहीं होता।
जेठानी उससे कहती, “सुगंधा, ये क्या दो दो चुड़ियां हाथ में डाली हुई हो? ये मुझे बिलकुल पसंद नहीं। चूड़ियों से दोनों हाथ भरे रहने चाहिए।” और वह जेठानी की बात मान लेती।
जब सुगंधा पति के साथ बाहर जाने का प्रोग्राम बनाती, तब जेठानी जी उसकी पसंद की साड़ी में मीनमेख निकाल कर उस को पहनने से मना कर देती और न चाहते हुए भी उसे जेठानी की वो साड़ी पहन कर जाना पड़ता, जो उसे बिलकुल पसंद नहीं थी।
लेकिन वह बड़ो की बातों का विरोध नहीं कर पाती, क्योंकि उसके घर में यही सिखाया गया था कि बड़ों का आदर करो और उनकी बातें मानो।
एक दिन जेठानी ने उससे कहा, “तुम्हारी सैंडिल अच्छी नहीं है। तुम मेरी चप्पल पहन कर जाओ।”
पति को इन छोटी-छोटी बातों की उलझन समझ में नहीं आती थी, इसलिए उन्होंने भी भाभी की हाँ में हाँ मिला दी। लेकिन अपनी जेठानी की चप्पल उसे कुछ बड़ी थी इसलिए वह उसे पहन कर ठीक से चल ही नहीं पा रही थी। तब पति को उसकी परेशानी समझ में आयी और उन्होंने आगे से दूसरे की चप्पल नहीं पहनने की नसीहत उसे दे दी।
इस तरह वह चुपचाप जेठानी की बहुत सी बातें इसलिए मानती रहती थी कि घर में कलह न हो और वह भी तो नये घर के लोगों को अच्छी तरह से समझना और उनके रंग में ढलना चाहती थी। पर जेठानी उस पर घौंस जमाने से पीछे नहीं रहती। ज़्यादा हो जाता तो सुगंधा अकेले में रो कर मन को शांत कर लेती।
उस जमाने में ज्यादातर नव विवाहिता की कमोबेश यही दास्तान थी।
जब घर में कुछ शोर हुआ तो वो अतीत से वर्तमान में आ गयी। अब जेठानी की बहुएं जींस वगैरह मॉडर्न ड्रेस पहनती हैं। हाथ में चूड़ियाँ भी नहीं रहतीं और सबसे बड़ी बात सब काम वे अपनी मर्जी से करती हैं। कहीं भी सासूजी का हस्तक्षेप नहीं है।
सुगंधा भी आजकल के दौर को अच्छी तरह समझती है। इसलिए वह बदलती बयार से खुश है। पर वह सोचती है कि उस पर हुक्म चलाने वाली जेठानी अपनी बहुओं पर हुक्म क्यों नहीं चलायीं? क्यों नहीं उसे ससुराल के नियम कानून सिखाती हैं? क्यों बहुओं की ही हाँ में हाँ इस तरह मिलाती हैं कि लगता है वह एक सीधी साधी सासू हैं? क्या जेठानी बन देवरानी पर घौंस जमाकर सास बनने का सपना पूरा कर लिया उन्होंने?
वैसे सुगंधा को जेठानी की बहुओं से कोई गिला-शिकवा नहीं है। वह तो सिर्फ यही सोचती है कि जेठानी सास बनते ही कैसे बदल गई?
काश, उस समय उसे भी जेठानी की डाँट और बेवजह की हस्तक्षेप की जगह प्यार मिला होता तो रिश्तों में प्यार और सम्मान भी रहता। आज रिश्ते तो हैं और वह सम्मान देने की कोशिश में लगी रहती है।
मूल चित्र : Still from Damdar Daylog/Jamana Ni Jethani movie clips, YouTube
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